देखो तुम्हारी चिंता जायज तो है – सीमा सिंघी : Moral Stories in Hindi

 आज अमन ऑफिस जाने के तकरीबन दो घंटे बाद ही पूरा परेशान हो चुका था ! वजह थी कभी उसके फोन का आना, कभी पेपर वर्क पूरा करवाने के लिए उसके स्टाफ का आना, कभी  लैपटॉप में अपनी फाइल चेक करना,एक फोन पर बात कर के रखते ही

तुरंत दूसरे फोन के आ जाने से अब उसका सर चकराने लगा ! उसे ऐसा लगने लगा ! मैं अब आधे घंटे के लिये खुद के मस्तिष्क को आराम नहीं दूंगा तो शायद पागल हो जाऊंगा ! यही सोचकर कुछ देर के लिए उसने सब कुछ छोड़ा और अपनी आंखे मूंद ली ! 

वो आंखे मूंदे मूंदे ही सोचने लगा ! माना आज विज्ञान ने बहुत तरक्की की है मगर हम अपनी बेमतलब की इच्छाओं के पिछे इतना भागने लगे हैं कि मन और शरीर का सुख चैन सब भूल चुके हैं ! समय से खाना भूल चुके हैं ! छोटी बड़ी इच्छाएं और अपेक्षाओं के पीछे भागते भागते और तो और समय बचाने के लिए अपना पेट भी बाजारू चीजों से भरने लगे हैं !

जो किसी भी हालत में पौष्टिक नहीं होता है  ! इसका नतीजा आए दिन बेवजह या तो हम किसी न किसी तनाव ग्रस्त हो जाते हैं या फिर बीमार हो जाते हैं ! यही सोचते-सोचते उसकी कब आंख लग गई । उसे पता ही नहीं चला  !

अचानक स्टाफ की आवाज सुनकर उसकी आंखें खुल गई ! अभी भी उसका वही हाल था ! उसके आसपास लोग उसे घेरे हुए थे ! कोई उसे पुकार रहा था, इधर फोन चीख रहा था सो अलग  ! वह अपने हाल पर खुद-ब-खुद हंसने लगा और मन ही मन बोल उठा! वाह रे जिंदगी…  क्या होगा इंसान के मन की इन बढ़ती अपेक्षाओं का और दिन ब दिन मुंह उठाकर चली आ रही  कभी न खत्म होने वाली इन ख्वाइशों का, जिसके बदले सौगात में मिलती है चिंता, तनाव और समय का अभाव।

 आज अमन शाम होने से पहले ही ऑफिस से घर की और निकल पड़ा। घर पहुंचते ही देखा बाबूजी बाहर बगीचे में ही पौधों में पानी दे रहे है । अमन को इस तरह समय से पहले आया देखकर बाबूजी पौधों में पानी देना छोड़कर पूछने लगे।

क्या बात है अमन आज जल्दी कैसे आ गए। तबियत तो ठीक है तुम्हारी??? बाबूजी की बात सुनकर अमन कहने लगा। बाबूजी तबियत तो ठीक है मगर आज ऑफिस में कंप्यूटर मोबाइल फोन पर कुछ ज्यादा ही काम और बातें हो गई तो मन और मस्तिष्क दोनों झल्लाने लगे थे इसीलिए आज घर थोड़ी जल्दी आ गया हूं । 

अमन की बात सुनकर बाबूजी प्यार से कहने लगे। अमन बेटे आज हर इंसान की बेफिजूल इच्छाएं जरूरत से ज्यादा हो गईं है और अमन बेटे इच्छाओं का क्या है । एक को पूरी करो तो दूसरी जाग उठती है। इन्हें कोई पूरी कर ही नहीं सकता। हम इंसान ये जानते हुए भी इनको पूरी करने की चाहत में अपने मन और मस्तिष्क का संतुलन खो बैठते है। 

जरूरत से ज्यादा इन्हें इस्तेमाल करते हैं नतीजा रातों की नींद भी खो बैठते हैं  । यहां तक की सोते वक्त भी हमारे मस्तिष्क में हिसाब किताब ही चलते रहते हैं, जो कि नहीं होना चाहिए। हां इतना जरूर है बेटे उस वक्त हमारी ज़रूरतें बहुत ज्यादा पैर नहीं पसारा करती थी । 

बाबूजी की बात सुनकर अमन कहने लगा । 

बाबूजी आप ठीक कह रहे हैं,पहले दादाजी, दादी  मां और आप और हम चार बहन भाई घर पर थे यानि कि पूरे आठ सदस्य मगर कमाने वाले तो सिर्फ आप ही थे, फिर भी हम रात को बड़ी चैन की नींद सोते थे । 

आपको भी कभी ज्यादा परेशान नहीं देखा मैंने । जबकि अब तो घर पर हम पांच सदस्य ही है ।अमन की बात सुनकर बाबूजी तुरंत प्रेम से समझाने लगे। देखो तुम्हारी चिंता जायज तो है अमन बेटे मगर आज जमाना बदल गया है। 

हम कंप्यूटर मोबाइल फोन आदि से जुड़े रहकर ही जिंदगी में आगे बढ़ सकते हैं मगर इतना हर ऑफिस में जरूर होना चाहिए कि एक-दो घंटे लगातार कंप्यूटर पर काम करने के बाद आधे घंटे का ब्रेक दिया जाए। 

जिसमें इंसान का मन और मस्तिष्क फिर से दौड़ने के लिए तैयार हो जाए, और फिर बाबूजी ने पौधों की तरफ इशारे करते हुए कहा। देख रहे हो अमन यह पौधे कितने हरे भरे लग रहे हैं और बड़े खुश भी लग रहे हैं, क्योंकि मैं इन्हें जरूरत के हिसाब से ही खाद और पानी देता हूं अगर ज्यादा देने लगूंगा तो यह खिलने की बजाय मुरझा जाएंगे।

 ठीक उसी तरह हमारा मन और मस्तिष्क है। जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करेंगे और आराम भी नहीं करने देंगे तो वह अपना संतुलन खोने लगेगा । जिसका नतीजा बेवजह क्रोध का आना परेशान होना जैसा कि तुम अभी हो रहे हो समझे अमन बेटा। हां बाबूजी आज ऑफिस में यही बातें मेरे मन में भी आ रही थी ।मैं बहुत अच्छी तरह समझ गया हूं। 

आपकी यह बात आज के बाद मैं हमेशा ध्यान रखूंगा कहकर अमन मुस्कुराते हुए जाने लगा मगर बाबूजी फिर बोल उठे। ठहरो मुस्कुराने से काम नहीं चलेगा । अभी तो तुझे खिलखिला कर हंसना है कहते हुए पानी की पाइप का रुख अमन की ओर मोड़ दिया। जिससे अमन पूरी तरह भीग गया । 

अमन को यूं अचानक अपने बाबूजी के हाथों इस तरह सूट बूट में भीगना बहुत अच्छा लग रहा था। उसे भी शरारत सूझ गई और पाइप का रुख बाबूजी की और मोड दिया । अब पिता बेटे दोनों पानी में पूरी तरह भीग चुके थे । 

बचपन में इसी तरह बाबूजी दोनों भाइयों को नहलाया करते थे । आज बहुत दिनों के बाद अमन को लग रहा था उसका तन और मन दोनों बाबूजी के प्रेम से तरोताजा हो उठे हैं। दूर कहीं संगीत बज रहा था ।

दिल कहे आज रुक जा रे,यहीं पे कहीं ।

जो बात इस जगह है,वो कहीं पे नहीं ।।

 स्वरचित 

सीमा सिंघी 

गोलाघाट असम

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