घर से बाहर निकलते ही सब-कुछ कितना परफ़ेक्ट लगता था—
हाथों में हाथ डाले मुस्कुराता हुआ एक जोड़ा, जो दूर से देखने वालों को आदर्श जीवन की मिसाल लगता। सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें चमकती थीं—कभी कैफ़े में कॉफ़ी, कभी पहाड़ों पर घूमना, कभी एक-दूसरे को समर्पित लम्बी भावुक पोस्टें।
लेकिन असलियत उन मुस्कुराहटों के पीछे दबे दर्द को कोई नहीं देख पाता था।
रीना और करण की शादी को पाँच साल हुए थे। शुरुआत में दोनों के बीच प्रेम था, पर धीरे-धीरे वह प्रेम शादी के बोझ, अपेक्षाओं और समाज में परफेक्ट दिखने के चक्कर में एक खामोशी छाने लगी—इन चिंताओं के नीचे उनका रिश्ता घुटने लगा। मगर रिश्ते की यह सच्चाई सिर्फ कमरे की चारदीवारी तक सीमित रहती; बाहर आते ही दोनों एक-दूसरे का हाथ थाम लेते, ताकि लोग समझें कि उनका बंधन कितना मजबूत है।
रीना एक संवेदनशील और सरल स्वभाव की लड़की थी, जो रिश्तों को मन से निभाना चाहती थी। मगर करण अपने करियर और समाज की नज़रों में ‘परफ़ेक्ट पति’ दिखने की दौड़ में फँस चुका था। वह वास्तविकता से ज़्यादा छवि को महत्त्व देता— किसको क्या दिखाना है, कौन-सी पोस्ट कब डालनी है, उनकी मुस्कुराहट कितनी बड़ी होनी चाहिए… सब कुछ सोच-समझकर तय किया जाता।
सबके बीच सराहना मिलती तो करण खुश हो उठता, जबकि रीना के दिल पर बोझ और बढ़ जाता।
एक दिन फोटोशूट जैसी सजी-धजी तस्वीरें डालकर वे दोनों एक पारिवारिक समारोह में पहुँचे। रीना ने देखा वहाँ की लोग उतने अच्छे से ड्रेस अप नहीं थे लेकिन उनमें आपसी तालमेल बेहतर लग रहा था। जो जैसा है वैसा ही स्वीकार कर लिया था कुई कपल ने अपने रिश्ते को।वे लड़ भी रहे थे लेकिन परवाह भी कर रहे थे एक-दूसरे की। यह सब देख रीना को लगा वे कौन सी छवि लेकर अपने रिश्ते को बोरिंग बना रहे हैं?
उसे महसूस हुआ जीवन में परफेक्ट कुछ भी नहीं होता।इंसान का मन और बुद्धि बिल्कुल अलग होते हैं और दोनों में संतुलन बनाकर चलना ही हर रिश्ते के लिए आवश्यक है।
उस दिन पार्टी में सबने उनकी ‘परफेक्ट कपल’ वाली छवि पर खूब तारीफ़ें कीं। रीना मुस्कुराती रही—पर भीतर ही भीतर टूट रही थी। घर लौटते समय कार में गहरी चुप्पी पसरी रही।
रीना ने हिम्मत कर धीमे स्वर में कहा,
“करण, क्या हम सच में खुश हैं, या सिर्फ़ दिखावा कर रहे हैं?”
करण ने चौंककर उसकी ओर देखा, फिर नजरें दूसरी ओर मोड़ लीं,
“लोग क्या सोचेंगे? अगर हमें परेशानियाँ हैं, तो भी सबको क्या बताना?”
रीना ने थके मन से पूछा,
“लेकिन लोग क्या सोचेंगे से क्या हमारा दर्द कम हो जाता है? क्या हम एक-दूसरे से सच में बात भी करते हैं?”
करण के पास कोई जवाब नहीं था।
उसे पहली बार महसूस हुआ कि उसने लोगों की नज़र में अपने रिश्ते को चमकदार बनाने में असली रिश्ता ही खो दिया है।
कुछ दिन बीत गए। दिखावटी मुस्कुराहटें, बनावटी कैप्शन और परफेक्ट कपल की छवि— अब रीना को हर दिन चुभने लगी। उसने सोशल मीडिया पर डाली अपनी हाल की तस्वीरें ध्यान से देखी— हर तस्वीर में स्माइल थी, पर आंखों में एक गहरी खालीपन।
एक शाम रीना ने करण से स्पष्ट संवाद किया।
“मैं थक गई हूं इस दिखावे से। हमारी तस्वीरें खूबसूरत हैं, लेकिन हमारा रिश्ता नहीं। अगर हमें इसे सच में बचाना है, तो हमें एक-दूसरे से झूठ बोलना बंद करना होगा।”
“लेकिन हम एक-दूसरे से झूठ कब बोलते हैं?” करण रीमा को देखकर बोला।
‘”मन कुछ और चाहे और हम कर कुछ और कह रहें हों तो इसे झूठ ही कहते हैं करण। हम झूठ एक-दूसरे से ही नहीं अपने-आप से भी बोल रहें हैं।”
करण चुप रहा, पर यह चुप्पी पहली बार सोच से भरी थी।
रीना की बात उसके दिल तक पहुँच गई थी।
उसने धीरे से कहा,
“मैं कोशिश करूंगा… लेकिन क्या तुम मेरे साथ रहोगी?”
रीना ने नर्म आवाज़ में उत्तर दिया,
“मैं रहूंगी, लेकिन उस रिश्ते में जहाँ सच्चाई हो, जहाँ दर्द छिपाया न जाए, जहाँ दिखावा नहीं— संवाद हो।”
उस रात दोनों बहुत देर तक बैठे। पहली बार उन्होंने बिना छल, बिना डर, बिना दिखावे के एक-दूसरे से अपने दिल की बात कही।
आज उनको मन बहुत हल्का लगा।और वे गहरी नींद सोये बिल्कुल बच्चों की तरह।
समय लगा, आदतें बदलने में और सच को स्वीकारने में,लेकिन कोशिश कभी जाया नहीं जाती है ।
उन्होंने सोशल मीडिया चमक कम की, आपस में बातचीत बढ़ाई। एक-दूसरे को अधिक समय दिया।
अब वे आपस में खुल कर बातें करने लगे।कभी दोंनो में छोटी-मोटी झड़प भी हो जाती लेकिन दोंनो एक-दूसरे को मना भी लेते।अब रिश्ते में जान आने लगी थी।
अब लोगों को उनकी कम तस्वीरें कम दिखतीञ, पर उनके घर में असल मुस्कुराहटें बढ़ने लगीं।
धीरे-धीरे उनकी साझेदारी बनावटी तस्वीरों पर नहीं, बल्कि सच्चे संवाद में परिवर्तित होने लगी —और यही उनकी सबसे बड़ी जीत थी।
क्योंकि रिश्ते तब सुंदर लगते हैं,
जब वे दिखने में नहीं, जीने में सच्चे हों।
मीरा सजवान ‘मानवी’
स्वरचित, मौलिक
फरीदाबाद, हरियाणा