स्मृति इंजीनियरिंग करके बहुत अच्छी कंपनी में कार्यरत थी।अच्छे काम के चलते कई बार कंपनी की तरफ से विदेश हो आई थी और दो साल में ही प्रमोशन मिल गया था। घर में रागिनी जी, बिमलेश जी और एक बेटा राकेश और बिटिया स्मृति थे।
उम्र बढ़ने लगी तो बिमलेश जी सुयोग्य वर के लिए मेट्रोमोनियल में शादी का डाल दिए थे और बड़े अच्छे – अच्छे रिश्ते भी आने लगे थे लेकिन मां बेटी मिल कर हर रिश्ते में कुछ ना कुछ कमी निकाला करती थी। किसी के रंग रूप,नाक नक्श पर किसी की हैसियत पर।
बिमलेश जी अब बहुत परेशान हो चुके थे क्योंकि लड़की अब तीस की हो चुकी थी और वो रिटायर हो चुके थे लेकिन मां – बेटी को ना तो फ़िक्र थी और ना ही किसी की कोई बात की परवाह।
एक दिन बिमलेश जी बिफर पड़े कि,” मुझे नहीं लगता है कि तुम’ बेटी का घर बसने दोगी’ क्यों कि वो तो नासमझ है और तुम उसको समझाने की बजाय उसको गुमराह कर रही हो।जिस उम्र में लड़कों की शादी होती है उस उम्र की लड़की हो रही है।चार साल से मैं रात – दिन एक करके जितने भी अच्छे रिश्ते लाए तुम लोगों ने सब में कुछ ना कुछ कमियां निकाली और उसे मना कर दिया।”
” हमारी लड़की कितनी खूबसूरत और काबिल है जी,तो देख परख कर ही रिश्ता करूंगी ना” रागिनी जी चिल्ला कर बोलीं।घर में रागिनी जी की मनमानी चलती थी और उनको इस बात का अहसास नहीं हो रहा था कि अब रिश्ते कम आने लगे थे क्योंकि लड़की की उम्र ज्यादा हो रही थी।
बिमलेश जी ने स्मृति को बुलाया और उससे पूछा कि,” बेटी तुमने क्या सोचा है शादी के बारे में। तुम तीस साल की हो चुकी हो।तुम और तुम्हारी मम्मी कैसा लड़का तलाश कर रही हो? आखिर बाताओ मुझे क्यों कि अब तक मैंने जो भी रिश्ता बताया तुम दोनों ने सही तरीके से उस पर विचार तक नहीं किया है।अपना जबाब दो क्या चाहिए तुम को आखिर?”
पापा!” आप चिंता मत करिए अभी कौन सी उम्र निकल गई है। जिसको गरज होगी वो करेगा।” स्मृति की बातों में जो घमंड था वो सही नहीं था क्योंकि हर काम का सही वक्त होता। वक्त पर किया शादी व्याह भविष्य के लिए सही रहता है वरना रिटायरमेंट के बाद भी बच्चे पालते रहो और जिम्मेदारी से मुक्ति मिलती ही नहीं है।
समय का क्या है वो अपनी रफ़्तार से भागता ही रहता है,वो कब किसके लिए रुका है।वही हो रहा था यहां भी,अब स्मृति के लिए रिश्ते आने बंद से होने लगे थे और जो आते वो या तो तलाक हुआ रहता है विधुर होते थे।
छोटे भाई की उम्र हो गई थी शादी की। बिमलेश जी ने बिना किसी की राय लिए बेटे को समझाया तो वो तुरंत शादी को तैयार हो गया लेकिन उसके रिश्ते होने में भी दिक्कत आ रही थी क्योंकि कोई भी लड़की वाले ये नहीं चाहते थे कि बड़ी बहन अविवाहित है और घर में ना जाने कैसा व्यवहार होगा उसकी बेटी के प्रति।सास ननद मिलकर घर के माहौल को खराब ना कर दे।ये गलत भी नहीं था क्योंकि जो भी अपनी बेटी देगा उसे सबकुछ जानने का हक तो होता है।अंत में ये निर्णय लिया गया कि बहू को यहां कौन सा रहना है वो तो बेटे के साथ ही रहेगी तब जाकर रिश्ता तय हुआ।
बड़ी बहन को और मां को ये बात अखरने लगी थी कि बड़ी बेटी क्वारी बैठी है और छोटे भाई की शादी हो रही थी लेकिन कहते हैं ना कि अब पछताने से क्या फायदा जब वक्त निकल गया था। जिसने भी समय की कीमत नहीं किया उसको भुगतना पड़ेगा ये बात पक्की है।
रागिनी जी चाहतीं थीं कि बेटे के शादी के साथ – साथ बेटी की भी शादी हो जाए। बहुत तलाश करने पर एक बड़ी उम्र के आदमी के साथ शादी तय करनी पड़ी जो पहले से शादीशुदा था और उसकी पत्नी का देहांत हो गया था।
पहले बेटी को विदा किया फिर बहू ले कर आईं थीं रागिनी जी। अफसोस तो बहुत था अपनी गलती का जो बेटी को समझाने के बजाय उसको गलत रास्ता दिखाया और घमंड में अच्छे रिश्ते की कदर नहीं की थी।
जिम्मेदारियों से मुक्ति तो मिल गई थी क्योंकि दोनों बच्चों का घर बस गया था लेकिन पछतावा ऐसा था जो उनको हर समय टीसता रहता था कि उन्होंने पति की बात को नजरंदाज करके ग़लत किया था।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी