मां बाप की बद्दुआ से डरो बेटा – मंजू ओमर 

मां, मां कहां हो तुम इधर बाहर धूप में बैठी हूं । लो ये पेपर साइन कर दो पेंशन निकलवानी है।अरे बेटा हर बार मेरी पेंशन निकाल लेता है मुझे एक पैसा नहीं देता।बेटा मेरा भी तो कुछ खर्चा है।तुम्हारा क्या खर्चा है मां।मिल तो रहा है घर में खाने पीने को और रहने को … Read more

बाँझ – रीतू गुप्ता

“संध्या,संध्या जल्दी आओ यार… डॉक्टर के पास जाना है ना आज…सारे टेस्ट होने है ना आज  … भूल गई क्या?”~ तैयार होते हुए मेहुल बोला। संध्या~ “आ रही हूं जी।” संध्या और मेहुल की शादी को 5 साल हो गए थे । दोनों के कोई औलाद नहीं थी। आज डॉ. के कहने पर सभी टेस्ट … Read more

अपराधमुक्त – अर्चना सिंह

“कब से तुम्हें फोन लगा रही हूँ मोनिका ” ? फोन नहीं उठाती हो बेटा ! मुझे चिंता हो जाती है , अगर ब्यस्त भी हो तो एक बार बोलकर फोन रख दिया करो मुझे तसल्ली होगी ” । एक स्वर में चेतना जी अपनी बेटी को अपनी चिंता का कारण सुनाए जा रही थीं … Read more

शायद मुझे भाभी की बद्दुआ लग गई। – अर्चना खण्डेलवाल

अरे!! भाभी आपका तो चेहरा लटक गया है, क्या हुआ जो मायके नहीं जाओगे? देखो मेरी फाइनल की परीक्षाएं है और मम्मी के घुटनों में दर्द रहता है और जब भाभी घर पर हो तो ननद को आराम मिलना ही चाहिए, आप कहीं नहीं जायेगी, आप चली जायेंगी तो घर का काम कौन करेगा? अपना … Read more

नालायक बेटा – शुभ्रा बैनर्जी

“सुनो मधु,आज जैसे ही शंभू आए मुझसे मिलने के लिए कहना।पता नहीं कब आता है,मुंह छिपाकर कमरे में चला जाता है।तुम भी तो कमरे में जाकर खाना दे आती हो। दो दिन नहीं खाएगा ना,तो सब अकल ठिकाने पर लग जाएगी।मुझसे कभी सीधे मुंह बात भी नहीं करता। शर्मा जी के बेटे को देखो।राम है … Read more

कुछ गलती की माफ़ी नहीं होती – लतिका पल्लवी

रामायण जी के घर पर सत्यनारायण की पूजा हो रही थी। करीब करीब पूरा गाँव इकट्ठा था।आज रामायण जी के पोते का पहला जन्मदिन था।वे इस ख़ुशी मे नारायण पूजा करवा रहे थे उसके बाद भोज का भी इंतजाम था।पूजा हो ही रही थी कि तभी उनके पड़ोस का लड़का संजय दो लड़को के साथ … Read more

दुआ का असर – लतिका श्रीवास्तव

शाम ढल रही थी धीमे धीमे।सूर्यास्त की लालिमा बहुत मनोयोग से आसमान को अपने आगोश में लेने को तत्पर हो चली थी।सांध्यकालीन आकाश में बादलों की मनोहारी छटा किसी अनोखे अबूझ चित्रकार की सधी हुई तूलिका से अनुपम रंग संयोजन  उकेरने में दत्त चित्त थी।कैसा चित्रकार है यह जो रोज उसी काम को पूरी तत्परता … Read more

बद्दुआ – के आर अमित

नया नया बंदूक का लाइसेंस बनवाया था। अब पूरे गांव में वो पहला और इकलौता शख्स था जिसके पास दोनाली बंदूक थी। भैंस चराने जंगल जाता तो बंदूक चंबल के डकैतों की तरह कंधे पे रखकर निकलता था। बार बार हाथ अनायास ही मूछों पे चला जाता चाल भी पहले से बदल गई थी। एक … Read more

ओहदा – (अर्चना सिंह)

रिटायरमेंट के बाद विभूति जी के पास ये पहला मौका था जब तसल्ली से बिना बहाना किए अपनी बेटियों के पास रह सकते थे । दोनो बेटियाँ एक ही शहर दिल्ली में ब्याही हुई थीं । ईश्वर की दया से किसी भी चीज में कोई कमी नहीं थी। दोनो दामाद सरकारी ऑफिसर थे । कभी … Read more

 बद्दुआ दुआ बन जाती है – विभा गुप्ता

 ” बस दीदी..आप बहुत बोल चुकीं..मैं जब से इस घर में आई हूँ, आप मुझमें कोई न कोई कमी निकालती ही रहीं हैं।फिर मेरी बेटी को..।ये भी नहीं सोचती कि वो आपके ही देवर की बेटी है।और आज तो आपने श्रद्धा को..।” कहते हुए आनंदी का गला भर आया।   ” तो फिर यहाँ से चली … Read more

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