प्रिया पाठकों आज जो मैं आपके साथ शेयर करने जा रही हूं•• ये हर घर की•• घर-घर की कहानी है।
फर्क सिर्फ इतना है कि इस कहानी में देवरानी का रोल प्ले अच्छा है
परंतु कई बार जेठानियां सही होती हैं और देवरानियां विलेन•• या यूं कहें कि जीसको घर की प्रॉपर्टी खाने की आदत हो•• वहां बेइमानी का बीजारोपण शुरू हो जाता है।
अब इस कहानी में कुछ इस तरह की ही बात है:-
5 साल पहले:-
मालती ये डिसीजन तुम ही ले सकती हो•• मैं क्या कहूं?
अब मेरे मां-बाप दोनों ही जा चुके हैं मैं अनाथ हो गया!
कहते हुए विवेक की आंखों में आंसू आ गए।
प्लीज आप टेंशन ना ले! मैं हूं ना•• हर घड़ी आपके साथ!
हालांकि मां-पापा की जगह तो मैं नहीं ले सकती परंतु मां के आदर्शों, और घर की परंपराओं को जोड़ के रखने की कोशिश करूंगी!
विवेक के आंखों में आये आंसू को पोंछते हुए मालती बोली।
विवेक के पापा जो कोरोना के फर्स्ट वेभ में ही जा चुके थे और उसके ठीक 1 साल बाद उसकी मां भी चल बसी।
अब मां के काम-क्रिया से जब दोनों बेटे निवृत हुए तो
भैया! अब हमें भी दिल्ली जाना होगा (विवेक दिल्ली में जॉब करता था) एक महीना से ज्यादा हो गया ऑफिस से अब कॉल भी आने लगी!
विवेक अपने बड़े भाई से पूछा।
देख ले भाई !अगर ज्यादा जरूरी है
तो चला जा बाकी का बचा काम मैं संभाल लूंगा!
ठीक है !मैं कल की टिकट बुक कर लेता हूं!
तभी विवेक की बहन बिन्दु जी जो, दोनों भाइयों से बड़ी थीं विवेक के जाने वाली बात सुनकर बोलीं ।
तुम लोग घर की आमदनी का क्या करोगे? पहले माताजी हैंडल करती थीं !
दीदी! भैया है ना सब देख लेंगे !
ठीक है भैया कर लेगा••पर अब तुम लोगों को आगे की भी तो सोचनी होगी ना••? हिसाब-किताब बराबर रहना चाहिए ताकि मन में कोई मैल ना रहे! इसलिए मैं कहती हूं कि••
क्यों ना मालती और नैना (जेठानी देवरानी) के नाम से जॉइंट अकाउंट बना दिया जाय जिसमें घर का जो भी इनकम हो वह सब जमा होते रहेगा !
वीना जी अपनी राय देते हुए बोलीं।
भाइयों की सहमति से मालती और नैना के नाम एक “जॉइंट अकाउंट” खोल दिया गया।
इधर मलती भी दिल्ली जाने की तैयारी में लगी थी।
सुनो मैंने डिसीजन ले लिया है! मालती अपने बैग में कपड़े भरते हुए बोली।
कैसा डिसीजन ?
विवेक मोबाइल के स्क्रोल को अप- डाउन करते हुए पूछा ।
अरे वही जो मैंने आपसे दीदी के जिम्मे में अपनी “गोदरेज की चाबी” रखने की बात की थी ना••और आपने कहा था वो तुम्हारा डिसीजन है!
अच्छा क्या सोचा?
यही कि अभी चाबी तो हमेशा से मैं मां को देते हुए आ रही थी! अब कहीं मैं इसे अपने साथ ले जाती हूं तो उन्हें (जेठानी) बुरा न लग जाए कि मां के मरते ही इसने तो अपना- पराया शुरू कर दिया!
मैं नहीं चाहती कि
कई देवरानी-जेठानी की तरह हमारे मन में भी ईर्ष्या-द्वेश बन जाएं !
इसलिए मैं उन्हें बड़ी होने के नाते और सम्मान देते हुए घर की पूरी जिम्मेदारी सौपना चाहती हूं और यह सिर्फ चाबी ही नहीं बल्कि मेरा विश्वास,भरोसा और प्यार है••ताकि उन्हें भी एक अपनापन सा लगे!
मां तो अब रही नहीं! हमारे लिए भैया-दीदी ही “गार्जियन”के रूप में है!
कहते हुए मालती की आंखें नम गई।
शाबाश मालती!तुम्हारी सोच से मैं काफी प्रभावित हूं! तुम सही कह रही हो अब हमारे लिए तो भैया- भाभी ही सब कुछ है!
अच्छा अब जल्दी-जल्दी से पैकिंग करो! हमारी ट्रेन शाम की है और हमारी पैकिंग भी अधूरी है !
विवेक भी मालती के काम में हाथ बटाने लग गया।
कुछ दिन तो सब कुछ अच्छा चलता रहा। परंतु दो-तीन साल बाद:-
कई दिनों से मालती विवेक को काफी चिंतित देख रही थी कभी-कभी वह रात में ठीक से सो भी नहीं पा रहा था।
क्या बात है जी! कई दिनों से देख रही हूं आप कुछ खोए-खोए से रहते हैं ?
हां मालती!इधर पिछले महीने में जब हम घर गए थे तो मैंने भैया से घर का हिसाब मांगा! तो उन्होंने मुझे एक डायरी थमाई जिसमें सारे “फ्लैट्स का रेंट” तो लिखा था परंतु भैया ने अपनी सुविधा के लिए जो घर में काम करवाये उस खर्च को भी उन्होंने जॉइंट में ही लिख दिया! मुझे यह चीज सही नहीं लगी क्या यह उचित है ? बताओ?
पूरे लाख का खर्च हुआ है जिसको उन्होंने जॉइंट में डाल दिया!
यह सही नहीं है !हमने तो नहीं कहा था कि इसको तोड़ नया बनवाओ! जब इच्छा आपकी थी तो खर्च भी आपको ही करना था!
हां शायद आप सही कह रहे हैं! मालती पति की सोच में साथ देते हुए बोली।
और भी कई छोटी-मोटी चीज जिससे मुझे आपत्ति है परंतु मुझे बोलना सही नहीं लगा!
हां अशांति भी ठीक नहीं !
जाने दीजिए!
हम लोगों को मिलजुल के ही रहना चाहिए कभी-कभी कुछ देखकर भी आंखें बंद करनी पड़ती है !भगवान बस आपको सही सलामत रखे तो खुशियां अपने आप आते रहेंगी!
तुम कितनी अच्छी हो मालती!
तुमने हमेशा इस परिवार को जोड़ के रखने की कोशिश की है!
मैं फक्र से कह सकता हूं कि तुम मेरी बीवी हो!
इस तरह जब भी विवेक को घर की प्रॉपर्टी की चिंता होती तो मालती
विवेक को समझा कर शांत कर देती!
पर ऐसा ज्यादा दिन नहीं चल सका।
कुछ महीनों बाद:-
एक बार मालती अपने ससुराल बच्चों के साथ गई!उसने देखा कि उसकी चाबी “लावारिस” की तरह बाहर की दीवार के खूंटे में टंगी थीं । उस समय तो उसे बड़ा अजीब लगा क्योंकि कई कीमती सामान गोदरेज की अलमारी में रखी हुई थीं।
उसने घबराकर फटाफट चाबी उठाई और गोदरेज खोल कर देखा। सामान सुरक्षित थी और एक लंबी चैन की सांस लेते हुए वह वही धम से जमीन पर बैठ गई ।
नैना के इस असावधानी से उसे बहुत गुस्सा आया।
एक नजर अपने कमरे पर डाली तो कमरा भी काफी बिखरा पड़ा था ऐसा लगा जैसे सालों से बंद है !
दीदी! आपको चाबी इस तरह बाहर नहीं रखनी चाहिए ऐसे तो कोई भी इसे उठा ले जाता और मेरा कमरा भी सबसे बाहर है कुछ होता भी तो आप लोगों को पता नहीं चलता!
मालती ने शांत होकर कहा।
इतना सुनते ही नैना अपने आपा खोते हुए बोली
क्या मैंने तुम्हारी चाबी का ठीका ले रखा है अपना सामान तो मैं सही से रख नहीं सकती और तुम्हारी रखूंगी?
नहीं दीदी! मेरे कहने का मतलब ये था कि आप चाबी अपने गोदरेज में रख देती•• क्योंकि उसमें लाखों की ज्वेलरी रखी है!
मालती संभलते हुए बोली।
तो चाबी बाहर रहने से तुम्हारे गोदरेज में डाका तो नहीं पड़ गया ना या लूट तो नहीं मची ? इतना ही डर है तो चाबी अपने मां-बाप के घर पर रखो!
मालती के मम्मी-पापा भी इसी शहर में रहते थे।
खबरदार दीदी! आप मां-बाप पर मत जाइए और इस तरह का शब्द भी इस्तेमाल मत कीजिए जेठानी है आप सास बनने की कोशिश ना ही करें तो बेहतर होगा! नैना के ऐसे बर्ताव से मालती गुस्से में आ गई।
मैं नहीं रखती तुम्हारी चाबी!
ठीक है मैं तो इस बार ही चाबी अपने साथ लेकर चली जाती परंतु आप लोगों को दूसरे मकान में शिफ्ट होना था इसलिए मैंने इसे छोड़ने की सोची!
मैं नहीं जाऊंगी दूसरी मकान में! तुमको जाना है जोओ!
(दूसरा घर भी नैना और मालती के सास-ससुर का बनाया हुआ था जो कि नया था । सभी पुराने घर छोड़, नए घर में शिफ्ट होने वाले थे।)
अच्छा दीदी! मैं आपसे बहस करना नहीं चाहती ! आपको जो अच्छा लगे आप करो! जब मुझे जाना होगा मैं अपना सामान लेकर चली जाऊंगी! कहते हुए मालती अपने बच्चों को लेकर वहां से मायके चली आई।
दिल्ली आई तो विवेक से उसने सारी बात शेयर की।
देखो मालती अब भाभी-भैया के साथ बहस करने से कोई फायदा नहीं! मैं भी देख ही रहा हूं इस #बनावटी रिश्तों को! इस बार घर जाकर बंटवारा कर लें तो बेहतर होगा!
विवेक!मैंने दीदी को हमेशा अपनी बड़ी बहन के रूप में देखा! और बहुत कोशिश की कि सब एक-दूसरे से मिलकर रहें! परंतु मैं नाकाम रही!
कोई बात नहीं••जो होता है अच्छे के लिए ही होता है!
क्यों ना हम दीदी और जीजाजी (नंद और नंदोई) से सारी बातें शेयर करें?
थोड़ी देर रुक कर मालती बोली।
किसी को कुछ नहीं बताना और ना ही पूछना! मैंने डिसीजन ले ली है!
विवेक के निर्णय से मालती भी निश्चिंत हो गई। और उसने मन ही मन सोचा कि अब अलग होने में ही फायदा है! रिश्तो में मधुरता भी बनी रहेगी।
दोस्तों मैं इस कहानी के माध्यम से यह कहना चाहती हूं कि अगर मां-बाप के रहते ही बंटवारा हो जाए तो बच्चों में लड़ाई की नौबत ही नहीं आयेगी । अगर मां-बाप बटवारा नहीं कर सके तो बच्चों को आपस में प्यार और सहमति से बिना लड़ाई किये बटवारा कर लेना चाहिए ताकि उनके रिश्तों में खटास न आए ।
कहानी पढ़िए और अपनी-अपनी राय व्यक्त कीजिए!
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धन्यवाद ।
मनीषा सिंह।