रिश्तो की परख – लतिका पल्लवी

 शाम के वक़्त राहुल जब खेत से लौटा तो अस्मिता नें पूछा सारा धान कट गया या अभी बाकी है?कार्तिक का महीना था।सभी के खेत मे धान लहलहा रहा था।जिसे काटने का काम पांच दिन पहले शुरू हुआ था। राहुल नें कहा दो तीन दिन अभी और लगेगा।राहुल के पास अपनी जमीन बहुत कम थी।पर … Read more

निरादर – खुशी

लक्ष्मी दो बेटों की मां थी।श्याम और राम उसके पति महेश एक फैक्ट्री में नौकरी करते थे और लक्ष्मी घर से टिफिन सर्विस का काम करती थी। चारों की जिंदगी अच्छी चल रही थी कम था पर वो संतुष्ट थे।बच्चे भी जिद्दी नहीं थे।पर अचानक उनकी खुशी को नजर लग गई फैक्टरी में हादसा होने … Read more

निरादर – मनीषा सिंह

मां जी!दोपहर के 12:00 बज गए अभी तक ये आए नहीं•••?  घड़ी की सुइयां देखते हुए राधा अपनी सासू मां जानकी जी,जो दोपहर का खाना खा रही थीं से बोली।  12:00 बज गए क्या करना है? इतनी देर इंतजार किया है तो कुछ दे और सही!  अपनी अंतिम निवाले को खा उंगलियां चाटते हुए जानकी … Read more

मानसिक तलाक – गीता वाधवानी

होता है। श्रुति की सास जब जीवित थी तो एक बार उन्होंने कहा था कि “श्रुति तू आदत डाल ले,यह तो ऐसे ही बात करता है।”   तब श्रुति को बहुत बुरा लगा था। भई वाह! यह क्या बात हुई, अपने बेटे को समझाने की बजाय मुझे शिक्षा दे रही है कि अपमान की आदत डाल … Read more

निरादर – के आर अमित

गाँव का नाम था मथेहड़ चारों ओर हरियाली, तालाबों के किनारे झूमती सरसों और दूर-दूर तक फैले मक्की के खेत। इस साल तो जैसे धरती माँ ने दिल खोलकर वरदान दिया था। खेतों में इतनी मक्की लहलहा रही थी कि सुनहरी बालियाँ सूरज की रोशनी में चमकतीं और पूरे गाँव को अपनी महक से भर … Read more

रोज रोज का मिलना – विमला गुगलानी

 अभी तुलसी लेटी ही थी कि घंटी बजी। उसका बिल्कुल भी मन नहीं था उठने का लेकिन मजबूरी में उठना पड़ा। उसे मालूम था नीलू ही होगी, और वही थी, नीलू , उसकी अपनी बेटी।    नीलू आई , डेढ़ साल के बेटे वरूण को गोदी से उतारा और सोफे पर पैर फैला कर बैठ गई।” … Read more

आदर का क्षण… – रश्मि झा मिश्रा 

.…सारे काम खत्म कर महेश फिर प्रिंसिपल के दरवाजे के पास खड़ा हो गया… “सर… सर…!” ” महेश… आ जाओ… बोलो क्या बात है… क्यों एक ही बात पर अड़े हो…!” ” सर… आप अगर चाहेंगे तो सब हो जाएगा… प्लीज सर… नहीं तो मुझे यह नौकरी भी छोड़नी पड़ जाएगी…!” ” महेश एक तो … Read more

निरादर – सुदर्शन सचदेवा 

देखो ज़रा, ये वही हाथ हैं जो कभी बेटे के लिए खिलौने खरीदते थे, और अब मोबाइल पर ऑर्डर पैक कर रहे हैं। ज़िंदगी का नाम है बदलना, लेकिन आज सविता को महसूस हुआ — बदलाव सबसे मुश्किल तब होता है, जब वह अपने ही बच्चे की नज़रों में करना पड़े। सुबह बेटे आर्यन ने … Read more

निरादर – विनीता सिंह

सुबह का समय था, सूरज की किरणें चारों दिशाओं में फैल रही थी ।रेखा अपने कमरे में बडे बेमन से, एक सरल सी साड़ी पहनकर तैयार हुई। मां ने कहा बेटी तुम्हारा लंच रख दिया, इसे अपने पर्स में रख लो ।रेखा ने कहा ठीक है मां मैं जाती हूं मां बोली बेटा नाश्ता तो … Read more

निरादर – मधु वशिष्ठ

इलेक्ट्रिक तंदूर में बनी हुई अपनी पसंद की भिंडी, रोस्टेड बैंगन, कम घी का इस्तेमाल करके भी कितने स्वाद लग रहे थे। नए फ्रिज में जमाई हुई आइसक्रीम, 4 बर्नर वाला चूल्हा, नए सामान से सजा हुआ पूरा घर और मुस्कुराती सी प्रिया,जब तक प्रिया उनके साथ रही, शायद ही कभी उसके चेहरे पर ऐसी … Read more

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