अपनत्व की छांव – खुशी

राधा और मीना दो बहने थी।पिता राजेश और मां रजनी एक छोटा सा खुशहाल परिवार था।राजेश MR था और रजनी स्कूल में अध्यापिका।राधा और मीना दोनो आठवीं में पढ़ती थी।तभी एक सड़क दुर्घटना में उनके माता पिता का देहांत हो गया।उनकी दुनिया उजड़ गई। मामा निरंजन और मामी लक्ष्मी, चाचा राकेश और चाची गरिमा सब … Read more

अपनत्व की छाँव – सीमा गुप्ता

“मम्मा, आपसे एक बात पूछूं?” मेरी नई नवेली पुत्रवधू आस्था ने मुझसे कहा। उसकी आंखों में जिज्ञासा और स्वर में हल्का सा रोष था। “अरे बेटा! अपनी मां से बात करने के लिए अनुमति की क्या ज़रूरत?” मैंने मुस्कराकर कहा। आस्था ने कहा, “मम्मा, ये बताइए कि आकृति दीदी की ननद के घर दीवाली का … Read more

अपनत्व की छांव – सुदर्शन सचदेवा 

 ज़रा सुनो ! अवनि एक कप चाय बना दो न, बस वैसे ही जैसे तुम अपने लिए बनाती हो। ये आवाज़ थी सावित्री देवी की — घर की बड़ी और समझदार सास की। रसोई में नन्हे-नन्हे कदमों से भागती बहू “अवनि” ने जवाब दिया — “जी माँ, बस दो मिनट में।” उसके स्वर में घबराहट … Read more

अपनत्व की छांव – अमिता कुचया

रीतू अपनी सास कमला जी से कहती है -मां जी अब आप कामवाली लगा लो। तो चौंकते हुए वो  बहू रीतू से बोली- क्या….ये क्या बोल रही है, और क्यों बोल रही है!! तुझे तो पता ही है कि कामवाली रखना तेरे बाऊजी को बिलकुल पसंद ना है।  ये सुनकर रीतू कहने लगी ,मम्मी जी … Read more

अपनत्व की छांव – के आर अमित 

बरसात के छोटी-छोटी फुहार सूरज की किरणों के साथ मिलकर आँगन में रेशमी धागों जैसे चमक रही थी। गाँव  हरिपुर के लगभग हर घर में आज भी वही पुराने मिट्टी के आँगन नीम के पेड़ और कच्ची दीवारों पर गोबर की लिपाई में मौसम की महक दिखाई देती थी। उसी गाँव के एक किनारे पर … Read more

मेरा साहिल – बालेश्वर गुप्ता

   देखो साहिल,मैंने तुम्हें अलग से इसलिये बुलाया है, क्लास में तुम्हे मेरा कहा अपमान लगता।मैं समझता हूं कि तुम डिलीवर कर सकते हो,पर तुम बिल्कुल ही लापरवाह होते जा रहे हो।होम वर्क तक पूरा नही होता तुम्हारा।       नीची नजर किये साहिल इतना ही बोला, सर मैं कोशिश करूंगा।       साहिल तुम्हारा हाई स्कूल है, तुम प्रथम … Read more

अपनत्व की छांव – उमा वर्मा

आज वह खत्म हो गई ।कृष्णा ही नाम था उसका ।साँवली सलोनी ।देखने में ठीक ठाक ।एक ही बहन दो भाई ।बड़े भाई की शादी हो चुकी थी ।छोटे की शादी होनी तय हुई ।कृष्णा के माता-पिता ने शर्त रख दिया कि आप भी अपना बेटा देंगे तभी बात बन सकती है ।बात बन गई … Read more

पूजाघर मे कैसा भेदभाव – संगीता अग्रवाल 

“रसोईघर मेरे लिए पूजाघर के समान है बहू इसलिए ध्यान रखना कभी यहां बिना नहाए मत घुसना क्योंकि यहां खाना नहीं प्रसाद बनता है !” दिव्या की शादी के बाद की पहली रसोई पर ही उसकी सास सीता देवी ने उससे कहा। ” जी मांजी मैं ध्यान रखूंगी इस बात का और आपको शिकायत का … Read more

अपनत्व की छाँव – ज्योति आहूजा

सुजाता आज फिर रसोई में देर तक खड़ी रही। गैस की आँच धीमी थी, पराठे सिक रहे थे, दाल पर तड़का लग रहा था, और बच्चों के डिब्बे सज रहे थे। हर दिन की तरह सबकी जरूरतें पहले, अपनी आख़िरी। कमरे में हँसी की आवाज़ें थीं, हलचल थी, पर उसके भीतर एक गहरा सन्नाटा था। … Read more

अपनत्व की छांव – परमा दत्त झा

आज सुबह सबेरे ममता अकचका गयी जब रात के तीन बजे श्वसुर जी इधर आते दीखे।उसका जी धक से रह गया।आज का जमाना खराब है,ऊपर से कितने श्वसुर —। मगर वह बाथरूम जा रहे थे, अचानक रूके और बाहर से कंबल लाकर अच्छे से ओढ़ा दिया।फिर कछुआ छाप जला दिया और आस्ते से लाईट बंद … Read more

error: Content is protected !!