क्या पिता को सुख दुख की अनुभूति नहीं होती – शिव कुमारी शुक्ला

आज दशहरा था और सुखविंदर अपने ट्रक का माल उतरवा रहा था एक अंजान शहर में।वह अंतराज्यीय परमिट से चलने वाले लम्बी दूरी के ट्रक का ड्राइवर था। खाना खा वह तन्हा लेटा था तो अपने घर पत्नी, बच्चों की याद आ गई। आज त्योहार के दिन वह अकेला इस अनजान शहर में पड़ा है … Read more

बुढ़ापा

महिमा जी अपनी पोती की शादी में सम्मिलित होने कानपुर गईं थीं।वे सोफे पर बैठीं थीं। चाय का दौर चल रहा था और भी रिश्ते दार महिलाएं बैठीं थीं आपस में चुहलबाज़ी, गपशप चल रही थी।तभी रुपाली उनके भतीजे की पत्नी आती दिखाई दी वह कमर झुका कर चल रही थी। एक तो रुपाली का … Read more

पुत्री मोह

नीना का ससुराल लोकल ही था सो जब मन में आए मायके आ धमकतीऔर साधिकार अपनी फरमाइशें मम्मी मनीषा जी के सामने रखती। बेटी के मोह में वे उसकी सारी इच्छाएं पूरी करतीं। अपने ससुराल में वह ना तो ढंग से काम करती और ना ही उसका व्यवहार अन्य सदस्यों से सौहार्दपूर्ण था।बस अपनी मनमानी … Read more

अपनों का दिया दंश – शिव कुमारी शुक्ला 

निशी बेटा कब आ रही हो फोन उठाते ही बुआ की आवाज सुनाई दी। बस बुआ जितनी जल्दी हो सके निकलने की कोशिश करती हूं। हां बेटा जल्दी आ जा भाई की शादी में आकर थोड़ा हाथ बंटा शापिंग भी करनी है। हां बुआ आती हूं। हां सब आना समीर को भी साथ ले आना। … Read more

अच्छाई अभी भी जीवित है – शिव कुमारी शुक्ला 

रचना जी मेडिपल्स हास्पिटल जोधपुर के वेटिंग हॉल में बैठीं थीं।उनका नम्बर बहुत पीछे  था सो करीब दो से तीन घंटे लगने वाले थे।वे बैठीं -बैठीं इधर -उधर नजर दौडा रहीं थीं।नये मरीज आ रहे थे और पुराने दिखा कर लौट रहे थे। अच्छी खासी भीड़ जमा थी। वेटिंग हॉल बीच में था और एल … Read more

क्या पिता को सुख दुख की अनुभूति नहीं होती – शिव कुमारी शुक्ला

आज दशहरा था और सुखविंदर अपने ट्रक का माल उतरवा रहा था एक अंजान शहर में।वह अंतराज्यीय परमिट से चलने वाले लम्बी दूरी के ट्रक का ड्राइवर था। खाना खा वह तन्हा लेटा था तो अपने घर पत्नी, बच्चों की याद आ गई। आज त्योहार के दिन वह अकेला इस अनजान शहर में पड़ा है … Read more

बेटीयों को कितनी आज़ादी  दें – शिव कुमारी शुक्ला 

महिमा जी का परिवार पूर्णतया आधुनिक रंग में रंगा हुआ था। आलीशान कोठी सभी आधुनिक सुख-सुविधाओं से सुसज्जित, नौकर -चाकर, गाड़ियों की फौज।सब कुछ तो था उनके पास। उनके बच्चे दो बेटियां एवं एक बेटा जब आधुनिक परिधान पहन कर चमचमाती गाड़ियों में बैठकर जाते तो आस-पास के लोगों में उन्हें देखकर एक आह निकलती … Read more

इंसानियत मर गई – शिव कुमारी शुक्ला 

आज निलेश के घर के सामने भीड़ इकट्ठी थी।घर के अंदर कोहराम मचा हुआ था।उसका दो वर्षीय पुत्र मामूली खांसी में ही चल बसा था। उसकी मां का क्रंदन लोगों के कलेजे को चीर रहा था। बाहर लोगों में कानाफूसी का माहौल गर्म था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि खांसी की दवा देने … Read more

और वह नहीं गई – शिव कुमारी शुक्ला 

रोज की भांति झुमकू भी अपना उदास चेहरा लिए घड़ा उठा पनघट की ओर चल दी। ठंड के दिन थे। सूर्य अपनी प्रखर किरणों के साथ आसमान में कुछ ऊपर चढ़ आया था किन्तु सर्दी के कारण उसकी निस्तेज किरणें आंगन में बिखर गईं थीं। हवा की ठंडी लहरें कलेजे को चीर रहीं थीं। ग्रामीण … Read more

आप बहू को चढ़ाए गहने कैसे उतरवा सकती हैं ?? – स्वाती जैंन

केतकी , तुम तो इन गहनों को मांजी से भी ज्यादा संभाल कर रख रही हो , थोड़े दिनों में मांजी यह गहने तुमसे वापस लेने वाली हैं जेठानी सुमन अपनी देवरानी केतकी से बोली !! केतकी हैरानी से बोली – यह क्या कह रही हो भाभी ?? मुझे शादी में चढ़ाए हुए गहने भला … Read more

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