Moral Stories in Hindi : पंच आपस में विचार- विमर्श करने के उपरांत दिलीप को बीच का मार्ग समझा रहे थे। लेकिन दिलीप अपनी जिद पर अड़ा था कि वह अपनी पत्नी पूनम के साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध न रखते हुए उसे अपने घर में नहीं रखेगा।
पूनम पंचों, ग्रामीणों के साथ ही मायके व ससुराल वालों के मध्य सिर झुकाए हुए खड़ी थी। सब उसे ही दोषी ठहरा रहे थे। यहाँ तक की मायके वाले भी उसके पक्ष में कुछ न बोल बस इस प्रतीक्षा में बैठे थे कि जल्दी से कोई फैसला हो जाये और वो पंचायत से उठ अपने घर चले जाएं।
हां!!.. फैसला जो भी हो पूनम को वह भी अपने साथ ले जाने को राजी न थे क्योंकि पूनम के पीछे उसकी तीन बड़ी हो रही बहनों की ब्याह की चिंता परिवार वालों को जो थी।
पूनम मन ही मन सोच रही थी कि अगर उसके पति को उसकी कोई कदर ही नहीं थी और न ही उसे अपने साथ रखना था तो एड़ी- चोटी का जोर लगाकर उसने उसे ढूँढा ही क्यों? शायद इसलिये कि पूनम उसके बदमिजाजी से तंग आकर उसे छोड़कर रवि के साथ भाग गई थी। पूनम उसे त्यागकर जाए,
यह अपमान दिलीप सह नहीं सकता था। एक औरत उसे छोड़कर जाएगी? इसलिए उसे ढूँढकर सभी के बीच उसे अपमानित करते हुए उसका त्याग कर दे, तब जाकर उसके चोटिल अहं पर मरहम लगेगा।
पूनम के ब्याह को दो साल पूरे होने वाले थे। पिछले दो सालों में कभी भी वह खुश न रही। घर का इकलौता लड़का दिलीप अत्यंत बदतमीज और गुस्सैल किस्म का था। उसे परिवार में किसी की परवाह न थी। दिनभर दोस्तों के साथ मटरगश्ती करता, रात को शराब पीकर आता और ढेर हो जाता।
पति- पत्नी के सामान्य सम्बन्ध के लिए पूनम तरसती रह जाती। अगर वह प्यार से दिलीप के नजदीक जाने की कोशिश करती तो वह उसे भद्दी बातें कह जलील करता। पूनम यह सुनकर अपमान का घूंट पीकर रह जाती और सोचती कि आखिर कौन सी नाजायज इच्छा वह जता रही है। कई बार तो वह उसे बिस्तर पर अपने साथ सोने भी नहीं देता।
मजबूरन उसे चटाई बिछाकर जमीन पर सोना पड़ता। दिलीप का कई लड़कियों के साथ सम्बन्ध था। वह कहीं भी टिककर कोई नौकरी नहीं करता। हर जगह लड़- झगड़कर नौकरी छोड़ देता या निकाल दिया जाता। अगर पूनम उसे समझाने की कोशिश करती तो उससे गाली- गलौज करता।
इतना ही नहीं वह पूनम के साथ आए दिन मारपीट गाली-गलौज करता था। बात- बात पर उसे घर से निकाल देने की धमकी देते रहता था। वह पूनम से कहता कि वह परिवार का एकलौता लड़का है उसे किसी की नौकरी करने की क्या जरूरत है?
दिलीप के माता-पिता उसे कुछ कहना छोड़ दिये थे क्योंकि वह उन्हें भी अपमानित करने से नहीं चूकता। आये दिन घर में अशांति का माहौल बना रहता था। पूनम इस माहौल को स्वीकार नहीं कर पा रही थी। इस घर में कोई उसकी तकलीफ समझने वाला नहीं था।
दिलीप के एक दूर का रिश्तेदार था रवि जिसका उसके यहाँ अक्सर आना-जाना था। पूनम की सास को वह ‘मामी’ कहता था। वो बचपन से इस घर से जुड़ा था। पूनम की सास रवि से भी दिलीप को समझाने के लिए कहती थी। पर दिलीप कहाँ किसी का सुनने वाला था। उसे हमेशा उसके आवारा दोस्त ही शुभचिंतक लगते थे।
रवि पूनम के यहाँ आने-जाने के क्रम में उस घर के माहौल से पूरी तरह वाकिफ था। उसे पूनम से सहानुभूति थी। उसे उसका दुखी एवं मुरझाया हुआ चेहरा देख बड़ी तकलीफ होती। वह मन से चाहता था कि दिलीप सुधर जाए और वह पूनम को खुश देख सके। रवि की सहानुभूति से पूनम को भी रवि अपना-सा लगने लगा था।
उसे भी रवि के घर आने का इंतजार रहता। रवि और उसके बीच अधिक बातें तो नहीं होती, किंतु पूनम की कातर आँखें और मुरझाया चेहरा देख रवि सब जान जाता था।
पूनम इस घर में स्वयं को बिल्कुल अकेला पाती थी। एक दिन जब वह बड़े दुखी मन से अपनी सास को दिलीप के व्यवहार को लेकर शिकायत कर रही थी तो उल्टे उसकी सास उसे ही डाँटते हुए बोली- “चुप कर बांझ!… सोचा था कि तेरे आने से मेरा बेटा सुधर जाएगा। लेकिन तेरे में पति को खुश रखने का गुण ही नहीं है।”
“अम्मा जी! इसमें मेरा क्या कुसूर है? और इतने सालों में आप न सुधार सकीं तो मैं कैसे कर सकती हूँ भला?”
“एक बच्चा भी तो नहीं दे सकी ताकि दिलीप का मन घर में रमे।” सास झल्लाते हुए उसे ही दोष देते हुए बोली।
पूनम सास की बातों से तिलमिला उठी। बच्चा न होने की पूरी जिम्मेदारी उसी की कैसे हुई? उसके लिए पति के संग- साथ कि जरूरत होती है। उनके बेटे की करतूत जुबान पर आते- आते संकोच वश कहने से रोक लेती थी। ससुराल में तिरस्कृत-सी जिंदगी वह जी रही थी।
एक दिन पूनम की सास गाँव में किसी के घर श्री सत्यनारायण की कथा सुनने गयी थी। पूनम घर के काम निपटाकर जरा निश्चित हुई तो ललाट के गूमड़ के दर्द का अनुभव कुछ ज्यादा ही उभर उठा। उसने एक कटोरी में हल्दी लिया और ससुर के कमरे से चुना ले आयी। हल्दी -चुना गरम करके आँगन में ही बैठ कर लेप वह माथे पर लगा रही थी। तभी द्वार का किवाड़ खड़का। इस वक़्त कौन हो सकता है यह सोचते हुए उसने पूछा-“कौन है?”
“मैं हूं रवि!”
“आ जाईये कुंडी बंद नहीं है… बस किवाड़ सटा हुआ है।”
किवाड़ खुला और रवि का चेहरा दिखा। माथे के दर्द के बावजूद पूनम के चेहरे पर खुशी की एक लहर तैर गयी। रवि हाथ में लिए झोले को रख झट से पूनम के पास आकर बड़ी व्यग्रता से पूछा -“क्या हुआ भाभी? ये चोट कैसे लगी आपको?”
“अरे कुछ नहीं.. बस ऐसे ही। कहते हुए वह बात बदलने के ख्याल से बोली-“कहिए कैसे आना हुआ?”
“वो खेत से कुछ हरी सब्जियां और पके आम लाया हूँ आपलोग के लिए। पर ये तो बताइए आपके माथे पर ये चोट कैसे आयी?”
रवि के स्नेहिल शब्दों से पूनम के भीतर का दर्द पिघल उठा और उसकी आँखें छलक आयी -“कल रात फिर कुछ बात को लेकर आपके भैया ने क्रोध में बेकाबू होकर मुझे धक्का दिया जिससे पलंग से टकरा गई थी।”
“भाभी मुझसे आपका दुख देखा नहीं जाता। मैं कैसे आपका दुःख दूर कर सकता हूँ। मैं आपके लिए कुछ भी कर सकता हूँ।”
“रवि जी!…मेरी इतनी फिकर करते हैं…बताया क्यों नहीं।” – पूनम उसे अपलक देखे जा रही थी।
मंत्रमुग्ध-सी पूनम चलते हुए रवि के कंधे पर टिक गई और रवि उसका पीठ सहलाते हुए उसे आलम्बन दे रहा था। पूनम सुबक रही थी। कुछ देर बाद स्थिति का भान होते ही पूनम रवि से अलग होकर बोली -“माफ कीजिएगा रवि जी।”
“आपको माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं… बस हमें आपका साथ चाहिए। मैं आपको एक अच्छी जिंदगी देना चाहता हूँ। आपके जीवन में खुशियों का रंग भरना चाहता हूँ।”
शहद की मिठास से ये शब्द पूनम के हृदय में उतरते चले गए। धीरे- धीरे दोनों की चाहत बढ़ती गयी। एक दिन पूनम एक नई जिंदगी की तलाश में रवि के साथ पति और ससुराल छोड़कर निकल गयी। दिलीप को छोड़ पूनम और रवि शहर में एक नई जिंदगी जी रहे थे। एक खूबसूरत वक्त रवि के साथ पूनम शहर में गुजार रही थी। तभी उनदोनों को खोजते- खोजते दिलीप और उसके साथी शहर में आ धमके। पूनम और रवि के साथ मारपीट की और उनदोनों को जोर- जबर्दस्ती से अपने साथ गाँव ले आए।
……और आज इस भरी पंचायत में अपशब्दों के मौखिक तीर चलाकर पूनम के मान की धज्जियां उड़ाई जा रही थी।
तभी मुखिया और सरपंच ने दिलीप को समझाने के लिए अपना आखिरी पासा फेंका। उन्होंने दिलीप को इशारे से अपने पास बुलाया और उसके कान में फुसफुसा कर कुछ कहा। बात सुनने के बाद दिलीप के चेहरे पर चिंतन का भाव उभर आया। वह कुछ देर सोच की मुद्रा में रहा। सभी की नजरें उस पर टिक गई। तभी दिलीप ने गला साफ करते हुए गर्वित मुद्रा में कहा -“ठीक है !!…मैं पूनम को वापस अपने साथ रखने को तैयार हूँ। भले ही वह रवि के साथ कुछ महीने रहकर आयी है लेकिन है तो वह बिरादरी की ही जूठन। इसलिए उसे अपनाने में मुझे कोई हिचक या हर्ज नहीं है।”
पंचों के साथ ही पूनम के मायके वालों ने एक राहत की सांस ली। इधर पूनम को यह सुनकर लगा कि वह एक अंतहीन सुरंग में फंसती चली जा रही है।
– डॉ उर्मिला शर्मा, अन्नदा महाविद्यालय, हजारीबाग-825301
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