गर्मियों की दोपहर समय करीब तीन बजे का रहा होगा। मैंने दराती उठाई और खेतों की तरफ निकल पड़ा। गेहूं की फसल पक चुकी थी और खेत लहलहा रहे थे फसल बहुत अच्छी हुई थी इसबारऔर होती भी क्यों न आखिर हर कीटनाशक ,यूरिया की खाद भर भरकर डाला था। खेतों तक पहुंचते पैर तपने लगे थे गर्मी कुछ ज्यादा ही थी सोचा थोड़ा आराम कर लूं फिर काम करता हूँ।
मैने खेत के किनारे अमरूद के पेड़ के नीचे सिर से कपड़ा उतारकर बिछाया और लेट गया। पेड़ के नीचे थोड़ी ठंडी हवा चल रही थी जिसके थपेड़े मां के हाथों की थपकियों जैसे थे। सूरज बहुत तेज चमक रहा था मानो आग बरसा रहा था सूरज को देखने की कोशिश करता मगर आंखे बंद हो जातीं। मैं यूँ ही कुछ सोचने लगा कि पता ही नही चला कब आंख लग गई और मैं गहरी नींद में सो गया।
नींद में ही मैं एक जंगल मे जाता हूँ बही दराती मेरे हाथ मे है बही कपड़े पहने हुए। मैं लकड़ियां काटना शुरू करता हूँ मेरा पैर फिसलता है और मैं खाई से नीचे लुढ़क जाता हूँ अचानक मेरे हाथ मे एक पेड़ आ जाता है और मैं उसे पकड़कर बैठ जाता हूँ। खाई के बीच मे अटका हुआ हूँ और मैं क्या देखता हूँ कि यहां मैं बैठा हूँ
उस पेड़ के पास एक बड़ा सा गुफानुमा दरवाजा है जिसके आसपास छोटे पौधे हैं मगर पास से वो गुफा के मुहं साफ दिख रहा था। मैं खुद को संभालते हुए धीरे धीरे उसके और पास पहुंचकर अंदर झांकता हूँ तो मुझे अंदर अंधेरा सा एक रास्ता दिखाई देता है मैं धीरे से उस गुफा के अंदर जाने लगता हूं। दराती से रास्ता बनाते बनाते मैं अंदर की तरफ बढ़ रहा हूँ
और अंदर जाकर देखता हूँ कि मुझे एक पीतल का घड़ा दिखाई देता है जो उल्टा जमीन में गढ़ा हुआ था। उसका निचला हिस्सा ही नजर आ रहा था। में दराती के साथ उसके आसपास की मिट्टी हटाने लगता हूँ। थोड़ी ही देर में मैने उसके आसपास खड्डा खोदकर उसे बाहर निकाल लिया। घड़ा सोने के गहनों और सिक्कों से भरा हुआ था।
उसे देखकर मानो मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही रहता मैं सोचने लगता हूँ कि अब मैं दुनिया का सबसे अमीर आदमी बन गया हूँ भगवान ने मेरी जिंदगी सँवार दी है मन ही मन में भगवान का शुक्रिया करता हूँ। और सपने में न जाने कितने सपने देख लेता हूँ ये करने के वो करने के। क्योंकि बाहर रास्ता नही था
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एक पहाड़ी जैसी थी तो मैंने वो घड़ा सिर पर उठाकर खुद को पहाड़ी से सटाकर ऊपर जाने का प्रयास करने लगता हूँ। मन मे खुशी अपार है कि कब इसे लेकर घर पहुंच जाऊं और बीबी बच्चों के सामने बैठकर सबको दिखाऊँ। बीबी बच्चे कितने खुश हो जाएंगे उन सबको समझाऊंगा की किसी को कुछ न बताएं
और हम घर के अंदर ही खड्डा खोदकर सारा धन सोना उसमे दवा देंगे जब जब जरूरत होगी थोड़ा थोड़ा निकालकर खर्च करते रहेंगे और सारी जिंदगी ऐशोआराम में गुजारेंगे। मैं ये सब सोच ही रह होता हूँ कि अचानक से मेरा पैर फिसलता है और मैं घड़े सहित नीचे गिर जाता हूँ जैसे ही गिरता हूँ मेरी आँख खुल जाती है मैं बदहवास सा उठकर अपने आसपास घड़े को देखने की कोशिश करता हूँ ।
मगर जल्द ही मुझे एहसास हो जाता है कि मैं सिर्फ सपना देख रहा था। इतना कुछ पाकर भी मेरे हाथ खाली थे जिन्हें देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा था कि काश ये सपना न होकर हकीकत होती। थोड़ा नींद का प्रभाव और टूटा तो देखा सूरज ढलने को है थोड़ी देर पहले जब सोया था तो उसकी चमक की तरफ देखने भी मुश्किल था और अब उसकी गर्मी भी खत्म हो चुकी थी और चमक भी।
ये ढलती हुई शाम मेरी जिंदगी में एक नया सवेरा कर गई एक बहुत बड़ा पाठ पढ़ा गई थी क्योंकि अब मैं सोचने लगा कि जिस तरह सपने में मुझे धन दौलत मिला और सपना टूटते ही मेरे हाथ खाली थे। तो ये जिंदगी भी तो एक सपना ही है जब ये टूटेगा तो मेरे साथ क्या जाएगा? मेरे कर्मो के सिवा क्या साथ जाएगा कुछ भी तो नही
तो ये जो पैसा इकट्ठा कर रहा हूँ इसका मगलब क्या है जब जिंदगी का सपना टूटते ही सब खत्म हो जाएगा। नींद के सपने में और जिंदगी के सपने में इतना ही तो फर्क है कि नींद का सपना आंख खुलने पर टूटा और जिंदगी का सपना आंख बंद होने पर मतलब मरने पर टूटेगा।
तो मैं किसलिए थोड़े से फायदे के लिए ये पाप कर रहा हूँ। और फिर मेरी जिंदगी तक बैसे भी अब इस ढलती शाम के सूरज जैसी है अब इसकी चमक और गर्मी खत्म हो चुकी है कब डूब जाए कोई भरोसा नही।
उसी शाम को मैने मन बना लिया कि चाहे चार पैसे कम मिलें मगर अब फसल में कभी कीटनाशक, यूरिया या दवाई नही डालूंगा क्योंकि इससे न सिर्फ हजारो कीड़े मकौड़े मर जाते है बल्कि कितने ही लोगो को ये जहरीला अनाज खिलाकर उन्हें कैंसर,किडनी,गुर्दे,आदि की बीमारियां दे दी होंगी कितने घर मेरी बजह से उजड़ गये होंगे। मैं जाने अनजाने में कितना बड़ा पाप कर फाहा था मुझे इस बात का एहसास हो गया था।
उस दिन से मैने कभी इन दवाइयों का छिड़काव नही किया बल्कि पास की गौशाला में जाकर बहां से गोबर के बदले पैसे दे देता इससे गौशाला में गौबंश के लिए चारे का इंतज़ाम भी हो जाता और उनकी देखवाल और अच्छे से होने लगी थी ।अब भले हुए मुझे मुनाफा दो पैसे कम था मगर जो सकूँ जो शांति मेरे मन मे थी वो अनमोल थी। और मेरे खेतों में शुद्ध और स्वास्थवर्धक अनाज पैदा होने लगा।
इस तरह वो ढलती हुई शाम मेरी जिंदगी में नया सवेरा कर गई और मैं पिछले कर्मो का पश्चाताप करके अपराध बोझ से बाहर निकल सका।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश