भरोसा – रचना गुलाटी : Moral Stories in Hindi

ज़िंदगी में बहुत से उतार-चढ़ाव आते हैं पर अगर ईश्वर पर भरोसा हो तो मुश्किल दौर से निकलने की शक्ति मिल जाती है।

प्रीति की इसी सोच ने उसे जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, नहीं तो शायद वह बस अंदर ही अंदर घुटती रहती

या अपनी जीवन लीला समाप्त कर देती। आज जब उसकी बेटी को एक प्रतिष्ठित कंपनी में मैनेजर की नौकरी मिली

तो  जहाँ उसकी आँखों में खुशी के आँसू और चेहरे पर गर्व की चमक थी वहीं अतीत की धुँधली यादें भी कहीं-न-कहीं मन में उथल- पुथल मचा रही थीं।

उसे याद आ गया कि जब शादी के बाद से ही दहेज के लिए उस पर ज़ुल्म होने शुरू हो गए तो समाज के डर से वह अपने पति व ससुर की मारपीट सहती रही

कि शादी के दो साल बाद उसे अपने अंदर नन्हें कदमों की आहट सुनाई देने लगी और उसकी खुशी का ठिकाना न रहा

कि शायद अब सब ठीक हो जाएगा पर यह उसका भ्रम निकला। सब कुछ ठीक होने की बजाए उस पर और अत्याचार होने शुरू हो गए

और जब उसने एक फूल सी बेटी को जन्म दिया तो घर के सभी लोगों के हावभाव बदल गए।

उसके पति ने तो अपनी बेटी की ओर प्यार भरी नज़रों से भी न देखा क्योंकि उन्हें तो बेटा चाहिए था।

समय तो अपनी गति से बीत रहा था और साथ- ही-साथ  ज़ुल्म की इन्तहाँ भी। जब प्रीति को उसकी छोटी-सी बेटी के सामने ही मारा-पीटा जाने लगा

तो उसकी बेटी के दिलो-दिमाग पर इसका इतना गहरा असर हुआ कि वह रातों को उठ-उठकर चीख कर रोती।

बेटी की यह हालत प्रीति से देखी न गई, सबको समझाने का भी किसी पर कोई असर न हुआ तो उसने अपनी बेटी के साथ घर छोड़ दिया

और बाद में अपने पति से तलाक ले लिया। तब बड़े ही घमंड से उसकी सास ने कहा कि वह अपने बेटे की दूसरी शादी करेगी

व पोते से ही उसका वंश चलेगा। अच्छा हुआ तू और तेरी बेटी हमारी ज़िंदगी से चले गए। शायद एक माँ के दिल से निकली हुई हाय थी

या ईश्वर का न्याय, शादी तो हुई पर उस घर में कितने सालों बच्चे की किलकारी न गूँजी।

बाद में क्या हुआ या नहीं प्रीति को कोई खबर नहीं। पर आज उसकी बेटी ने यह साबित ज़रूर कर दिया कि वह भी अपनी माँ का सहारा बन सकती है। 

 स्वरचित

रचना गुलाटी

लुधियाना

#भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती

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