देवर का इंसाफ – लतिका पल्लवी

माँ आज भाभी का जन्मदिन है।यह पैसे रखो और बाजार जाकर भाभी के लिए कुछ उपहार लेती आना। हाँ अब उसी का तो जन्मदिन मनाना है। इस मनहूस को तो बच्चा होने से रहा जो पोता पोती का जन्मदिन मनाऊँगी। माँ फिर आप शुरू हो गईं। अभी भाभी के घाव भरे भी नहीं है और आप लगी

उसे कुरेदने। बड़ा आया भाभी का चहेता देवर, इस बार पापा जी नें व्यंग कसा। पापा आप को तो माँ को समझाना चाहिए और कहाँ आप भी माँ की भाषा बोलने लगे। हाँ तो तुम्हारी माँ गलत क्या कह रही है।अब इस उम्र मे पोता पोती का जन्मदिन मनाते तो कितना अच्छा लगता पर नहीं वह सुख तो हमारे भाग्य मे लिखा ही नहीं है तो बहू का ही ना जन्मदिन मनाएँगे। जा ऑफिस जा देर हो रही है जाकर ला

देंगे तुम्हारी भाभी के लिए उपहार चिंता मत कर। यह बात हो रही थी एक बेटा और उसके माता पिता मे जो बड़ी बहू के गर्भपात होने के कारण उससे नाराज थे और उसे उसके लिए दोषी ठहरा रहे थे। पर देवर अपनी भाभी को बहुत मानता था और यह भी जानता था कि इसके लिए भाभी दोषी नहीं है। पैसे देकर और उपहार के लिए कहकर निशा का देवर शरद ऑफिस चला गया।माँ नें पैसे तो ले लि

ए पर उपहार नही लाई।शरद नें अपने भाई को फोन करके कहाँ कि भैया मैनें पिज़्ज़ा और केक ऑडर कर दिया है पर कौन सी मिठाई भाभी को पसंद है यह मुझे नहीं पता इसलिए आप भाभी की पसंद की मिठाई लेते आना।मिठाई की बात सुनकर शरद की माँ नें बड़े बेटे वरद से कहा बेटा शरद को तो किसी भी बात की समझ नहीं है पर तु तो समझदार है तुझे तो पता है कि बहू अभी किस

परिस्थिति से गुजरी है। अभी खुशियाँ मनाना क्या अच्छा लगेगा? कही बहू को बुरा ना लग जाए इसलिए मिठाई छोड़ दे। मै भी उपहार नहीं ला रही हूँ। इस समय बहू का जन्मदिन मनाना सही नहीं होगा। बड़ा बेटा अपना दिमाग़ नहीं लगाता था। उसने माँ की बात मानकर अपनी पत्नी को जन्मदिन की बधाई भी नहीं दी।बहू निशा को किसी के द्वारा जन्मदिन की बधाई नहीं देने पर बहुत बुरा लगा।

उसने सोचा कि मेरे गर्भपात के लिए ये लोग मुझे ही जिम्मेदार ठहरा रहे है इसलिए बधाई नहीं दी।पति से उसको ऐसी उम्मीद नहीं थी। वह एकदम से टूट गईं।शाम मे केक आया और शरद के कहने पर निशा नें काटा भी पर अंदर से वह सास ससुर और पति के व्यवहार से दुखी थी। शरद नें जब जाना कि

माँ उपहार नहीं लाई है तो उसने माँ से बोला माँ भाभी भी इंसान है।कभी तो उन्हें खुश होने का मौका दे दो।ऐसे ही निशा के दिन कट रहे थे।वह पति और सास के व्यवहार से दुखी रहती और अंदर ही

उसे कुछ नहीं कहती, पर शरद से कोई पर्दा नहीं था।शरद के सामने भी बहू को ताने देना चालू रहता था।गर्भपात होने के बाद तो उसका भी दोषी निशा को ही ठहरा दिया गया और तानो का अनुपात और ज्यादा बढ़ गया था। कभी कभी शरद माँ को टोक देता और कह देता माँ आप भाभी को क्यों ताना देती हो? इसमें भाभी की क्या गलती है यदि किसी की गलती भी है तो वह आपकी और भैया की है।

यह सुनते ही शरद को भी सुनाया जाता बड़ा आया भाभी का पक्षधर हमने क्या किया है। वह तो तुम अच्छे से जानती हो माँ यह कहकर वह चुप हो जाता कुछ  समय बीता और शरद का भी विवाह हो गया। शरद की पत्नी पर सास का जोर नहीं चलता था या यह कहे कि शरद चलने नहीं देता था क्योंकि उसे तो अपनी माँ का स्वभाव मालूम ही था।उसने अच्छे से देखा था कि माँ भाभी के साथ कैसा

व्यवहार करती है इसलिए वह अपनी पत्नी के वक़्त पहले से ही सतर्क रहता था।कुछ दिनों बाद जब शरद की पत्नी को बच्चा होने वाला था तो यह सुनकर निशा बहुत ही खुश हुई उसने सोचा चलो घर मे एक बच्चा हो जाएगा तो माँ पापा का भी पोता पोती नहीं होने का दुख खत्म हो जाएगा और वे अब मुझसे उतना नाराज नहीं रहेंगे।निशा अपनी देवरानी का खूब ख्याल रखती पर उसकी सास देवरानी को उसके पास जाने से रोकती और कहती उसके पास नहीं जाना उसका छुआ नहीं खाना। वह

अभागिन है। उसका बच्चा तो होने के पहले ही मर गया।इसलिए वह तुमसे जलती है। तुम्हारे बच्चे के साथ कही कुछ कर ना दे। उससे बच के रहना।यह सब बात निशा की देवरानी को बहुत अजीब लगता सोचती कि दीदी का एकबार गर्भपात हो गया तो क्या हुआ? बच्चा तो दुबारा भी हो सकता था

पर पूछती किससे। देखते देखते नौ माह बीता और निशा की देवरानी को एक बेटा हुआ।छठी का दिन था निशा बच्चे को नए कपड़े पहनाने के लिए गोद मे उठानें जा रही थी तभी उसकी सास नें सभी के सामने निशा को बच्चा लेने से मना करते हुए बोली खबरदार जो बच्चे को हाथ भी लगाया। अपना

बच्चा तो खा गईं और अब चली देवरानी के बेटे को भी नजर लगाने। यह सुनकर निशा बहुत लज्जित हुई और उठकर वहाँ से जाने लगी। आज शरद के बर्दास्त करने की सीमा खत्म हो गईं,उसने कहा भाभी  रूकिए। आपको कही जाने की जरूरत नहीं है और माँ तुम अच्छे से जान लो कि भाभी के

बच्चे को मारने वाले तुम और भैया हो भाभी नहीं। अपनी गलती को कितने दिनों तक तुम भाभी पर थोपती रहोगी। मैंने क्या किया है, तुम मेरा नाम क्यों ले रहे हो?वरद नें पूछा। तुमने कुछ नहीं किया यही तुम्हारी गलती है। भाभी को जब बच्चा होने वाला था तब तुमने उनका ख्याल रखा? एकबार भी

पूछा कि तुम्हे कोई दिक्कत तो नहीं है?वैसी हालत मे भी माँ उनसे घर के सारे काम करवाती रही।उन्हें ज़रा भी आराम करने को नहीं मिलता था।मेरे सामने भाभी नें आपसे कपड़े की बाल्टी छत पर पहुंचाने को बोला था पर माँ नें कह दिया मेरा बेटा काम करेगा? तुम्हे शर्म नहीं आ रही है मेरे सामने ही मेरे बेटे से काम करने को बोल रही हो। ज़रा सी बाल्टी उठाने से कुछ नहीं होता और आपने माँ की बात मानकर भाभी की मदद नहीं की। मैंने बाल्टी छत पर पहुंचाया। ऐसा तो मेरे नहीं रहने पर भी

होता होगा।उस दिन भी तो भाभी छत पर से ही तो आ रही थी जो गिर पड़ी और गर्भपात हो गया।वह तो दो सीढ़ी से ही गिरी थी इसलिए जिन्दा बच गईं पर उनके ओवरी को निकलना पड़ गया जिससे वह आगे भी बच्चा नहीं पैदा कर पाई।भाई इतना भी श्रवण कुमार नहीं बनना चाहिए कि अपनी बीबी बच्चो का भी ख्याल ना रखा जाए।आप जैसे पति के कारण ही ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान नहीं

समझते।फिर माँ से बोला अब आपको पता चल गया कि भाभी के बच्चे के कातिल आप है इसलिए आप मेरे बच्चे को नहीं छुएंगी भाभी नहीं। भाभी यह बच्चा जितना मेरा और रीना का है उतना ही आपका भी है। मै सही कह रहा हूँ ना रीना?  तुम्हे कोई आपत्ति तो नहीं है। नहीं बिल्कुल नहीं। लीजिए भाभी बाबू के कपड़े बदल दीजिए कहकर रीना नें बच्चा निशा को पकड़ा दिया।

 वाक्य—ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान क्यों नहीं समझते 

लतिका पल्लवी

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