दो बेटियों की माँ – प्रीति आनंद : Moral Stories in Hindi

नन्ही-मुन्नी माही को अपनी दीदी नेहा के पीछे भागते देख आज राधा के दिल को बड़ा सुकून मिल रहा था।

इसी वर्ष मकर संक्रांति की ही तो बात थी जब नेहा ने अचानक उससे कहा था,

“माँ, थोड़ा तिल गजक उन्हें भी दे दें जो सड़कों पर रहते हैं?”

“किसकी बात कर रही हो, नेहा?” अपनी दस वर्षीय बिटिया की बात सुन राधा चौंक गई।

“वही जो  इतनी ठंड में भी रोड के डिवाईडर पर सिकुड़े-से पड़े रहते हैं?”

“अच्छा! पर तेरे मन में उनका ख़्याल क्यों आया?”

“आज जब बाज़ार से लौट रहे थे न तो एक छोटी-सी लड़की टुकुर-टुकुर ताक रही थी हमें। बिखरे-बिखरे बाल व फटे कपड़ों के बावजूद वह बहुत प्यारी लग रही थी। उसकी नज़रें दुकान पर से सामान ख़रीदते लोगों पर ही थी। शायद चाह रही हो कि कोई उसे भी थोड़ी-सी गज़क  दे दे!”

“अच्छा चल चलते हैं!” बिटिया के दिल में इतनी बड़ी बात आयी जान कर उसे अच्छा लगा, अपने परवरिश पर ख़ुशी भी हुई।

वहाँ पहुँचने पर नेहा दौड़ कर उस बच्ची के पास पहुँच गई व उसके हाथों में गज़क का पैकेट थमा दिया। इसी दौरान उसका हाथ उस नन्ही-सी बच्ची के हाथ से छू गया तो उसे झटका लगा। बुरी तरह तप रहा था उसका शरीर!

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अब नेहा ने माँ से उसके लिये कंबल की फ़रमाइश की। राधा के बहुत समझाने पर भी जब नेहा न मानी तो एक कंबल ख़रीद कर उस बच्ची को देना पड़ा।

अगले दिन फिर नेहा ने उस बच्ची को देखने की ज़िद की। जब वे वहाँ पहुँचे तो वह लड़की आज भी बुख़ार में तप रही थी और वो नया कंबल आसपास कहीं नहीं दिख रहा था।

“ मेम साहब, आप ने जब वो कंबल दिया तो आपके जाते ही मनीजर ने ले लिया था। वे हमें कुछ नहीं रखने देते! आपको पता है, इस साल हमें चार-पाँच कंबल मिल चुके पर हमारे पास एक भी नहीं है!“

“फिर तुम लोग इतनी ठंड बर्दाश्त कैसे करते हो?” उसकी झीनी-सी फटी हुई साड़ी देख राधा ने पूछा।

“मेम साहब, ऐसा है न कि वो मनीजर हमें रोज़ रात में एक सुई लगा देता है जिससे रात तुरत-फुरत बीत जाती है। बिलकुल ही ठंड नहीं लगती।”

सन्न रह गई राधा! ये कौन सा इंजेक्शन है और कहीं ये इनके शारीरिक शोषण का ज़रिया तो नहीं?

“ तुम्हारी बेटी को बुख़ार है तुम उसका ख़्याल क्यों नहीं रखती?”

“ किसकी बेटी मेमसाब, इसकी माँ तो मर गई कुछ दिन पहले। नये साल की ख़ुशी में जब आप सब पटाखे फोड़ रहे थे न तब वो यहीं….”

उसका वाक्य पूरा हो उससे पहले ही राधा अपनी बच्ची को लेकर निकल गई वहाँ से! जिस बारे में सोच कर भी वह तड़प जा रही है वह इनकी रोज़ की ज़िंदगी है? और वह बच्ची? वह नेहा को कितनी अच्छी लगती है! क्या उसके साथ भी ऐसा ही कुछ होगा?

नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, उसे कुछ करना होगा। उसके देवर पुलिस में हैं, वह पता करेगी। वह जानती है कि ऐसे लाखों ज़िंदगियाँ रोज़ इसी तरह सड़क पर जीते जी मर रही हैं पर अगर एक को भी वह बचा ले तो अपना जीवन सफल हो जाए!

उसी प्रयास का नतीजा था कि आज वह नन्ही बच्ची, माही, उसके घर के बगिया की फूल बन गई थी और वह…. दो बेटियों की माँ!

स्वरचित,

प्रीति आनंद

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