दिखावटी रोना – सुदर्शन सचदेवा : लघुकथा

सावित्री के घर आज खूब रौनक थी , क्योकि काशवी की शादी तय हो गई थी | रिश्तेदार आ जा रहे थे, कहीं हंसी ठिठोली और कहीं मस्ती में झूम रहे थे | सावित्री भी सबके साथ हंसते हुए तैयारियों में व्यस्त थी – पर कभी कभी दूसरे कमरे में जा कर रो देती थी | खुद से ही सवाल पूछती , मेरी लाडो रानी का घर बसने जा रहा है वही तेरी आंखे नम हो रही हैं,  लेकिन उसके जाने के बाद घर खाली खाली लगेगा , मेरी सबसे प्यारी जान मुझसे अलग हो रही है | 

सावित्री ने जल्दी से आंसू पोंछें , फिर मेहमानों के पास लौट आई | चेहरे पर वही चमक , होठों पर मुस्कान,  किसी को आभास नहीं था कि उनके भीतर कितनी खामोशी है | 

शादी वाला दिन जब काशवी विदा हो रही थी तो सावित्री ने गले लगाया तो एक आंख से तो रोवे और दूसरी आंख से हंसे , तो सबने कहा – यह क्या – कुछ नहीं खुशी के आंसू हैं, दिखावटी भी रोना पड़ता है जिससे दुनिया कुछ न कह सके| और वो सब समझ जाए | 

सुदर्शन सचदेवा 

विषय : मुहावरा : एक आंख से रोवे एक आंख से हंसे यानि : दिखावटी रोना

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