अम्मा जी ने बड़ी मुश्किल से अपने पोते गोपी को पढ़ा रही थी।गोपी उनके खानदान की आखरी निशानी थी।
एक एक करके अम्मा जी के पति राधे जी पहले बीमारी के कारण चल बसे।बेटा बहू रेल दुर्घटना मे मारे गये।
अब केवल पोता गोपी ही बचा था। अम्मा जी मेहनत मजदूरी करके उसे सरकारी विद्यालय मे पढा रही थी।
वैसे तो गोपी बहुत समझदार था।वह भी मन लगाकर पढ़ता था। वह चाहता था पढ़-लिखकर वह कुछ बनकर अम्मा जी का सहारा बने।
उसके विद्यालय मे रघू नामका लड़का भर्ती हुआ जो सारा दिन इधर-उधर घूमता। उसने एक दल बनाया हुआ था।वह
अमीर बाप की बिगड़ैल संतान था। उसने गोपी को भी अपने दल मे शामिल करना चाहा पर उसने मना कर दिया।
एक दिन गोपी घर जा रहा था कि उसने पेड़ के नीचे कुछ लड़को को ताश खेलते दखकर वह रूक गया।
गोपी ने देखा -राजा ने पांच रूपए की बाजी लगाकर पचास रुपए जीत लिए।
गोपी के मन मे गहरा प्रभाव पड़ा और वह भी बहक गया। अम्मा जी ने उसे फीस के रुपए दिये जो वह हार गया।
विद्यालय के मास्टर जी घर आकर कहने लगे -अम्मा जी कल फीस भरने की अन्तिम तारीख है,यह सुनकर अम्मा जी ने सोचा-उन्होने गोपी के हाथ तो फीस भेज दी थी।
जैसे ही गोपी घर आकर अम्मा जी से कहने लगा -भूख लगीं है खाना दो?
अम्मा जी ने कहा -मैने तुम्हारा ठेका नही उठाया,कमाओ और खाओ,यह सुनकर गोपी को दिन मे तारे दिखाई देने लगे।दो दिन भूखा प्यासा इधर-उधर भटकना रहा।
किसी ने उसे काम नहीं दिया।
वह घर आकर सोचने लगा अम्मा जी से मुझे माफी माग लेनी चाहिए।वह अम्मा जी के पैरों पर गिरकर कहने लगा -अम्मा मुझे माफ कर दो?
आगे से मैं ग़लत काम नहीं करूंगा और मन लगाकर पढ़ूंगा
अम्मा जी ने खींच कर उसे गले से लगा लिया और कहा -अरे मुन्ना भूख के मारे तुझे दिन मे तारे दिखाई देने लग
गए थे ना यह सुनकर गोपी ने सिर झुका लिया।
स्वरचित
कान्ता नागी