कलह – रेखा जैन

सुबह के 8 बजे थे और मीना रसोई में नाश्ते की तैयारी कर रही थी।  उसने सुबह पहले अपने बेटे का टिफिन बना कर बेटे को स्कूल भेज दिया था। अब घर के सब लोगों का नाश्ता बना रही थी और साथ में पति का टिफिन भी बना रही थी क्योंकि उसके पति अजय टिफिन … Read more

कलह – के आर अमित

घर में हँसी नहीं थी बस चिंता चिल्लाहट और अशांति थी।और चिंता चिता समान होती है। धीरे-धीरे जीविन को जला डालती है एक सुबह भोर का उजाला मुर्गे की बाँग सब सामान्य भोलू खेत जाने को उठा  पर उसने अपने सीने पर हाथ रख लिया साँस तेज़ होने लगी कपकपी कदम डगमगाए और हाय हाय … Read more

दूरियां नज़दीकियाँ बन गई – संगीता अग्रवाल

” मां मैं सोच रहा हूं एक घर खरीद लूं।” संदीप ऑफिस से आते ही अपनी मां जया जी से बोला। ” पर बेटा ये घर है तो सही फिर दूसरे घर की क्या जरूरत है?” जया जी हैरानी से बोली। ” वो मां बात ऐसी है की शालिनी ( संदीप की पत्नी ) को … Read more

कलह – लक्ष्मी त्यागी

शांतपुर—नाम के विपरीत, अब वह गाँव शांत नहीं रहा था। चौधरी देवेंद्र सिह जी की हवेली के भीतर उठी एक छोटी-सी ‘कलह’ ने पूरे गाँव की नींद छीन ली थी।  चौधरी देवेंद्र सिंह, उम्र साठ के पार, गाँव के सबसे सम्मानित व्यक्ति माने जाते थे। उनके दो बेटे—राघव और विवेक—एक ही छत के नीचे रहते … Read more

कलह – सीमा सिंघी

अरे भाभी मैं तो मायके आई हूं और तुम अपने मायके चल दी यह क्या बात हुई भला। भाभी तुम्हें इतना तो समझना चाहिए कि जब ननद मायके आती है तो भाभी को अपने मायके नहीं जाना चाहिए। क्या तुम्हें अपने मायके से यह संस्कार भी नहीं मिले। शुभ्रा यही नहीं रुकी वह फिर कहने … Read more

कलह – सुदर्शन सचदेवा 

ज़िंदगी बाहर से बहुत खुशहाल लगती थी। बड़ी नौकरी, सुंदर घर, कार, और आधुनिक सुविधाएँ — सब कुछ था। लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी चीज़ थी जो धीरे-धीरे उनके घर की दीवारों को खोखला कर रही थी — कलह। हर सुबह आवाज़ों का संग्राम शुरू हो जाता — “तुमने फिर देर कर दी!” “बच्चों … Read more

कलह – मधु वशिष्ठ

रामेश्वर दास जी के तीन पुत्रियां और एक छोटा पुत्र था। उनकी दो बेटियों की शादी हो चुकी थी और अपनी तीसरी बेटी कला की शादी अपने दफ्तर के स्टोर पर काम करने वाले राघव से कर दी थी। रामेश्वर दास जी गवर्नमेंट में हेड क्लर्क थे। ज्यादातर दफ्तर के सामने वाली दुकान के मालिक … Read more

कलह – आराधना श्रीवास्तव

रक्षिता की निगाह घड़ी पर गई,  पूरे 10 बज चुके थे ।  वह अपनी मेंज से फाइल समेट जाने के लिए उठी तभी ओबेरॉय टीम लीडर ने आकर कहा…” रक्षिता तुम्हें जो प्रोजेक्ट मिला था, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ आज ही प्रोजेक्ट मैनेजर को भेजने की अंतिम तारीख है तुम अभी घर नहीं … Read more

कलह – टीआर. राहुल कुमार ‘मंदोला’

एक गांव के किनारे पर, पीपल और नीम के साए में एक पुराना घर था। वह घर केवल दीवारों का ढांचा नहीं था, बल्कि एक इतिहास था। मिट्टी की दीवारों में पुरखों की मेहनत की खुशबू थी, बरामदे की खाटों पर हंसी और यादों के निशान थे। सुबह की चाय, शाम की गपशप और त्योहारों … Read more

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