तलाक की अंतिम तारीख नज़दीक थी। पांच साल गुज़र चुके थे, लेकिन इन सालों में निशा और रोहन दोनों ही ज़िंदगी के एक अनकहे दर्द से जूझ रहे थे। रोहन ने वकालत में खूब नाम कमाया था, वह अब आत्मनिर्भर हो चुका था। हर तरफ तारीफें बटोरने के बावजूद, उसके दिल में एक खालीपन हमेशा छाया रहता। निशा और अपने बेटे की कमी उसे कचोटती रहती। उसने कई बार खुद से पूछा, “गलती मेरी नहीं थी, न निशा की। फिर हमारा रिश्ता क्यों टूट गया?”
**इसी बीच, निशा की भी ज़िंदगी का संघर्ष जारी था।**
वह अपने बेटे के लिए एक नई ज़िंदगी बना रही थी। स्कूल में पढ़ाना और अपने बेटे को एक अच्छा भविष्य देना उसका सबसे बड़ा मकसद था। लेकिन कभी-कभी, रात के सन्नाटे में, वह अपनी आँखें बंद करके सोचती, “क्या मैंने सही किया? क्या रोहन को छोड़ना ज़रूरी था?”
**एक रात, बेटे के सवाल ने उसकी सोच को हिला दिया:**
बेटा: “माँ, पापा अब भी मुझे प्यार करते हैं ना? वो हमें कभी मिलने क्यों नहीं आते?”
निशा (उसकी आँखों में आँसू छलकते हुए): “हाँ बेटा, पापा तुमसे बहुत प्यार करते हैं। लेकिन कभी-कभी हालात इंसान को मजबूर कर देते हैं।”
उस पल, निशा का दिल टूट सा गया। बेटे की मासूमियत और पिता की कमी का दर्द उसके दिल को गहराई से छू गया।
**दूसरी तरफ, रोहन भी अपने अकेलेपन से जूझ रहा था।**
वह हर दिन अपने काम में डूबा रहता, लेकिन घर आते ही उसकी ज़िंदगी में पसरा सन्नाटा उसे काटने लगता। एक रात उसने आईने में खुद से सवाल किया, “क्या मैंने सही किया? क्यों मैं निशा के साथ नहीं खड़ा हुआ?” और तब उसने फैसला किया, “अब और नहीं। मुझे अपनी गलती माननी होगी और निशा से माफी मांगनी होगी।”
**दूसरी तरफ, निशा के मायके में भी माहौल बदल रहा था।**
श्री शर्मा (गंभीर स्वर में): “निशा, अगर तुमने रोहन को माफ किया, तो हमारी इज्जत का क्या होगा? हम समाज के सामने जो तुम्हारे लिए खड़े हुए थे, वो सब बेकार हो जाएगा।”
निशा (हैरान होकर): “पापा, आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? मैं आपकी बेटी हूं। आपने हमेशा मेरे साथ खड़े होने का वादा किया था।”
माँ (धीमे स्वर में, आँखों में आँसू लिए): “बेटी, हम तुम्हारे भले के लिए ही ये कह रहे हैं। एक अच्छे परिवार में तुम्हारी दूसरी शादी हो सकती है, जो तुम्हारे और तुम्हारे बेटे के भविष्य के लिए बेहतर होगी।”
निशा का दिल भारी हो गया। क्या वह रोहन को माफ कर सकेगी और अपने परिवार का साथ खो देगी?
**रोहन, निशा के घर पहुंचा और गहरी भावनाओं से भरी आवाज़ में बोला:**
रोहन (आंखों में पछतावा और दर्द): “निशा, मैं जानता हूं मैंने बहुत गलतियां की हैं। लेकिन अब मैं समझ गया हूं कि मुझे तुम्हारा साथ देना चाहिए था। क्या तुम मुझे माफ कर सकती हो?”
निशा (गहरी सांस लेते हुए): “रोहन, तुम्हें माफ करना आसान नहीं है। इन पांच सालों में मेरे मायके वालों ने मेरा साथ दिया है। अगर मैंने तुम्हें माफ कर दिया, तो मुझे उनका साथ खोना पड़ेगा।”
रोहन (समझाते हुए): “मैं जानता हूं निशा, लेकिन हम दोनों इस रिश्ते के शिकार हो गए थे। हमारे बेटे के लिए, क्या हम फिर से एक नई शुरुआत नहीं कर सकते?”
निशा के दिल में उलझन थी। क्या वह अपने बेटे के लिए रोहन को माफ कर सकेगी? क्या वह अपने परिवार की इज्जत और समाज के दबाव के बीच अपने दिल की आवाज़ सुन सकेगी?
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प्रश्न:
- क्या निशा अपने परिवार की इज्जत के खिलाफ जाकर रोहन को माफ कर पाएगी?
- क्या निशा के मायके वाले उसे माफ करेंगे, अगर वह रोहन के साथ वापस जाती है?
- क्या रोहन और निशा का रिश्ता फिर से पहले जैसा हो सकेगा?
- क्या निशा का बेटा अपने माता-पिता के साथ मिलकर खुश रह पाएगा?
- क्या समाज और परिवार के दबाव से रिश्ते बचाए जा सकते हैं?
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धुंधली पड़ती शाम (भाग-4) (अंतिम भाग) – पूनम बगाई : Moral stories in hindi
पूनम बगाई