एक बहन का त्याग बना दूसरी बहन की खुशी !! – स्वाती जैंन

आंटी जी गर्म- गर्म खा लिजिए , वैसे मुंबई के समोसे और गुजरात के समोसे में काफी फर्क होता हैं , खुशबु के ऐसा बोलते ही सभी लोग हंस पड़े ! घर में खुशनुमा माहौल था , आज खुशबु की बड़ी बहन शैली को लड़के वाले देखने आए हुए थे !  खुशबु के पिताजी कमलेश … Read more

रिश्ते महंगे तोहफो के मोहताज नहीं होते ! – स्वाती जैंन

अरे दीदी ,  जेठानी जी का गिफ्ट क्या देखना , उनके भाई ने तो सिर्फ एक पाँच सौ रुपए की हल्की साड़ी और मिठाई का डिब्बा पकड़ा दिया हैं , रानी हंसते हुए अपनी ननद आकांक्षा से बोली !! देवरानी के लिए जेठानी के मायके से आया हुआ गिफ्ट उपहास का विषय बन चुका था … Read more

यह तो हमारे गांव का नौकर हैं !!-स्वाती जैंन

अरे वाह !! पापा जी फाईनली कल गाँव जा रहे हैं यह सोचकर आरती को आज सुकुन की नींद आ गई और दूसरे दिन आरती सुबह जल्दी उठ गई , सबसे पहले उसने फटाफट टिंडे की सब्जी और पराठे बना दिए ताकि ससुर जी को गांव जाते समय पैक करके दे पाए !! आज उसके … Read more

जब घी सीधी उंगली से नहीं निकलता तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती हैं !! – स्वाती जैंन

बहु , यह कैसा बेढ़ंगा खाना बनाया हैं तुमने ?? दाल- सब्जी में तो कुछ स्वाद ही नहीं हैं , दाल में नमक कम हैं और सब्जी में मिर्च ज्यादा हैं !!मेरे बेटे सन्नी को तो मेरे हाथो का खाना बहुत स्वाद लगता हैं , तुम्हारे हाथों में वह स्वाद नहीं !! अब क्या करूं … Read more

क्या पिता को सुख दुख की अनुभूति नहीं होती – शिव कुमारी शुक्ला

आज दशहरा था और सुखविंदर अपने ट्रक का माल उतरवा रहा था एक अंजान शहर में।वह अंतराज्यीय परमिट से चलने वाले लम्बी दूरी के ट्रक का ड्राइवर था। खाना खा वह तन्हा लेटा था तो अपने घर पत्नी, बच्चों की याद आ गई। आज त्योहार के दिन वह अकेला इस अनजान शहर में पड़ा है … Read more

बुढ़ापा

महिमा जी अपनी पोती की शादी में सम्मिलित होने कानपुर गईं थीं।वे सोफे पर बैठीं थीं। चाय का दौर चल रहा था और भी रिश्ते दार महिलाएं बैठीं थीं आपस में चुहलबाज़ी, गपशप चल रही थी।तभी रुपाली उनके भतीजे की पत्नी आती दिखाई दी वह कमर झुका कर चल रही थी। एक तो रुपाली का … Read more

पुत्री मोह

नीना का ससुराल लोकल ही था सो जब मन में आए मायके आ धमकतीऔर साधिकार अपनी फरमाइशें मम्मी मनीषा जी के सामने रखती। बेटी के मोह में वे उसकी सारी इच्छाएं पूरी करतीं। अपने ससुराल में वह ना तो ढंग से काम करती और ना ही उसका व्यवहार अन्य सदस्यों से सौहार्दपूर्ण था।बस अपनी मनमानी … Read more

अपनों का दिया दंश – शिव कुमारी शुक्ला 

निशी बेटा कब आ रही हो फोन उठाते ही बुआ की आवाज सुनाई दी। बस बुआ जितनी जल्दी हो सके निकलने की कोशिश करती हूं। हां बेटा जल्दी आ जा भाई की शादी में आकर थोड़ा हाथ बंटा शापिंग भी करनी है। हां बुआ आती हूं। हां सब आना समीर को भी साथ ले आना। … Read more

अच्छाई अभी भी जीवित है – शिव कुमारी शुक्ला 

रचना जी मेडिपल्स हास्पिटल जोधपुर के वेटिंग हॉल में बैठीं थीं।उनका नम्बर बहुत पीछे  था सो करीब दो से तीन घंटे लगने वाले थे।वे बैठीं -बैठीं इधर -उधर नजर दौडा रहीं थीं।नये मरीज आ रहे थे और पुराने दिखा कर लौट रहे थे। अच्छी खासी भीड़ जमा थी। वेटिंग हॉल बीच में था और एल … Read more

क्या पिता को सुख दुख की अनुभूति नहीं होती – शिव कुमारी शुक्ला

आज दशहरा था और सुखविंदर अपने ट्रक का माल उतरवा रहा था एक अंजान शहर में।वह अंतराज्यीय परमिट से चलने वाले लम्बी दूरी के ट्रक का ड्राइवर था। खाना खा वह तन्हा लेटा था तो अपने घर पत्नी, बच्चों की याद आ गई। आज त्योहार के दिन वह अकेला इस अनजान शहर में पड़ा है … Read more

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