“बुढ़ापे का असली सहारा न बेटा न बेटी बल्कि बहू होती है“ – सोनिया अग्रवाल 

” अरे वाह बेटा क्या सब्जी बनाई है, बिल्कुल मेरी मां के हाथ के स्वाद की याद आ गई । जब से तुम्हारी सास इस घर में आई तो मां को कभी कोई कार्य ही नहीं करने दिया। आज तुम्हारे हाथ की सब्जी बिल्कुल मां के हाथ के खाने की याद दिला गई।” ससुर रमेश देव के द्वारा सराहना के यह शब्द सुन बहु स्वाती निहाल हो गई। हो भी क्यों न इतनी गर्मी सर्दी हर मौसम में तीनों पहर सबकी पसंद का स्वादिष्ट खाना बनाने

की हर संभव कोशिश करती थी, जिस से सब खुश भी रहे और उसकी प्रशंसा भी करे।  स्वाति के ससुराल में दादी सास निर्मला जी , ससुर रमेश जी और सास कामिनी जी ,पति  हेमंत और देवर विनय थे। रमेश जी की बात सुन बाकी सब तो मुस्कुरा दिए मगर कामिनी जी पता नहीं क्यों चिढ़ गईं। 

 वैसे तो स्वाति कामिनी जी की ही पहचान की पसंद करी हुई लड़की थी, शुरू शुरू में तो कामिनी जी स्वाति को भरपूर स्नेह करती थी, मगर जैसा कि अक्सर होता आया है , अब तक सबके द्वारा खुद की तारीफ सुन वो अभिभूत होती रहती थी। होती भी क्यों न कामिनी जी अपने ससुराल में सबकी चहीती थी। देवर , ननद उनके मुरीद थे। बाद में देवर और ननद तक के ससुराल में भी कामिनी जी की बहुमुखी प्रतिभा के ही चर्चे थे।

पूरी जिंदगी अपनी ही अपनी तारीफ सुनते सुनते कामिनी जी कब आत्म मुग्ध रहने लगी , किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। स्वाति के गुणों को देख कर उसे पसंद करने वाली कब उसके ही गुणों से चिढ़ने लगी उन्हें खुद भी पता नहीं चला।

     आज भी कुछ ऐसा ही हुआ कि जब कामिनी जी के ननद नंदोई आज अपनी बेटी की शादी का न्योता देने आए , तो स्वाति की मेहमाननवाजी से बहुत खुश हुए। दोनों बार बार बस यही बात दोहराते रहे कि बस भाभी जी हमारे बेटे के लिए भी आपको ही लड़की ढूंढनी है।

आप तो बहुत भाग्यशाली हो जो अपने जैसी बहु मिली। सबकी नजरों में हमेशा मान सम्मान पाने वाली कामिनी जी ने जब देखा कि नई लड़की धीरे धीरे उनकी जगह ले रही है तो अंदर ही अंदर कुढ़ हैं। स्वाति की खुद से हुई तुलना उन्हें परेशान कर रही थी। 

        कामिनी जी स्वाति को कुछ भी कह  खुद से बुरा न बन अब उसको ही बुरा बनाने के बारे में सोचती रहती। जैसे कि खुद ही स्वाति को थक जाने पर आराम करने की कह , शाम के 5 बजते ही रसोई में घुस जाती , और नए नए व्यंजन बनाती और सबको खिलाते समय सबकी तारीफ सुन सुन कर खुश होती।

और बातों बातों में जताती रहती की आज स्वाति आराम कर रही थी न तो उन्होंने ही खाना बना लिया। बातों ही बातों में जताती की स्वाति बेफिक्र है किसी की परवाह नहीं करती। सब तो इन बातों को हल्के में ले जाते , उनके व्यंग्य के पीछे के मर्म को समझ नहीं पाते , मगर निर्मला जी को कुछ कुछ समझ आने लगा था।

         एक  दिन स्वाति के पापा का फोन आया कि स्वाति के किसी जरूरी दस्तावेजों पर दस्तखत चाहिए जब भी अनुकूल लगे तो आकर कर जाए । स्वाति ने जब यह बात कामिनी जी को बताई तो कामिनी जी ने खुद ही स्वाति को उसके घर भेज दिया। स्वाति ने कहा भी कि एक बार हेमंत को बता दे, जोकि शहर के बाहर गया हुआ था। तो कामिनी जी ने यह बोल कर स्वाति को मना लिया कि मैं खुद ही बता दूंगी।

उसके पीछे से उसके बारे में ऐसे बोलती रही की स्वाति जैसे जिद करके गई हो। हालांकि स्वाति और हेमंत की फोन पर बात हो चुकी थी तो  किसी भी तरह की कोई गलतफहमी की जगह नहीं थी।  स्वाति ने  हेमंत से  दो चार दिन घर रुकने की अपने मन की बात भी हेमंत को बता दी,

जिसे हेमंत ने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया। मगर घर पहुंच कर मां कामिनी की बातें उसे परेशान कर रही थी कि हुआ तो कुछ और है और मां कुछ और ही कहानी बता रही है।

मगर कुछ बोलकर मां को परेशान नहीं करना चाह रह था। इधर कामिनी जी बड़ी खुश खुश दिखती थी, जो ज्यादातर अपने कमरे में रहती अब तो स्वाति के पीछे से बड़े भाग भाग कर काम करती , ऐसे दिखाती की स्वाति से ज्यादा अच्छे से काम कर सकती हूं और उसके न होने पर भी उन्हें कोई फरक नहीं पड़ता। 

      एक तो हेमंत उस दिन के मां के बर्ताव और दूसरा दो तीन के बर्ताव को समझने की कोशिश में लगा हुआ था। जब भी स्वाति की कोई बात छेड़ता तो मां कैसे अनसुना कर रही थी,

स्वाति की फोन आने पर व्यस्त होने का दिखावा करती, अब वो समझ रहा था कि मां ने शायद स्वाति को अपना प्रतिद्वंदी मान लिया है। कामिनी जी का व्यवहार सदा इतना कोमल था कब उस में चालाकियां आ गई, यह बात हेमंत को बहुत उदास कर रही थी। 

      सोच सोच कर हेमंत ने एक राह ढूंढी जिस से वो सब कुछ सही कर सक पाने की जरूरत समझ रहा था। रात में ही उसने स्वाति को फोन कर अगले महीने वापिस लौटने के लिए यह कह कर  मना लिया, कि अगले महीने मां के जन्मदिन पर उन्हें स्वाति के गर्भवती होने की ख़बर सुना कर आश्चर्यचकित करेंगे।और जब तक स्वाति कामिनी जी  से  ज्यादा बात न करे कभी खुशखबरी उसके मुंह से निकल जाए और सारा सरप्राइज़ खराब हो जाए।

हुआ यूं था कि हेमंत के शहर से बाहर जाने पर ही स्वाति को दो दिन बाद अपने गर्भवती होने की जानकारी हुई, हेमंत के साथ साझा करने पर हेमंत ने उसे साथ मिलकर सबको खुशखबरी बताने का निर्णय लिया था। जो स्वाति के अपने मायके चले जाने से टल रहा था। 

     इधर स्वाति के न आने से कामिनी जी जो शुरू शुरू में बड़ी चहक रही थी , दिन बीतने पर अब उन्हें अपने अनचाहे सदस्य स्वाति की याद आने लगी। बातों बातों में उन्होंने हेमंत से पूछा तो हेमंत ने नाटकीय अंदाज में गुस्सा होते हुए कहा जब आना होगा आ जाएगी। मुझे कौन सा बता कर गई थी। मुझे भी 10 दिनों के लिए फिर से बैंगलोर जाना पड़ेगा तो शाम तक आप मेरा बैग पैक कर देना। हेमंत पहले कभी भी इतने दिनों के लिए बाहर नहीं गया था। कामिनी जी ने बड़े ही उदास मन से हेमंत को विदा किया। कामिनी जी के पति और छोटा बेटा भी सुबह अपने अपने दफ्तर चले जाते और पीछे से उनकी सास और वो दोनों रह जाते। सास को आराम करने को कह जब वो खाली वक्त में अपने कमरे में होती तो उन्हें स्वाति की याद आती। 

     एक तो उन्होंने स्वाति के आने के बाद इतना काम नहीं किया तो शरीर का दर्द बढ़ने लग गया था। फिर जब मन न होने पर भी वोही चाय बनाना , खाना तैयार करना उन्हें अब बुरा लगने लग गया था। सोचती थीं कि स्वाति होती तो पैरों की मालिश के साथ साथ बढ़िया सी चाय बिस्तर पर ही मिल जाती थी। उसकी हंसी कानों में गूंजती थी। अब कामिनी जी को बड़ा गुस्सा आ रहा था खुद पर की वो क्यों नाहक ही उस बच्ची से अपनी तुलना करती थी? अपनी पसंद करी हुई बच्ची को ही वो अपनी बातों से दुखी कर देती थी फिर भी उसने कभी पलट कर जवाब नहीं दिया। कितने अरमानों से लाई थीं वो स्वाति को। स्वाति ने भी घर हरा कर दिया था। मगर बेमतलब ही उनके मन के उपजे अहंकार की वजह से वो अकेलेपन को झेल रही थी। उन्होंने सोचा जैसे ही हेमंत आयेगा उसी दिन वो हेमंत को भेज स्वाति को बुला लेंगी।  जो इतने दिन से उन्होंने स्वाति को फोन नहीं किया था आज उन्होंने स्वाति को फोन मिलाया तो स्वाति ने फोन नहीं उठाया क्योंकि हेमंत बैंगलोर नहीं स्वाति के घर उसे लेने गया था । इसलिए हेमंत ने स्वाति को फोन नहीं उठाने के लिए कहा। 

         आज कामिनी जी बड़ी खुश थी। पति के हाथों की चाय और हरे भरे फूलों के गुलदस्ते से जन्मदिन की शुरुआत ने उनको खुशी से भर दिया। सभी से शुभकामनाएं मिल चुकी थी मगर न तो स्वाति और न ही हेमंत दोनों में से किसी का फोन नहीं आया तो थोड़ा उदास हो गई । निर्मला जी ने प्यार से उनके सर पर हाथ रखा तो आंसू की कुछ बूंद उनके गाल पर लुढ़क गई। निर्मला जी ने जब पूछा कि “क्या स्वाति की याद आ रही है”? तो कामिनी जी ने हां में सिर हिला दिया। तब निर्मला जी ने कहा बेटा ऐसा हर घर में होता है जब नई नई बहु घर में आती है तो पता नहीं सास क्यों उसे अपना प्रतिद्वंदी मान लेती है। उसे लगता है कि सब कुछ उस से झीन जाएगा। मन ही मन बैर रखती है। वो यह भूल जाती है कि कभी वो भी बहु बनकर इस घर में आई थी। जैसे उसने गृहस्थी बनाई वैसे ही बहु की भी मदद करे। क्योंकि एक बहु ही होती है जो पूरे घर की धुरी होती है। जिस पर अपने परिवार की सारी जिम्मेदारी होती है। जब सब आदमी काम पर और बेटी ससुराल में होती है तो सास के पास बहु पूरे दिन ढाल बनकर खड़ी रहती है। ऐसे में सास को बहु को अपना हितैषी मानना चाहिए न कि प्रतिद्वंदी। बहु वो पौधा होती है जिसकी खुशहाली उसके ससुराल से पता चलती है । वो सुखी पूरा परिवार सुखी।

           अब कामिनी जी को अपनी गलती का पूरा अहसास था। उन्होंने अब सोच लिया था कि वो अब कभी स्वाति से अपनी बराबरी नहीं करेंगी। वो अभी रसोई की तरफ मुड़ी थी कि अचानक से बेल बजी जाकर दरवाजा खोला तो स्वाति और हेमंत खड़े थे। स्वाति ने अंदर आकर सास और दादी सास के पैर छुए और हेमंत ने सबको खुशखबरी सुनाई की जल्दी ही नया मेहमान आने वाला है। कामिनी जी के लिए जन्मदिन पर इस से बड़ा उपहार क्या होता। कामिनी जी ने स्वाति को गले लगा लिया और खूब दुआएं और आशीर्वाद दिए। 

          न तो कामिनी जी न ही स्वाति को पता चल पाया कि हेमंत ने क्या और क्यों किया? बस हेमंत अपनी मां और पत्नी को देख  मुस्कुरा रहा था। 

सोनिया अग्रवाल

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