भटकता प्रेम – पूनम सारस्वत : Moral Stories in Hindi

राह चलते यूं ही उससे आंखें क्या मिलीं जैसे कयामत आ गई उसी क्षण।
वह भी तो सीधे इधर ही देख रहा था । दोनों की आंखें टकरा गईं और यह दास्तान इतनी लंबी हुई कि आज भी विश्वास नहीं होता कि यह नयनों की कारगुजारी थी वह भी राह चलते-चलते।
उससे आंखें मिलते ही न जाने क्या हुआ कि वह आंखें दिल में उतरती सी चलीं गईं।
पर यह क्या वह गाड़ी के पीछे आ रहा है..
नहीं वह तो उधर जा रहा था फिर मेरे पीछे कैसे??
अरे ये तो सच में ही वो है।
वह मेरे पीछे पीछे बैंक तक आया और दूर बाइक खड़ी कर रुका रहा जब तक कि मैं ब्रांच के अंदर नहीं चली गई।
उसका यूं आना मुझे खिझा नहीं रहा था बल्कि एक गुदगुदी से दिल में हुई कि वह यहां तक आया, मेरे लिए।
मन कहीं गाने लगा, पिया बाबरै….
पर अंदर जाकर एक बार जो कम्प्यूटर के सामने बैठी तो फिर काम की व्यस्तता में मैं सब कुछ भूल ही गई।
लेकिन अगले दिन वह फिर वहीं खड़ा था और बाइक से मेरे पीछे पीछे आया।
अब तो यह रोज का क्रम हो गया ।
नज़रें मिलती, आंखों आंखों में ही जैसे अभिवादन होता और फिर वह मुझे ब्रांच तक छोड़ कर लौट जाता।
वह कौन है , क्या करता है न मैं जानती थी न ही जान सकती थी । मैं यह नहीं कहूंगी मैं जानना नहीं चाहती थी ,पर बात यही थी कि इस अनजान शहर में अनजान व्यक्ति से मैं आगे बढ़कर बात भी तो नहीं कर सकती थी ।
यह सिलसिला लगभग वर्ष भर ही चला होगा कि मेरा अचानक ही ट्रांसफर मेरे अपने शहर में हो गया , यह अर्जी बहुत पहले लगाई थी पर ऐसे समय में सुनी गई जब मैं वहां से आना ही नहीं चाहती थी।
पर क्यों??
क्या उस अनजान शख्स के लिए जो अनाधिकृत रूप से मेरा पीछा कर रहा था।
हां, शायद यही सच था।
आप कहेंगे , पढ़े लिखे होकर भी ऐसी नासमझी?
पर दिल तो है दिल का ऐतबार क्या कीजे…
बस यही हाल था मेरा भी।
पर अचानक हुए ट्रांसफर ने सब-कुछ उलट पलट दिया और
आनन फानन में मुझे अपने शहर आकर बैंक में ज्वाइन करना पड़ा और परिस्थितियों वश वापस उधर जाना हुआ भी तो समय आगे पीछे ही रहा और क्या जाने वह फिर कभी वहां आया भी होगा कि नहीं,
मैं तो अपना दिल वहां उसी मोड़ पर ही छोड़ आई थी ।
यहां मेरा मन ही न लगता ‌जैसे
शरीर यहां था और आत्मा वहीं कहीं भटकती रह गई थी ,किसी अनजान की तलाश में जिसका मुझे नाम तक भी पता न था ।
जैसे मरुस्थल की रेत में सुई ढूंढ रही थी मैं, आज तक।
मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर उन आंखों में ऐसा क्या था कि बिना एक शब्द कहे ही मैं दिल हार आई थी उन पर?
फिर वह भी तो हर दिन आता था किसलिए? कुछ  तो रहा होगा उसके भी दिल में?
लेकिन अब आगे उम्मीद की कोई एक किरण भी न थी ।
ऐसे ही उसकी यादों में डूबते-उतराते लगभग दो वर्ष होने को आए पर वह आंखें आज भी मेरे चेहरे पर टिकी सी लगतीं।
कभी कभी मैं ऊपर वाले से गुस्सा भी होती कि उसे यूं मेरी जिंदगी में शामिल ही क्यों किया था?
मेरा सुख चैन सब छिन गया उस अनजान मुसाफिर के फेर में।

आज सुबह से ही काम का प्रेशर बहुत था क्योंकि  आज से ऑडिट शुरू होना था बैंक का, नए ऑफिसर को आना था आज। उनका अरेंजमेंट रहने का खाने और घुमाने का भी मुझे ही करना था ।
कहीं कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, आखिर बाहर से कोई आ रहा है तो पहला प्रभाव बहुत मायने रखता है। अन्यथा ब्रांच का नाम ख़राब होगा।
ग्यारह बजे के करीब नए ऑफिसर ने प्रवेश किया ।
ये क्या है?मैं पागल तो नहीं हो गई??
हर व्यक्ति में मुझे एक ही चेहरा नजर आने लगा है ।
यह ऑफिसर मुझे ऐसा लग रहा है कि यह वही है जो कभी बाइक से मेरे पीछे आता था जिसके लिए आज भी दिल बेताब है उसे देखते ही दिल‌ तेजी से धड़कने लगा है । क्या हो रहा है मुझे?

अरे ओ प्रतिमा संभल जा, नौकरी पर बन आएगी। ठीक से बिहेव कर यह ऑडिटर है , सड़क पर खड़ा कोई बाइकर नहीं, दिमाग ने समझाया ।
पर दिल ?वह मानने को तैयार नहीं था , बगावत पर उतर रहा था।
मैंने औपचारिक अभिवादन के बाद उन्हें उनका चैंबर दिखाया तो मुझे लगा वह मुझे ही देख रहे हैं,बड़े गौर से।
अचानक उन्होंने पूछा फर्स्ट पोस्टिंग कहां थी आपकी?
हरदोई, कहते हुए मैं अंदर तक झंकृत हो गई।
ओह !!
कहकर उन्होंने गहरी सांस ली और मन ही मन कुछ कहा , मुझे ऐसा लगा कि कह रहे हैं मिल ही गई।
कुछ देर चुप रहकर बोले मुझे आपसे कुछ बातें करनी हैं अगर बुरा न मानें तो??
जी कहिए।
देखिए आप जब वहां पोस्टेड थीं तो मैं हर दिन आपके पीछे बैंक तक आता था…, यह कहकर उन्होंने अपनी आंखें मुझ पर टिका दीं।
और मैं क्या कहती मेरा दिल दिमाग आंखें सब मेरी चुगली कर ही रहे थे ।
और इस तरह मेरा वो भटका हुआ प्रेम अचानक मेरे सामने था।
आज कई साल बाद हम एक ही बैंक में हैं और हमारा घर भी एक है अरे वो अजनबी पीछा करते करते जो यहां तक आ गया था, दुल्हन बनाने तक पीछे ही जो पड़ा रहा था।
पूनम सारस्वत

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