रात का सन्नाटा धीरे-धीरे घर के हर कोने में घुल रहा था। घड़ी की सुई ने दस बजाए ही थे। परिवार के सभी सदस्य डिनर के बाद अपने-अपने कमरों में जाने की तैयारी में थे। हवा में बस एक हल्की सी हलचल थी, जैसे कोई तूफान आने को हो, लेकिन सब अपनी-अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे। निशा, हमेशा की तरह, घर की जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए थकी हुई थी। वह सोच रही थी कि कब उसे कुछ सुकून के पल मिलेंगे।
इसी बीच, श्रीधर, जो शराब के नशे में चूर थे, लड़खड़ाते हुए कमरे में आए। उनके कदम अनियंत्रित थे, और उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। निशा, अपने विचारों में खोई हुई थी, तभी अचानक उसे एक अजीब एहसास हुआ। श्रीधर ने उसे छू लिया। वह सहम गई। उसे इस हरकत से गहरा धक्का लगा, और एक क्षण के लिए उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
**निशा (धक्का देते हुए, आंसुओं में घुटी हुई आवाज़ में):** “पापा जी, ये क्या कर रहे हैं? आपको शर्म आनी चाहिए!”
श्रीधर ने अपने शराबी मन से उसकी बातों को नजरअंदाज किया। उसकी जुबान लड़खड़ा रही थी, और आंखों में नशे की धुंध थी।
**श्रीधर (नशे में, हंसते हुए):** “अरे, बेटी… मैं तो बस… प्यार कर रहा था… इसमें क्या गलत है?”
निशा के मन में क्रोध और बेबसी का सैलाब उमड़ पड़ा। उसका आत्म-सम्मान आहत हुआ था, और वह जानती थी कि अब चुप रहना उसके लिए संभव नहीं था। लेकिन परिवार का माहौल हमेशा से ही ऐसा था जहां महिलाएं चुप रहती थीं, और उनकी आवाज़ को दबाया जाता था।
रोहन, जो निशा का पति था, इस पूरे दृश्य का गवाह था, लेकिन उसके मन में हिचक और कमजोरी थी। वह अपने पिता के सामने कभी खड़ा नहीं हो सका था। जब निशा ने विरोध किया, तो वह घबराहट में उसकी तरफ बढ़ा।
**रोहन (धीरे से, निशा को शांत करने की कोशिश में):** “चुप हो जाओ, निशा। रात गई, बात गई। भूल जाओ। इस पर ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है।”
निशा की आंखों में आंसू आ गए। उसे महसूस हुआ कि जिस व्यक्ति के साथ उसने अपना जीवन बांधा था, वह उसकी सबसे बड़ी लड़ाई में उसका साथ नहीं देगा। यह उसके दिल पर गहरा घाव था। क्या उसकी इज्जत की कोई कीमत नहीं थी?
**निशा (रोहन से आंसू पोंछते हुए, दृढ़ आवाज़ में):** “मुझे माफ करना, रोहन। लेकिन मैं चुप नहीं रह सकती। मेरी इज्जत से बड़ा कोई रिश्ता नहीं है।”
सास भी इस बीच कमरे में आ गई। वह भी चाहती थी कि बात ज्यादा न बढ़े और परिवार की इज्जत बरकरार रहे।
**सासु माँ (चुप कराने की कोशिश में):** “बेटी, गलती हो गई। तमाशा मत बनाओ। घर की इज्जत का ख्याल रखो। चुप हो जाओ, सब भूल जाओ।”
लेकिन निशा जानती थी कि यह गलती नहीं, बल्कि उसके अस्तित्व और इज्जत पर एक हमला था। वह खुद को कमजोर साबित नहीं होने देना चाहती थी। उसे पूरा यकीन था कि उसके पिता और भाई उसकी इज्जत के लिए खड़े होंगे। वह अपने पिता की लाड़ली थी, और उसने तय कर लिया था कि अब और अपमान सहन नहीं करेगी।
**निशा (दृढ़ता से, अपनी सास से):** “माँ, इज्जत किसी एक की नहीं होती। मैं आपकी बहू हूं, पर उससे पहले एक बेटी और इंसान हूं। मेरी इज्जत के साथ समझौता नहीं होगा।”
निशा ने बिना किसी और बहस के अपना बैग पैक किया। घर में एक सन्नाटा छा गया था, लेकिन उसके दिल में एक तूफान उमड़ रहा था। उसने घर छोड़ने का फैसला कर लिया था। अब वह अपने पिता के घर जाएगी, जहां उसे यकीन था कि उसका दर्द समझा जाएगा। उसकी इज्जत की लड़ाई में उसके भाई और पिता उसके साथ होंगे।
**जब वह दरवाज़े से बाहर निकली, तब उसने रोहन की तरफ एक आखिरी बार देखा।**
**निशा (आंखों में आंसू, पर आवाज़ में दृढ़ता):** “रोहन, आज तुमने मेरी सबसे बड़ी ज़रूरत के समय मेरा साथ नहीं दिया। याद रखना, रिश्ते इज्जत पर टिके होते हैं, और आज तुमने वही खो दिया।”
रोहन के पास कोई जवाब नहीं था। वह खड़ा रहा, मानो किसी बंधन में जकड़ा हुआ हो, लेकिन उसकी आंखों में भी एक अफसोस था। निशा के जाने के बाद कमरे में एक सन्नाटा फैल गया, जैसे सब कुछ ठहर गया हो।
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अब निशा ने अपने पिता के घर का रुख किया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह अपने पति और ससुर के खिलाफ कोई कदम उठाएगी? क्या रोहन अपनी पत्नी का साथ देगा या अपने परिवार के साथ खड़ा रहेगा?
**अगले भाग में जानिए, क्या निशा की लड़ाई उसके आत्मसम्मान की जीत होगी, या वह अपने परिवार की इज्जत की कीमत पर अपने रिश्ते को बचाने का रास्ता चुनेगी?**
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धुंधली पड़ती शाम (भाग-2) – पूनम बगाई : Moral stories in hindi
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