चार शब्द… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

.…प्रिया मात्र पांच साल की थी… जब निखिल को जन्म देते हुए उसकी मां चल बसी… घर में चाची, बुआ, दादी सब थीं… पर मां की कमी तो फिर भी थी ही…

 नन्हे निखिल को संभालने के लिए सभी प्रिया के पापा सौरभ जी से जिद करने लगे… सौरभ जी ने साफ मना कर दिया था…” तुम सब हो ही तो मां की क्या जरूरत है…!” लेकिन उनकी मर्जी के खिलाफ… सबने रिश्ते में प्रिया की मौसी लगने वाली… राशि के साथ समझा बुझाकर उनका विवाह कर दिया…

 सौरभ जी बिल्कुल खुश नहीं थे… ब्याह हो गया… दुल्हन विदा होकर घर आ गई… पर सौरभ जी ने राशि से एक शब्द बात नहीं किया…

 ससुराल में आते ही राशि दो बच्चों की मां बन गई थी… निखिल तो अभी बहुत छोटा था… प्रिया मां का मतलब जानती थी… उसकी नजर में राशि उसकी मां नहीं मौसी थी… घर में सब ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की… अलग-अलग तरीकों से… मगर वह राशि को मां बोलने को तैयार ही नहीं हुई…

 जिद्दी प्रिया बिल्कुल अपने पापा की तरह थी… ना सौरभ जी राशि को पत्नी मानने को तैयार थे… ना प्रिया उसे मां…

 पहले कुछ दिन तो उसने सोचा कि सब ठीक हो जाएगा… लेकिन जब इसका ताना भी उसे ही मिलने लगा… तो वह कुछ भी समझ नहीं पाई कि वह क्या करे…

 घर में जिसे देखो वह रह रह कर उसे अपने-अपने तरीके से उलाहना देने में… या समझाने में लगा हुआ था… कि अपनी बेटी और पति को कैसे अपना बनाना है…

 राशि को कुछ समझ में नहीं आता तो वह चार आंसू बहा लेती… वह अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश करती…

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 इसी तरह कशमकश में दो महीने बीत गए… वह अपने पति का प्यार घड़ी भर के लिए भी नहीं पा सकी थी… अचानक एक दिन सौरभ जी की कार खाई में गिर गई… वह अपनी ना भुला सकने वाली पत्नी का साथ निभाने चले गए…

 पूरे घर में मातम पसर गया… सब ने सोचा यह एक हादसा था… मगर एक दिन राशि की नजर सौरभ जी की डायरी पर पड़ी… वह शायद जानबूझकर राशि के कपड़ों के बीच रखी गई थी… राशि ने उसे निकाला तो उसमें कुछ इधर-उधर की बातें ही थी… पर पीछे के पन्ने में एक नोट था… उस पर अपना नाम लिखा देख राशि की आंखें चमक गईं…

 राशि…

 मुझे माफ कर देना… मैं तुम्हें कभी भी वह स्थान नहीं दे सकता… जिसकी तुम हकदार हो… मैं जानता हूं… तुममें कोई कमी नहीं, और यह भी जानता हूं कि तुम प्रिया और निखिल को सच्चा प्यार दे रही हो…उम्मीद है वह मेरी तरह कायर नहीं निकलेंगे… तुम्हें जो मैं नहीं दे सका, वह सम्मान मेरे बच्चे देंगे…

 पर यदि तुम्हारा मन बदल जाए, और तुम उन्हें छोड़कर जाना चाहो, तो शौक से चली जाना… जब उनके मां पिता उनका साथ ना दे सके… तो तुम अपनी जिंदगी क्यों बर्बाद करोगी…

 बस इतना सा… और कुछ नहीं था… राशि ने एक-एक कर डायरी के सभी पन्ने पलट डाले पर उसमें और कुछ कहीं नहीं लिखा था… जो उसके लिए हो…

 राशि के रिसते घाव अचानक फूट पड़े… वह भड़भड़ा कर रो पड़ी… इसका मतलब सौरभ जी ने जानबूझकर अपनी गाड़ी खाई में डाली थी… 

घर में सब ने बारी-बारी से उस नोट को पढ़ा और फैसला राशि पर छोड़ दिया…” जब सौरभ ने तुम्हें आजाद कर दिया… तो हम कौन होते हैं रोकने वाले.… और सही तो है क्या मिला है तुम्हें इस शादी से… तुम हमारी तरफ से आजाद हो…!” ससुर जी ने फरमान सुना दिया…

 राशि नन्हें निखिल को गोद में लिए… जो चैन की नींद ,उसके आंचल में मुंह छुपाए ले रहा था… सोचती रही… आंखों के आंसू अब सूख चुके थे… आखिर उसने प्रिया और निखिल को ही अपना भविष्य चुना…

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 कानूनन तो वह सौरभ जी की विधवा थी.… इसलिए पेंशन की एक अच्छी रकम उसके हाथ में आने लगी.… सबका सहयोग भी मिला…उसने खुद को व्यस्त रखने के लिए एक छोटी सी नौकरी भी कर ली…वह वहीं रह गई…

 प्रिया थोड़ी समझदार हुई तो खुद ब खुद राशि को मां बुलाने लगी… निखिल की मां तो वह हमेशा से थी… सालों तक आंसू छिपे रहे… मगर जब प्रिया ने पूरे जिले में 12वीं में टॉप किया तो ये आंसू एक बार फिर मोती बन छलक पड़े…

 राशि ने अपने दोनों बच्चों को काबिल बनाया…और बच्चों ने उसे सम्पूर्ण गौरवशालिनी मां…

 यह बात अलग थी कि ससुराल में पति का प्यार उसे कभी नहीं मिला… लेकिन पति के लिखे हुए चार शब्द उसके जीवन की पूंजी थे…” तुम्हें जो मैं नहीं दे सका, वह सम्मान मेरे बच्चे देंगे……!”

रश्मि झा मिश्रा 

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