उजाला – संध्या त्रिपाठी

 माँ – माँ उठ ना , देख  तो उजाला हो गया ….. मैं जाऊं पटाखा बिनने ? कहां जाएगी बिटिया पटाखा बिनने …..? जहां तू काम करती है ना माँ ….वहीं …  कल देखी थी मेम साहब का बेटा (भैया) खूब पटाखा फोड़े थे….. जरूर दो- चार इधर-उधर बिना फूटे रह गया होगा …!    अरे … Read more

पचास वर्ष बाद :माँ बेटे का मिलन – लतिका पल्लवी 

 बुची की माँ कहा हो ? चलो जल्दी से नई बहू आ गईं है सभी तुम्हारा इंतजार कर रहे है। चलो चलकर अपनी पोता बहू को परीछ कर उतारो।ना बेटा ना मै नई बहुरिया के सामने नहीं जाउंगी। मै आज तुम्हारी एक भी बात नहीं सुनूंगा और ना ही मानूंगा। मै अब बच्चा नहीं रहा, … Read more

करवाचौथ का व्रत – लतिका श्रीवास्तव

बहुरानी पहले करवाचौथ की बधाई सदा सौभाग्यवती रहो खुश रहो सुमित्रा जी ने नवेली बहू नीलम को पैर छूने पर आशीष देते हुए गदगद हो गईं । आओ यहां बैठो तुम्हारा पहला करवाचौथ है इसलिए तुम्हे कुछ परंपराएं बता दूं।जिसे सुन कर तुम्हे अपार खुशी होगी सुनकर नीलम उत्सुक हो उठी। जानती हो हमारे घर … Read more

एक आंख ना भाना – विनीता सिंह

रमेश एक छोटे शहर का लड़का था उसने बड़ी मेहनत की मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी प्राप्त कर ली। वह दिन रात मेहनत करता जिससे उसकी कंपनी ऊंचाईयों को छूए। यह सब देख कम्पनी के मालिक अनूप सेठी जी रमेश के काम से खुश थे उन्होंने रमेश की ईमानदारी और मेहनत देखते हुए … Read more

एक आँख न भाना – मीरा सजवान ‘मानवी’

राधा और सुषमा एक ही मोहल्ले में रहती थीं। दोनों पहले बहुत अच्छी सहेलियाँ थीं—साथ बाजार जातीं, त्यौहार मनातीं, और हर बात साझा करतीं। पर वक्त के साथ रिश्तों में एक छोटी सी दरार आ गई। हुआ यूँ कि एक दिन राधा की बेटी ने स्कूल प्रतियोगिता में पहला स्थान पा लिया तो सुषमा के … Read more

सीरत – कल्पना मिश्रा

काला रंग,एक आंख आधी बंद सी और बाहर निकले हुए दांत,,,कुल मिलाकर वह मुझे एक आंख ना भाती। मैं बहाने बनाकर उसे निकालना चाहती लेकिन उसकी मां हाथ जोड़कर अपनी कमजोर स्थिति का हवाला देकर मुझे चाहकर भी उसे नही निकालने पर मजबूर कर देती। फिर एक दिन अचानक मेरे पति नही रहे।उनकी तेरहवीं के … Read more

आग में घी डालना – डॉ कंचन शुक्ला

“प्ररेणा तुम हमेशा किताबों में क्यों घुसी रहती हो??  कभी-कभी घर के कामों में भी हाथ बटा दिया करो दिन भर कॉलेज में रहो और जब घर आओ तो क़िताब लेकर बैठ जाओ, घर के काम के लिए  मैं और तुम्हारी बड़ी बहन तो है ही बस तुम महारानी की तरह बैठ कर राज करो” … Read more

एक मुक्का – लतिका श्रीवास्तव

अन्ततः दांत के डॉक्टर के पास मुझे जाना ही पड़ा .. बकरे की मां कब तक खैर मनाती..!डेंटिस्ट के यहां से घर वापिस आकर बैठा ही था कि पड़ोसी श्यामलाल टपक पड़े।पत्नी से बर्फ लेकर दांत की सिंकाई के लिए तत्पर होता मैं असमय आए श्यामलाल को देख चिढ़ गया।आ गया घाव पे नमक छिड़कने। … Read more

बचपन की यादें – रीतू गुप्ता

मामू की शादी में सभी बरसों बाद मिल रहे थे। मामू, मौसी और मम्मी तो कभी मुस्करा रहे थे कभी आंख भर लेते । नानी बार बार तीनों बच्चों को, नाती-नातिन को साथ देख बलाएं ले रही थी। “देख रही हो सुगंधा …आज पूरा घर बच्चों के ठहाकों से गूंज रहा है” ~ नानू बोले।  … Read more

आग में घी डालना – प्रतिमा श्रीवास्तव

आग में घी डालना( लघुकथा) सासू मां को मैं फूटी आंख नहीं सुहाती थी। किसी तरह उनके दिल में जगह बनाना शुरू ही किया था कि छोटी ननद आकर मेरे खिलाफ भड़का दी थी। उस दिन मुझे बहुत दुख हुआ था कि बहू कितनी भी कोशिश कर ले ससुराल को अपना बनाने की लेकिन उसे … Read more

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