धुंधली पड़ती शाम (भाग-4) (अंतिम भाग) – पूनम बगाई : Moral stories in hindi

रोहन ने एक गहरी सांस ली और निशा की तरफ देखा, जैसे वो इस पल में हर शब्द सोच-समझ कर बोलना चाहता हो। उसकी आँखों में पश्चाताप का सागर था। हाथ जोड़कर उसने कहा, “निशा, मैं जानता हूँ, मैंने तुम्हें और अभी को बहुत तकलीफ़ दी है। मैंने तब साथ नहीं दिया जब सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। आज मैं अपनी सारी गलतियों के लिए माफ़ी मांगने आया हूँ। मेरे पिता की ग़लती पर चुप रहना सबसे बड़ी भूल थी। मैं सिर्फ़ तुम दोनों के साथ रहना चाहता हूँ, और कुछ नहीं।”

निशा ने उसकी आँखों में देखा, कुछ पल के लिए वक़्त ठहर सा गया। रोहन का दर्द, उसकी आवाज़ में बसा सच्चाई, निशा को भीतर तक झकझोर गया। उन बीते सालों की यादें, अकेलेपन के वो लंबे पल, और बेटे का पिता को हर रोज़ याद करना, सब उसके दिल में एक तूफ़ान खड़ा कर रहे थे।

निशा (आँखों में आँसू लिए, दर्द भरी आवाज़ में): “रोहन, मैं नहीं कह सकती कि माफ़ करना आसान है। लेकिन इतने सालों से मैं भी इस दर्द को अपने साथ लेकर जी रही हूँ। कभी-कभी सोचती थी, क्या हमारा रिश्ता वाकई में इतना कमज़ोर था कि एक झटका बर्दाश्त नहीं कर सका? शायद नहीं। तुम मेरे बेटे के पिता हो, और मैं कभी नहीं चाहूँगी कि अभी को तुमसे दूर रखूँ।”

रोहन (गंभीर स्वर में): “मैं तुम्हारा साथ कभी छोड़ना नहीं चाहता था। पर मुझे उस वक़्त समझ नहीं आया कि सही क्या है। अब मैं बस तुम्हें और हमारे बेटे को वापस चाहता हूँ। हम एक नई शुरुआत कर सकते हैं, निशा। क्या तुम मुझे एक और मौका दोगी?”

निशा ने गहरी साँस ली। उसके दिल के भीतर एक जंग छिड़ी थी – एक तरफ़ परिवार की इज्जत, जिसने उसे साथ दिया, और दूसरी तरफ़ उसका अपना परिवार, जो टूटने की कगार पर था। वह जानती थी कि उसकी माफी से पुरानी जख्में भर नहीं जाएंगी, लेकिन यह उनका भविष्य ठीक कर सकता था।

कुछ क्षण बाद, निशा ने अपना सिर हिलाते हुए कहा:

“मैं तुम्हें माफ़ करती हूँ, रोहन। पर ये माफ़ी तुम्हारी ग़लतियों का अंत नहीं, बल्कि हमारे रिश्ते का एक नया आरंभ है। हम अपने बेटे के लिए इस रिश्ते को फिर से जी सकते हैं, लेकिन इस बार हमें हर हालात का सामना साथ में करना होगा।”

रोहन की आँखों में उम्मीद की किरण लौट आई। उसने निशा का हाथ थामा और धीरे से कहा, “हम ये साथ निभाएँगे, निशा। मैं अब तुम्हें कभी निराश नहीं करूँगा।”

लेकिन परिवार के बंधन अभी भी उनकी राह में थे।

निशा ने अपने पिता और भाइयों को मनाने की कोशिश की। उसने उनसे कहा, “मैं अपने बेटे के लिए ये फैसला ले रही हूँ। आप लोग हमेशा मेरे साथ खड़े रहे, और मुझे अपनी ज़िंदगी की सही राह दिखाई। पर मैं अब रोहन को दूसरा मौका देना चाहती हूँ। मुझे उम्मीद है कि आप सब मेरे इस फैसले को समझेंगे।”

लेकिन श्री शर्मा ने सख़्ती से जवाब दिया, “निशा, हमने हमेशा तुम्हारे लिए लड़ाई लड़ी है। हमने समाज के खिलाफ खड़े होकर तुम्हारा साथ दिया। अगर अब तुम वापस रोहन के पास जाती हो, तो हमारे उन फैसलों का क्या होगा?”

निशा (आँखों में आँसू भरकर): “पापा, मैं जानती हूँ कि आपने मेरे लिए बहुत कुछ किया है। लेकिन अब मैं अपने बेटे के भविष्य के बारे में सोच रही हूँ। क्या आप उसे पिता से दूर रखना चाहते हैं?”

पर निशा के मायके वाले अपने सामाजिक बंधनों में जकड़े हुए थे। वे उसे माफ़ नहीं कर सके। इस कारण, निशा और रोहन ने फैसला किया कि वे माता-पिता के दिए घर को छोड़ देंगे और अपनी नई दुनिया बसाएँगे, जहाँ सिर्फ़ उनके रिश्ते और बेटे की खुशी मायने रखेगी।

निशा, रोहन और अभी ने नए घर में कदम रखा।

शुरुआत में सब कुछ खुशहाल लग रहा था, लेकिन परिवार के बड़ों की गैरमौजूदगी एक खालीपन छोड़ रही थी। निशा कभी-कभी खिड़की के बाहर देखती, सोचती, “क्या मेरा फैसला सही था? क्या मेरे माता-पिता कभी मेरे फैसले को समझ पाएँगे?”

एक दिन, अचानक दरवाज़े की घंटी बजी।

निशा ने दरवाज़ा खोला, और सामने उसका बड़ा भाई खड़ा था। उसकी आँखों में एक नई समझदारी और प्यार की चमक थी। वह अंदर आया और निशा को गले लगाते हुए कहा, “मैंने तुम्हें हमेशा समझा था, बहन। हम बेशक समाज के बंधनों में बँधे थे, लेकिन दिल के रिश्ते इन बेड़ियों से कहीं ऊपर होते हैं। पापा और मम्मी तुमसे नाराज़ नहीं हैं, बस हालातों ने उन्हें ऐसा बना दिया है। मैं यहाँ उनका आशीर्वाद देने आया हूँ, उनके दिल में भी तुम्हारे लिए वही प्यार है, जो पहले था।”

निशा की आँखों में आँसू आ गए। वह रोहन की तरफ मुड़ी और हल्के से मुस्कुराई, “शायद हमें समाज की बेड़ियों से आज़ाद होकर ही जीना था।”

रोहन ने निशा का हाथ थामा और कहा, “हमने अपने हिस्से की लड़ाई लड़ी है। अब हमें खुद पर और अपने रिश्ते पर विश्वास रखना है।”

निशा के भाई ने उनकी ओर देखते हुए कहा, “और पापा ने एक बात कही थी, ‘तुम दोनों का साथ होना ही उनका आशीर्वाद है।’ अब तुम्हारे पास पूरा परिवार है। खुश रहो।”

निशा और रोहन ने एक नई सुबह की शुरुआत की।

अब उनकी दुनिया में ख़ुशियाँ लौट आई थीं। उन्होंने अपने बेटे के लिए एक बेहतर भविष्य की नींव रखी थी। परिवार के आशीर्वाद के बिना शुरू हुई ज़िंदगी अब धीरे-धीरे पूरी होने लगी थी। 

मैंने अपनी रचना के ज़रिए रिश्तों की जटिलता और परिवार के बीच संतुलन को दर्शाने की कोशिश की है, जहाँ गलतियों को माफ करना और एक नई शुरुआत करना मुश्किल तो होता है, पर कभी-कभी वही सही रास्ता होता है।

आप सभी को मेरी रचना कैसी लगी अपने विचार ज़रूर दीजियेगा, आपके विचारों का स्वागत है। 

आपकी सखी 

पूनम 

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