एक और मौका – सुदर्शन सचदेवा

रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे। शहर की सड़कें लगभग सो चुकी थीं, लेकिन रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म नंबर 3 पर बैठी भावना की आँखें अभी भी जाग रही थीं। उसके सूटकेस पर धूल जमी थी और चेहरे पर थकान… पर असली थकान उसके दिल में थी—हार मान लेने की। आज उसकी ज़िंदगी जैसे … Read more

एक और मौका – सीमा गुप्ता

“वंशु बेटा, कल ही रक्षाबंधन है, आपने पर्व और हर्ष के लिए राखी तो भेजी है न! हम सब बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।” मेघा दूर के शहर में रह रहे अपने जेठ की बेटी वंशिका से फोन पर पूछ ही रही थी कि तभी डोरबेल बज उठी। “अरे! वंशिका का भेजा पार्सल आ … Read more

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