जिम्मेदारी की दीवारें –  प्रतिमा पाठक

सुबह की पहली किरण जैसे ही आँगन में पड़ी, रसोई से बर्तनों की खनखनाहट की आवाज़ आने लगी। घर की बहू संध्या अपने तीन बच्चों के टिफ़िन तैयार कर रही थी। सासू माँ पूजा कर रही थीं, ससुर जी अख़बार पढ़ रहे थे, और पति राजीव मोबाइल पर दफ़्तर की मेल देख रहे थे। संध्या … Read more

मॉं को बच्चों का साथ चाहिए -अर्चना खण्डेलवाल

मां, मैंने आपके लिए वो सुन्दर सा शॉल भिजवाया था, आप जब नीचे घूमने जाओं तो यही पहनकर जाना, वसु अपनी मां हेमलता जी से कहने लगी, और हां मां मैंने जो आपके लिए स्वेटर भिजवाया है उसे भी पहन लेना, छोटी बेटी कनु भी बोली। इतने में सबसे बड़ा बेटा यश बोला कि मैंने … Read more

अपनत्व की छांव – प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’

“अरे सीमा तू….तू तो पहचान में भी नहीं आ रही….तेरे तो चाल–ढाल, रंग– रूप सब बदल गया….” निम्मी (नमिता) ने जब सीमा से कहा तो सीमा प्रत्युत्तर में सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई। सीमा और नमिता (निम्मी) सौतेली बहनें थीं जो आज बहुत वर्षों बाद बुआ के बेटे की शादी में मिली थी। सीमा की … Read more

अपनत्व की छांँव – निभा राजीव”निर्वी”

सत्रह वर्षीया किशोरी राशि के केश तेज हवा के झोंकों से उड़ रहे थे। वह होठों को भींचे हुए रेलवे प्लेटफार्म पर खड़ी थी। उसकी डबडबाई हुई दृष्टि पटरियों की ओर जमी हुई थी। तभी दूर से रेल की सीटी सुनाई थी और रोशनी चमक उठी। राशि दो कदम और पटरियों की ओर बढ़ गई। … Read more

अपनत्व की छांव

बरसात के छोटी-छोटी फुहार सूरज की किरणों के साथ मिलकर आँगन में रेशमी धागों जैसे चमक रही थी। गाँव  हरिपुर के लगभग हर घर में आज भी वही पुराने मिट्टी के आँगन नीम के पेड़ और कच्ची दीवारों पर गोबर की लिपाई में मौसम की महक दिखाई देती थी। उसी गाँव के एक किनारे पर … Read more

यशोदा मां

आदित्य अपने रुटीन से आफिस जाने के लिए तैयार होकर डाइनिंग टेबल पर बैठे। बैठते ही बोले ” अदिति क्या नाश्ता बनाया है।लाओ भाई, आफिस चलें” । अदिति ने नाश्ता और आफिस के लिए टिफिन बॉक्स लाकर टेबल पर रख दिया और बिना कुछ बोले किचन में चली गई। नाश्ता करते हुए आदित्य पुनः बोले … Read more

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