बिटिया का घर बसने दो – कंचन प्रभापांडे :  Moral Stories in Hindi

सृष्टि किसी उलझन में बैठी हुई थी तभी कॉल वेल बजती है। सृष्टि उठाती है तो उसकी मां दहाड़ती है कहां जा रही है? गेट नहीं खोलना ,घुमक्कड़ आया होगा। सृष्टि के कदम रुक जाते हैं कुछ देर बाद फोन की रिंग बजती है ।सृष्टि जैसे ही फोन उठाती है उसकी मां की आवाज आती है कौन है जरा हमारी बात कराओ, सृष्टि ना चाहते हुए भी फोन काट देती है ।इस प्रकार सृष्टि अपने पति रोहन से बात नहीं कर पाती है धीरे-धीरे उनकी दूरियां और ज्यादा बढ़ने लगती हैं। सृष्टि बात करना चाहती है लेकिन वह बात नहीं कर पाती है ।उधर रोहन तड़पता है लेकिन उसकी बात नहीं होती है ,दिन ,हफ्ते, महीना बीत जाते हैं, एक दूसरे की तड़प मन में लिए बैठे रहते हैं ।

एक दिन उसकी मां बोलती है अब बहुत दिन हो गए मुकदमा कर दो उस पर और गुजारा भत्ता लो, हम नहीं खिला पाएंगे और सृष्टि कुछ कहती  है लेकिन, उनकी आवाज दब जाती है इसकी आवाज कोई नहीं सुनता, उसे कोई नहीं समझता, और कोर्ट में मुकदमा दर्ज हो जाता है ।तारीखों पर तारीखे तारीखों पर तारीखे पड़ने लगती है ।यहां तक सृष्टि तारीखो पर जाना भी छोड़ देती है। रोहन जो सृष्टि का दीवाना है वह सृष्टि को ढूंढता रहता है, लेकिन मां बाप के चंगुल में फंसी सृष्टि रोहन से बात नहीं कर पाती है ।और कभी बात होती है तो कहती है कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करती हूं।

 धीरे-धीरे सृष्टि और रोहन एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। मुकदमा अभी चल रहा है। अब तो दोनों परिवार एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगाने लगे ,कोर्ट  द्वारा  गुजारा द्वारा भत्ता के रूप में और तलाक के रूप में मोटी रकम वसूली जाती है। जिस पैसे को लेकर उसकी मां और उसके भाई बहुत प्रसन्न होते हैं। ,उस पैसे  को भाइयों के ऊपर खर्च करते हुए उसकी मां को बहुत खुशी होती है धीरे-धीरे कर सृष्टि के सारे पैसे खर्च हो जाते हैं। फिर एक दिन उसके भाई उसे पीछा छुड़ाने के लिए एक  *उम्र दराज आदमी *से उसकी शादी की बात करते हैं।बात फाइनल हो जाती है और एक दिन दो चार आदमियों के साथ  वह  आदमी सृष्टि के पास आता है।

सृष्टि यह देखकर चौंक जाती है कि उसके पास शादी का जोड़ा, और बहुत सारे गहने हैं। वह आदमी सृष्टि से कहता है कि यह सब पहन लो ,और गाड़ी में बैठ जाओ -सृष्टि कुछ समझ पाती तब तक उसके भाई भी आ जाते हैं ।और बोलते हैं “हां सृष्टि यह सब पहन लो और जल्दी चलो मंदिर में पंडित जी इंतजार कर रहे होंगे “सृष्टि अचंभे से देखती हैं! और बोलती है क्या ?और कहां ?किस लिए ?शादी करवा रहे हैं तुम्हारी हम पर कब तक बोझ बनी रहोगी? वैसे भी यह आदमी अच्छा खासा कमाता है, दोनों परिवारों का खर्च भी चलेगा ।सृष्टि इस यह सुनकर स्तंभ रह जाती है आज उसे सब समझ आता है। भाइयों की चालाकी वह टूट जाती है।

वह अपना दुख किससे कहे? घर में उसका कौन अपनाहै? माँभी तो नहीं अपनी, सब दुश्मन नजर आने लगे !वह चुपके से बहाना बनाकर निकलती है ,और न जाने क्या-क्या सोचने लगती है अचानक !एक गाड़ी सामने से आ जाती है और उसकी टक्कर से सृष्टि गिर पड़ती है। बेहोश हो जाती है 2 घंटे बाद उसे होश आता है तो यह अपने को एक हॉस्पिटल में पाती है जहां वह अपने सामने रोहन को देखती हैं जो किएक बहुत बड़ा डॉक्टर है। रोहन उसका इलाज करता है सृष्टि रोती है तो रोहन उसे शांत कराता है। अभी कुछ नहीं पहले ठीक हो जा फिर बात करते हैं ।सृष्टि को कुछ आराम मिलता है वह  वहां से चुपके से निकल जाती है ।रोहन खाली बेड देखकर सृष्टि को ढूंढने दौड़ पड़ता है। कुछ दूर  जा कर वह उसे रोक लेता है और कहता है सृष्टि कहां जा रही हो ?सृष्टि –*मुझे छोड़ दो रोहन पता नहीं मैं कहां जा रही हूं मेरा कोई नहीं है* मैं हूं ना तुम मेरी हो ,मेरी ही रहोगी। देखो मैं एक पल तुम्हारे बिना कैसे जिया है? मैंने दूसरी शादी भी नहीं की है।

मैं तुम्हारी हालत समझता हूं। सृष्टि अब तुम मुझे छोड़ कर मत जाओ और वह सृष्टि का हाथ थाम लेता है। सृष्टि कहती है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ रोहन मैंने तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया  है मैं मजबूर थी रोहन । फिर  रोहन बोलता है अब तुम कुछ मत कहो ,मैं सब समझता हूं ।अगर तुम चाहो तो हम फिर से एक हो सकते हैं ,अभी और इसी वक्त दोनों मंदिर में जाकर फिर से शादी कर लेते हैं। और दोनों बादा लेते हैं कि अब उन्हें दुनिया की कोई भी ताकत जुदा नहीं कर पाएगी। उसकी मां भी नहीं ,और सृष्टि अपनी मां से फोन करके कहती है माँ मेरा घर  मत तोड़ो मै भी तो आपकी संतान हूं। आपकी बेटी हूं, अपनी बेटी का घर बसने दो ।इस बार मां सृष्टि की खुशी के लिए मजबूर हो जाती है ।और उसे आशीर्वाद देती है, कि बेटा अपना घर बसा लो अब मैं तुम्हारी छुशियो केआड़े नहीं आऊंगी और वह दोनों को आशीर्वाद देती है

अगर आप भी ऐसी मां है तो प्लीज ऐसा मत करें अपनी बेटियों का घर बसाने दें।

लेखिका -कंचन प्रभापांडे शाहजहांपुर

#बिटिया का घर बसने दो

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