चाय पानी हो गई – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू : Moral Stories in Hindi

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फोन की घंटी बजाते ही सिंक में बर्तन धो रही शोभा ने

झट आंचल में हाथ पोछ उसकी तरफ लपकती और फूर्ती से उंगलायां चलाते हुए रिसीब करते हुए बोली – हेलो बेटा जय श्री राधे कैसी हो ।उधर से आवाज आई ठीक हूँ मां और तुम  कैसी हो।

अच्छी आदत हो गई है ना जब तक फोन न करो ऐसा लगता है जैसे कोई बहुत जरूरी काम रह गया हो और करने के बाद जैसे जी को इत्मिनान हो जाता है कि हां सब कुछ ठीक है और सारे काम व्यवस्थित ढंग से होने लगते हैं।

और फिर , क्या पकाया क्या खाया क्या है आज की दिनचर्या यानि सब कुछ फोन पर ही सुनिश्चित हो जाता। भाई क्या बात है मजा ही आ जाता है अम्मा बेटी को आपस में बात करके।सच कहूं तो एक बार फोन लगने के बाद पता ही नही चलता वक़्त कैसे पंखा लगा कर उड़ जाता।घटों  ऐसे गुजरा जाते जैसे अभी बात शुरू ही हुई हो पता ही ना चलता।

अरे भइया ना जाने कहां कहां की  किसकी किसकी ,कौन कौन सी नई पुरानी बातें हो जाती पता ही न चलता ।

सच कहूं तो इससे जी भी भर जाता और मन को तसल्ली भी हो जाती।

कभी कभी तो अम्मा हमारे भाई बहनों के बचपन से भी आगे अपनी शादी तक चली जाती और बहुत खुश होती तो अपने भी बचपने को गुदगुदा आती।फिर जी खोलकर हम दोनों हंसते और मस्त हो जाते।अब इससे ज्यादा और कुछ कर भी नही सकते । क्योंकि जब से हमारा ब्याह करी है तब से मां बाबू जी दोनों भाई के पास विदेश चले गए।और ये तो

सभी जानते हैं कि विदेश में लोगों को अपने बारे में सोचने की फुर्सत तो मिलती नही फिर भला अपनों और रिश्तेदारों के जीवन में क्या चल रहा है कैसे जाने।वो तो अम्मा है बतिया लेती हैं क्योंकि न वो कहीं जाती हैं और ना ही नौकरी करती है दिन भर घर के दो कमरे किचन और लान तक में घूम के रह जाती हैं।

एक दिन ऐसे ही हमने सबका हाल पूछा साथ में पड़ोसियों का भी हाल पूछा लिया तो वो बोली अरे बेटा मत पूछा किसी का हाल यहाँ कोई किसी से मतलब ही नही रखता यहां तक कि गमी होने का भी पता पड़ोसी को नही चलता सब इतने व्यस्त रहते हैं कि कोई किसी से मतलब ही नही रखता।तुम हाल पूछने की बात कर रही हो।अरे वो तो हम खलिहर रहते है फिर अपने बच्चे हमसे दूर हैं तो बतिया लेते है वरना बहुत अकेलापन है यहां 

कभी कभी तो सोचते है अगर फोन ना होता तो हम कैसे रहते। वो दिन भी क्या दिन थे जब शाम होते ही अगल बगल निकल जाया करते थे और घंटों गॅप सड़ाका किया करते थे।अब तो  रान पड़ोसी एक दूसरे को पहचानते ही नही बतियाना तो दूर की बात है।

वो तो तुम लोगों से बतकही हो जाती है तो मन आन हो जाता है।वरना बनाओ खाओ और मोबाइल ताकते पड़े रहो कहते हुए मोबाइल की तरह नज़र गड़ाई तो देखा डेढ़ घंटे हो गए थे बतियाते बतियाते।” गैस पर चढ़ी चाय को बहू छानकर ले गई जाने कब का बिना कुछ बोले क्योंकि उसे पता था दीदी का फोन है बात लम्बी चलेगी।”

अरे अब रखो बहुत बतिया लिया तुम्हारी भाभी चाय लेकर गई और हमारी चाय पानी हो गई।कहते हुए जय श्री कृष्णा बोल फोन काट दिया।

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना 

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू प्रयागराज

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