देखिए ना कैसी जिद पर अड़ी हुई है बाहर इतने सारे पीजी हॉस्टल खुले हुए हैं और महारानी को अलग से कमरा लेकर रहना है कहती है साथ में रहकर पढ़ाई नहीं होती, जब सारे काम खुद करने पड़ेंगे तब कैसे करेगी ऊपर से हमें भी चिंता रहेगी, खाना बनाना कपड़े धोना आना-जाना सब तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा,
अगर पीजी में रहती तो कोई तकलीफ नहीं होती कल को बीमार पड़ गई तो कौन समाचार देगा इसके और अकेली क्या ही कर लेगी इस पर तो अलग से कमरा लेकर रहने का भूत सवार हो गया है और आप समझाइए आपकी लाडली को! “देखो तुम्हारी चिंता तो जायज है” किंतु अंतिमा अब बड़ी हो गई है अपना अच्छा बुरा खुद जानती है
उसे पता है उसे कैसे पढ़ाई करनी है हम सब छोटे से कस्बे में रहते हैं इसलिए हमें यहां का वातावरण ही अच्छा लगता है किंतु इसने यह फैसला कुछ सोच समझ कर ही लिया होगा छोटी बच्ची तो है नहीं है आखिर नीट की तैयारी के लिए कोटा जैसे शहर में जा रही है और जब तक बच्चे बाहर नहीं जाएंगे
उन्हें वहां रहने की सारी परेशानियों को खुद ही अपने हिसाब से दूर करने की समझ आनी चाहिए, जब परेशानी आएगी तभी तो यह सीखेंगे कब तक हम इसके साथ रहेंगे कभी ना कभी तो उसको अकेले रहना ही होगा और सुषमा ने भारी मन से उसे कोटा में एक अच्छा सा कमरा दिलवा कर अपने मन को थोड़ा शांत किया
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हालांकि अंतिमा के मकान मालिक बहुत अच्छे थे इसलिए सुषमा ने जोर देकर कहा देखिए… भाई साहब अंतिमा पहली बार एक छोटे से कस्बे से निकलकर बड़े शहर में आई है इस उम्र में भटकने के भी चांस ज्यादा रहते है आप एक माता-पिता की तरह उसका ध्यान रखिएगा अगर जरूरत पड़ी तो अपना बच्चा समझ कर इसे डांट दीजिएगा
और बाकी तो हम फोन पर आपसे हाल-चाल लेते ही रहेंगे अब हम अपनी बिटिया आपके भरोसे छोड़ कर जा रहे हैं और फिर सुषमा और नीरज दोनों वापस अपने गांव आ गए! उधर अंतिमा सुबह-सुबह उठी और उठते ही आवाज लगाई …मम्मी अभी तक चाय नहीं आई किंतु थोड़ी देर बाद उसे एहसास हो गया कि यहां उसकी मम्मी नहीं है
जो हर चीज उसकी हाथों में देती थी अब वह कोटा तैयारी के लिए आई है और उसे खुद ही घर और बाहर कोचिंग की जिम्मेदारी निभानी है, तब उसने अपना चाय नाश्ता किया और टिफिन तैयार करके कोचिंग चली गई, अब वह शाम को आते समय दूध सब्जी फल वगैरा लेटी हुई आती और आकर पूरे मनोयोग से अपनी पढ़ाई में लग जाती, थोड़ी बहुत परेशानी आई
पर उसने संभाल लिया, साल भर में ही उसने अच्छा परिणाम दिया और अच्छा कॉलेज भी हासिल कर लिया!मम्मी पापा दोनों को अपनी बिटिया पर गर्व था! यह सच है कई बार छोटे शहरों से बड़े शहरों में आने वाले बच्चों की ख्वाहिश तो बड़ी-बड़ी होती हैं किंतु यहां की चमक दमक और दिखावे में आकर अपने मूल उद्देश्य से भटक जाते हैं, जिसने अपने लक्ष्य को पहचान लिया वह निश्चित ही पार हो गया!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
वाक्य प्रतियोगिता #देखो तुम्हारी चिंता तो जायज है”)