डोरबेल की आवाज सुनकर निम्मी दौड़कर दरवाजा खोलने पहुंची आज उसकी किसी सहेली ने आना था। मगर दरवाजे पर बड़ी ननद नमिता को देखकर चौंक पड़ी अरे दीदी आप, बिना खबर किये कैसे आना हुआ ? क्यूँ बहु तुम तो ऐसे चौक रही हो नमिता को देख जैसे भूत देख लिया हो भई उसका घर है वो चाहे जब आये मेहमान तो नहीं जो आने के पहले सूचित करे तुमको, निम्मी की सासूमां भारती जी बेटी की आवाज सुनकर उसके स्वागत के लिए बिस्तर से उठकर बाहर दरवाजे तक आ गईं ।
निम्मी कमरे में जाकर अपने पति वरूण से बोली ये तुम्हारी बहन जब देखो तब मुंह उठाए चली आती है निम्मी की आवाज गुस्से वाली थी । वरूण चौंककर बोला अरे नमिता दीदी आई है क्या? कब आईं पता ही नहीं चला बच्चे भी आयें है क्या? हां-हां आने की सूचना देने के लिए ढ़ोल नगाड़े बजवाने थे क्या ?
कह तो ऐसे रहो हो …निम्मी झुंझलाहट से बोली। पत्नी कै गुस्से से बोलते देख वरूण को बुरा तो लगता है बोलता है निम्मी तुम इतना गुस्से में क्यों हो ? दीदी का अपना घर है वो आ नहीं सकती क्या ? निम्मी और क्रोधित हो बोली बस मैं हूं न मौजूद घर में सेविका फालतू निखट्टू सेवा के लिए मौजूद जो चाहे जब चाहे सर उठा कर चला आये।
निम्मी की बात पर वरूण को बुरा तो लगता है वो निम्मी को नाराज नहीं करना चाहता था। उसको पता है ज्यादा दीदी का पक्ष लिया तो निम्मी ने बखेड़ा खड़ा कर देना है । उसको समझाते हुए कहता है। निम्मी देखो दीदी कितनी सीधी-सादी घर के कामों में तुम्हारी मदद भी कर देती ही है। इसमें परेशानी ही क्या है? अरे काम में मदद तो तब करेंगी जब माजी करने देंगी सारा समय साथ बैठाये रहती बतियाने में लगी रहती। निम्मी हाथ नचाती हुई भौहें फैलाती हुए बोली।
“तुम चिंता मत करो मैं समझा दुंगा मां को, कम बतियायें “!!
वरूण उठकर माँ के कमरे की तरह चल पड़ा देखा दीदी नमिता माँ के साथ बैठी बाते कर रही।
अरे दीदी कब आये आप वरूण दीदी के पांव छूते प्रणाम करते हुए बोला –
“ बस भाईया अभी कुछ देर पहले ही आई ,माँ से फोन में बात हुई उनकी तबीयत खराब सुनकर रहा नहीं गया इसलिए दौड़ी चली आई “ ।
“और बच्चे कहां है “! वरूण बच्चों को इधर उधर खोजता हुआ बोला।
अरे भाई होंगे कहां बाहर की तुम्हारे बच्चे रिंकू टिंकू मिल गये तो वहीं से उनके साथ हो लिए पार्क में खेलने चले गए।
तभी वरूण चतुराई से बोला दीदी आपके हाथ की चाय पीने कि बहुत मन है। नमिता मुस्कुराई और किचन में चाय बनाने दौड़ पड़ी। चाय बना सबको कप पकड़ा निम्मी को आवाज लगाई आओ चाय तैयार है। निम्मी आई और चाय पीते पीते बोली आपने क्यों कष्ट किया मै बना देती ।
नमिता विनम्रता से बोली क्या फर्क पड़ता है आप ने बनाई या मैंने बनाई चाय बन गई पीयें लुत्फ उठाये ।बस ऐसे ही दो दिन बीत गये कुछ न कुछ फरमाईश नमिता से चतुराई से काम निकलवाते । भाई पत्नी को खुश करने के लिए फरमाइशें करता बहन छोटे भाई का प्यार समझ खूशी खुशी फरमाइशें पूरी करती अच्छे से अच्छा बनाकर खिलाने की सोचती। कभी पीजा कभी पास्ता छोले भटूरे ठीक वैसे ही दौड़ दौड़ बनाती जैसे अपनी शादी से पहले भाई के लिए बनाती थी।
आज घर में मेड माया ने काम किया साफ सफाई कपड़े बर्तन थोड़ा बहुत सब्जी कटाई छंटाई भी कहो तो कर देती, सब काम के बाद निम्मी से बोली मालकिन दो दिन छुट्टी चाहिए गाँव जाना सासूमां बहुत बीमार है। निम्मी गुस्से में बोली कितनी छुट्टी ले चुकी है इस महिने अब तुम्हारी तनख्वाह में से पैसे काटने पड़ेंगे तब तुम्हारा दिमाग ठिकाने आयेगा ।
मेड, माया कहती हैं मालकिन आप पैसे अवश्य काट लीजिए मुझे कोई परेशानी नहीं आप पैसे काटे मगर दो दिन छुट्टी दे दीजिए मेरी सासूमां बहुत बीमार है उसने समय-समय पर मेरी बहुत देखभाल की है अब वो बीमार है जाती तो मेरा भी फ़र्क बनता है
उनकी देखभाल करूं। मालकिन पैसे ही दुनिया में सब कुछ नहीं होते प्रेम, त्याग भी जरूरी है जो रिश्तों को बनाये रखने में मददगार होता है। कुछ लोग बस पैसों की ही भाषा बोलते हैं कुछ के लिए प्यार मौहब्बत अपनापन महत्वपूर्ण होता है।
वरूण निम्मी से कहता है अरे दो ही दिन की बात है तुम चिंता मत करो दीदी आई हुई है वो बहुत सीधी सादी गाय समान है एक बार कह दो काम कभी मना नहीं करती है देखना उनके रहते तुमको मेड की जरूरत ही महसूस नहीं होगी। निम्मी खुश हो जाती है हाँ यह सही रहेगा आप किसी न किसी बहाने दीदी से काम निकलवा लेना मैं अपनी बीमारी का बहाना करके लेट जाऊंगी
अब जब मुफ्त की मेड घर में तो चिंता किस बात की जब दोनों बातें कर रहे खिलखिला रहे होते हैं उसी समय नमिता वहां से गुजरते हुए उनकी सारी बातें सुनकर आश्चर्य चकित रह जाती है
उसका मन बिखर कर रह जाता है वो भाई जो बचपन से जवानी तक उसके आने पीछे घूमता उसको बड़ी बहन का सम्मान देता आज पत्नी को खुश करने के लिए अपनी बड़ी बहन को मेड का दर्जा दे रहा है।
माना की यह मेरा घर है अपने घर में काम करने में शर्म कैसी ?
“मगर घर के काम को लेकर रिश्ते में तोल-मोल” ।
ये वो ही भाई है जो उसके बिना दो पर नहीं रह पाता था । कितना फर्क पड़ जाता है शादी के बाद
आज बाबा होते तो इतनी हिम्मत होती इसकी कितना चाहते थे उसको जीते जी यही कहते रहे बेटा दोनों भाई बहन आपस में प्यार बनाये रखना
“ ये भाई बहन का रिश्ता निस्वार्थ व पवित्र होता है ये दिल से बंधे नाजूक धागे से रिश्ते इधकी गरिमा बनाए रखना बेटा जरा सी ठेस लगने पर टूट जाते हैं। लेकिन चाहों तो मजबूती में भी कम नहीं होते” ।
उसका दिल रो उठता है कहता है जीवन में कभी कभी हम रिश्तों की अहमियत को समझ नहीं पाते।
वास्तव में यही रिश्ते हमारी ताकत होते हैं। जिसकी नींव प्रेम और त्याग पर टिकी होती है।
नमिता माँ के पास आती है और सभी भाई और बहु निम्मी की सुनी बातें बताती है। माँ भी सच्चाई जानकर बहुत व्यथित होती है। नमिता कहती हैं माँ तुम मेरे साथ चल रही हो मेरे घर में, मैं वहीं आपकी सेवा टहल कर लूंगी चार दिन को रहने आई थी लेकिन मेरा दो ही दिन में मन भर गया आपके दामाद तो पहले ही कह रहे थे मां को यही बुला लो पर मैंने सोचा बच्चों की छुट्टी भी है और भाई भाभी से भी मिलना हो जायेगा मगर मुझे नहीं पता था समय के साथ प्यार भी खत्म हो जाता है एक विश्वासघात शारीरिक और मानसिक भावनात्मक रूप में समस्याओं को बढा सकता है।
“ रिश्तों में न होड़ न दौड़ निस्वार्थ प्रेम ही उसको लम्बे समय तक बांधे रख सकता है “ ।
नमिता अपना और माँ का सामान पैक करने लगती है और चलने को तैयार हो जाती है तभी निम्मी और वरूण आ जाते हैं और पूछते हैं आप कहां जा रहे हैं – नमिता कहती हैं पति का फोन आया जरूरी काम की वजह से मेरा वापस जाना जरूरी हो गया है। मैं माँ को साथ लिए जा रही हूँ जब जरूरत हो मन हो तो लेने आ जाना ।
जाते जाते वो कहती जाती हैं भाई रिश्तों की कद्र करना जरूरी है जीवन में हर रिश्ते की अहमियत उसकी वक्त पर कद्र सम्मान ही उसको मजबूत बनाता है। माना की रिश्ते तोड़ना सही नहीं मगर जहां कद्र ही न हो वहां निभाये भी नहीं जा सकते।
दिल से बंधे ये नाजूक धागे से रिश्ते बहुत महीन होते हैं जिसे अपनेपन से निभाया जाता है। वरना टूट कर बिखरने में देर नहीं लगती । मतलब की दुनिया में जीने वाले रिश्तों की अहमियत क्या समझेंगे ? वरूण और निम्मी के चेहरे पर शर्म के भाव वो स्तब्ध से खड़े उनको दूर तक जाता देखते रहते हैं
लेखिका- डॉ बीना कुण्डलिया