आज सुषमा जी के चेहरे पर खुशी कम, चिंता ज़्यादा थी। बेटे राहुल के लिए लड़की देखने जा रही थीं, पर दिल में कोई डर बैठा था। सोचती रहीं—“आजकल तो शादी के बाद लड़के ही सुरक्षित नहीं रहते। कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।”
तभी मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर नाम आया—सुजाता।
“अरे वाह! कितने दिन बाद तेरा फोन आया,” सुषमा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
“बस यूं ही तुझे याद किया। तू बता, कैसी है?” सुजाता ने पूछा।
“आज राहुल के लिए लड़की देखने जा रही हूं, पर मन परेशान है,” सुषमा ने कहा।
“क्यों भला? कोई दिक्कत है क्या?”
सुषमा कुछ क्षण चुप रहीं, फिर बोलीं, “दिक्कत तो नहीं, पर डर है। अब रिश्तों में भरोसा कम और शक ज़्यादा हो गया है। लड़ाई हुई नहीं कि केस, कोर्ट-कचहरी। कई बार झूठे आरोप भी लगा दिए जाते हैं। अब तो मां होने के नाते राहुल के लिए डरती हूं।”
सुजाता कुछ देर चुप रही, फिर बोली, “देखो, तुम्हारी चिंता तो जायज़ है। आजकल जमाना सच में बदल गया है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हम रिश्तों से दूर भागें।”
सुषमा ने गहरी सांस ली, “तो क्या करूं सुजाता? कैसे भरोसा करूं कि सब ठीक रहेगा?”
“सबसे पहले तो लड़की और उसके परिवार को समझो, सिर्फ़ पढ़ाई-नौकरी मत देखो। फिर राहुल से भी खुलकर बात करो—उसे समझाओ कि शादी दो लोगों की साझेदारी है, जहां प्यार के साथ धैर्य और समझ भी जरूरी है।”
“हां, सही कह रही है,” सुषमा ने धीमे स्वर में कहा।
“और सबसे बड़ी बात,” सुजाता ने जोड़ा, “रिश्तों में पारदर्शिता रखो। शुरू से ही दोनों परिवार ईमानदारी से बात करें। भरोसा धीरे-धीरे बनता है, लेकिन पहले पहल से ही नींव मजबूत होनी चाहिए।”
सुषमा की आंखों में नमी थी, पर मन कुछ हल्का हो गया था।
“तूने जैसे मेरी उलझन सुलझा दी,” सुषमा ने मुस्कराते हुए कहा, “अब मैं सिर्फ़ लड़की देखने नहीं जा रही, एक रिश्ता समझने जा रही हूं।”
फोन कटते ही उन्होंने आईने में खुद को देखा और कहा, “अब डर नहीं, समझ से रिश्ता जोड जोड़ूंगी “।
Rekha saxena