चौथी बेटी – परमा दत्त झा

अरे रमेश बाबू अब आप खतरे से बाहर हैं।आप सभी से मिल सकते हैं।-यह डा मिश्र बंसल के थै जो रूटीन विजिट में आये थे।

मैं कहां हूं, मुझे क्या हुआ था -ये अकचका गये।

आपको सिरियस हार्ट अटैक आया था और आप अस्पताल में भर्ती हैं।परसों आपकी बायपास सर्जरी हुई है।-डा उन्हें समझाते बोले।

करीब साठ बासठ के  रमेश बाबू एक साधारण शिक्षक हैं जो प्राइबेट स्कूल में पढ़ाकर पिछले साल सेवानिवृत्त हुए हैं।इनकी पत्नी करीब पांच साल पहले गुजर गयी है।आपने स्कूल और ट्यूशन करके चार बच्चे बड़ा बेटा देव,दूसरा दिनेश ,तीसरी माया और चौथी ममता को पढ़ाया।

आज दोनों बेटे बैंक में मैनेजर के पद पर हैं और लव-मैरिज करके दिल्ली में रहते हैं। बड़ी बेटी का पति बैंक में क्लर्क है और ये भी गाजियाबाद में रहती हैं।

सबसे छोटी की मां तभी गुजर गयी जब वह दसवीं की छात्रा थी।

आज यह आराम से काम कर रहे थे।पापा तो कंगाल हैं।छोटी की शादी इधर उधर से पांच लाख लेकर कर दिया।आज छोटी के पति जब उलझे तो इन्होंने दुकान खुलवा दिया।आज दो बच्चों के साथ छोटी रह रही हैं। इन्हीं के मकान में है। भाईयों में रोष है कि जब  पैसा,समान सब छोटी को देते हैं तो करें भी वहीं।सो उस दिन जब इनकी तबियत खराब हुई तो वहीं बंसल लाया और इलाज करवाया।आज भी वही देखरेख कर रहा है।

सो आज जब यह होश में आये तो छोटा दमाद सामने खड़ा था।

क्यों बेटा -यहां इतने महंगे अस्पताल में -ये पूछे थे।

हां पापा -पैसे फिर आ जायेंगे , मगर आपको -इससे ज्यादा बोल नहीं सका और रोने लगा।

यह ठीक होने पर आराम से बैठकर दलिया खायें।दोपहर में बेटी, दोनों बच्चों के साथ आयी।

दमाद ने चुगली कर दी-देखो,पापा को पैसे की चिंता खायें जा रही हैं।पापा सोच रहे हैं कि –

आप भी न इतना मत सोचा करें।अब सब ठीक हो गया।-दमाद सांत्वना देता बोला।

दुकान कितने दिन बंद रहा -ये कठोर स्वर में पूछे।

बस दो दिन ,वह भी पूरा समय नहीं।-अब ये लेट गये।

दिनभर में बाकी कोई भी मिलने नहीं आया।बाद में पता चला कि बस छोटी बेटी का पूरा परिवार लगा है।समधि भी रात-दिन आकर देख जाते हैं।खाना समधियाने से बनकर आता है।

अब वे दुख से भर गये।पूरा ससुराल लगा है।

सो समधि जब खुद की कार से घर लाये। गाड़ी भी वहीं चला रहे थे।आज पूरी तरह वे दुखी थे।चार औलाद होते हुए समधियाने का खाना खा रहे हैं।लोग समधियाने का पानी नहीं पीते , मगर ये–+जितना सोचते उतना ही उलझ रहे थे।

घर पर रातभर आराम किए फिर सुबह समधि जब आये तो बातचीत होने लगी।

देखिए समधिजी , हमलोग आज मुसीबत में एक दूसरे के हैं।तीसरा कोई किसी का नहीं है।

जी कहकर ये आराम से बैठे रहे।

बाकी बच्चों के मन में जलन है कि आप अपनी दौलत,अपना सारा प्यार बस छोटी को देते हैं।-यह समधि का विचार था।

यही कारण है कि बाकी कोई देखने नहीं आया।

अब ये आराम से लेटे विचार करने लगे कि भगवान का धन्यवाद जो उसने लड़की दी। नहीं तो तीनों ने काम ही लगा दिया था।सभी झांकने तक नहीं आये।

#कुल शब्द संख्या -कम से कम 700

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

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