भाईयों का विश्वासघात – गीतू महाजन : Moral Stories in Hindi

“तेरा बाप यहां नौकर था समझा”, मंझले चाचा के मुंह से निकली यह बात रजत के दिल में तीर की तरह चुभ गई थी।वह जानता तो था कि उसके तीनों चाचा बेईमानी की सारी हदें पार कर चुके हैं पर अपने पिता के लिए अपमान भरे शब्द सुन उसका खून खौल गया था। 

रजत के पिता जोगिंदर जी कुल चार भाई थे।सब भाईयों  का आपस में खूब प्यार था।बहुत चंद पहले बंटवारे के समय पाकिस्तान से आकर जम्मू में जोगिंदर जी के पिता भूषण जी ने बसने का फैसला किया था।भूषण जी के साथ उनके दो छोटे भाई थे। 

जम्मू में आकर भूषण जी और उनके भाईयों ने खूब मेहनत की..भूषण जी ने कपड़ों का व्यापार करने की सोची जो उनके पिता पाकिस्तान में भी किया करते थे।

जम्मू और उसके आसपास के इलाकों में वह कपड़ों की एक गठरी बनाते और पैदल ही बेचने निकल पड़ते। सुबह से रात तक रोज़ उनका यही नियम था।

भूषण जी के भाई भी उनके काम में उनका हाथ बंटाते।तीनों भाईयों ने मेहनत कर अपने रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम कर लिया था।उन्होंने धीरे-धीरे कुछ पैसे जमा किए और एक छोटी सी कपड़ों की दुकान डाल ली जो उनकी मेहनत और ईमानदारी की वजह से चल निकली। 

भूषण जी का विवाह हो गया और पत्नी कमला अच्छे स्वभाव की महिला निकली।अपने बड़े बेटे जोगिंदर के होने पर भूषण जी ने अपने पड़ोसियों को खूब मिठाईयां बांटी और साथ ही कपड़े की एक और दुकान भी खोल ली।धीरे-धीरे व्यापार बड़ा और साथ ही परिवार भी।

भूषण जी के दोनों भाईयों की शादियां हो गई थी और साथ ही उन्होंने अपना व्यापार भी अलग कर लिया। जम्मू शहर में तीनों भाईयों की अच्छी खासी साख बन चुकी थी।भूषण जी के अब चार बेटे हो गए थे। जोगिंदर जी सबसे बड़े थे और उन्होंने अपने पिता का हाथ बंटाने के लिए दसवीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी।हालांकि भूषण जी चाहते थे कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करे पर जोगिंदर को तो व्यापार ही करना था।

पिता पुत्र की मेहनत रंग लाई और धीरे-धीरे दुकान एक बड़े शोरूम में बदल गई और फिर जोगिंदर जी ने दिन रात मेहनत कर कपड़ों का एक्सपोर्ट भी करना शुरू कर दिया।छोटा सा घर अब एक बहुत बड़े बंगले में तब्दील हो गया था।उनकी मां कमला जी उनकी तारीफ करते नहीं थकती थी।दोनों चाचा

भी जोगिंदर की मेहनत का लोहा मानते थे।अपने से छोटे तीनों भाई  की पढ़ाई लिखाई भी जोगिंदर जी ने खूब कराई।इसी बीच जोगिंदर जी की भी शादी हो चुकी थी और उनके एक बेटा बेटी थे।जोगिंदर जी ने अपना कर्तव्य पूरा निभाया और साथ ही अपने भाईयों की शादियां बहुत धूमधाम से की। 

समय अपनी गति के अनुसार बीतता जा रहा था। भूषण जी और उनके दोनों भाई भी अब इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे।व्यापार का सारा लेखा जोखा जोगिंदर जी ही करते थे।उनके तीनों भाई भी अब इस व्यापार में उनके साथ आ गए थे पर जोगिंदर जी का ईमानदारी से व्यापार चलाना उन्हें अब कुछ कुछ चुभने लगा था।बाकी लोगों की तरह वह भी माल में हेरा फेरी करने की बात किया करते पर जोगिंदर जी हमेशा उन्हें सच्चाई का रास्ता पकड़ने को कहते।

जोगिंदर जी के भाई उन्हें मूर्ख समझते क्योंकि उन्हें लगता कि उनके चचेरे भाइयों ने ऐसे ही माल में हेरा फेरियां कर खूब पैसा बटोर लिया था और उनके मुकाबले में वे पीछे रह गए थे।हालांकि जोगिंदर जी की सच्चाई और ईमानदारी का सिक्का आज भी बाज़ार में पूरा चलता था जिस वजह से लोग हाथों-हाथ उनका माल खरीदने और उन्हें अपना माल बेचने में भी बिल्कुल भी हिचकिचाते नहीं थे।

वक्त बीता.. जोगिंदर जी के बच्चे बड़े हो गए थे।उनके बेटे रजत को व्यापार में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए उसने मुंबई में मिली नौकरी को हां कह दी और वहीं चला गया।बेटी विम्मी की शादी हो चुकी थी। बेटे की नौकरी बहुत अच्छी थी कुछ सालों में वह एक बड़ी कंपनी में अच्छे ओहदे पर था और उसने मुंबई जैसे महंगे शहर में भी अपना अच्छा खासा घर बना लिया था।

उसके बहुत कहने पर भी जोगिंदर जी अपना पुश्तैनी घर छोड़ उसके पास रहने को नहीं मानते थे।उनकी बीवी चाहती थी बच्चों के साथ रहना पर उनकी ज़िद के आगे उसे भी अपने पति के साथ ही रहना पड़ता। जोगिंदर जी के तीनों भाई भी अपने परिवार के साथ इस बड़े बंगले में ऊपर की मंजिलों में अलग-अलग रहते थे।

फिर एक दिन जोगिंदर जी ने बेटे रजत को फोन किया।फोन पर ही पिता की आवाज़ में कुछ परेशानी सी लग रही थी।रजत के बार-बार पूछने पर भी जोगिंदर जी कुछ नहीं बता रहे थे पर एक पुत्र का दिल पिता की परेशानी भांप कैसे मान सकता था..इसलिए दो दिन बाद रजत जम्मू के लिए निकल पड़ा।जब वहां पहुंचा तो घर का माहौल उसे थोड़ा सा अलग लगा। तीनों चाचा के बर्ताव में भी कुछ तल्खी सी थी।हां.. चाचियां और बच्चे वैसे ही प्रेम से मिले।

शाम को जब रजत अपने चाचा से मिलने ऊपर गया तो उन में से एक चाचा ने कहा,” रजत, तू अपने पिता को यहां से ले जा।हमने आपस में अब सारा हिसाब कर लिया है और तेरे पिता के हिस्से में यही पैसे आते हैं” और उन्होंने कागज़ पर लिखा हिसाब रजत को दिखा दिया।

इतने बड़े कारोबारी के हिस्से में कुछ लाख रुपए देखकर रजत का माथा ठनका पर फिर भी वह संयम के साथ अपने चाचा से बोला,” चाचा जी, ऐसी क्या बात हो गई पिताजी से..क्या कोई परेशानी है और इतने सालों में पिताजी ने ही इस पूरे घर को संभाल कर रखा हुआ है।मैं बचपन से ही उन्हें कड़ी

मेहनत करते हुए देखा है और आज आप यह कैसी बातें कर रहे हैं लगता है आपके हिसाब लगाने में कोई गलती हो गई है।हां..जैसा आप चाहते हैं मैं पिताजी को यहां से ले जाऊंगा.. मैं तो खुद इतने सालों से उन्हें वहीं पर बुला रहा हूं पर वह ही मानते नहीं और कोई भी बात है तो हम प्यार से बैठकर सुलझा सकते हैं”।

इतनी देर में ही मंझले चाचा आ गए और कड़वे शब्दों में बोले,”तेरा बाप जो इतनी कड़ी मेहनत करता था क्योंकि तेरा बाप यहां नौकर था” और उसी बात को लेकर रजत का खून खौल चुका था..इससे पहले वह कुछ कहता जोगिंदर जी वहां आ गए और उसे अपने साथ नीचे ले गए।जोगिंदर जी ने जो

रजत को बताया वह उसकी कल्पना से परे था।उसके तीनों चाचा ने आपसी सांझ गांठ कर दुकान ,बंगाल और बाकी सारी जायदाद भी धोखे से अपने नाम करवा ली थी।जोगिंदर जी अपने भाइयों पर विश्वास करते रहे और जहां वे कहते वहीं अपने हस्ताक्षर कर देते..बिना कुछ जांच पड़ताल के और

यही उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी।उनके लिए तो उनके भाई और उनके परिवार ही उनकी दौलत थे तो फिर दौलत के प्रति उनके भाईयों के मन में ऐसा लालच कैसे आ गया वह समझ नहीं पा रहे थे। 

उनकी पत्नी नीलम जी ने भी उन्हें समझाया और वह रजत के साथ आने को तैयार हो गए यह सोचकर  कि कम से कम बेटे के साथ सुकून की ज़िंदगी तो जीएंगे पर मुंबई आने के बाद भी जोगिंदर जी को सुकून कहां था।मन ही मन उन्हें यह चीज़ खाए जा रही थी कि उनके भाईयों ने उनके साथ

जायदाद को लेकर विश्वास घात किया था जबकि उनका बेटा अच्छी खासी नौकरी में था और उसे उस व्यापार से कोई लेना देना नहीं था तो सारा व्यापार उनके भाईयों के पास ही जाता फिर बेईमानी की क्या ज़रूरत थी।यही सब सोचते हुए उनके दिन रात बीत रहे थे और उनकी सेहत दिनभर दिन गिरती जा रही थी।

सुबह उठते..रात को सोते..हर पल वह  मुंह में कुछ ना कुछ बुदबुदाते रहते।नीलम जी बहुत पूछती.. रजत और उनकी बेटी  विम्मी भी उन्हें बहुत समझाते..बहू और प्यारे से पोता पोती भी उनके आगे पीछे घूमते रहते ताकि वह पुरानी बातों को भुला सके।सबको लगता कि समय बीतने के साथ वह शायद इस सदमें से बाहर आ सकेंगे परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ।भाईयों का विश्वास घात उनके दिल में इतना गहरा घाव कर गया था जो कभी भर ही नहीं पाया और जोगिंदर जी इस गम को अपने सीने में दबाए इस दुनिया को अलविदा कह गए। 

कुछ साल और बीते..रजत ने अब जम्मू आना जाना बिलकुल छोड़ दिया था.. किसके पास जाता।दोनों भाई बहन अपने घर में यही बात करते कि उनके पिता ने जिन भाईयों के लिए अपनी पढ़ाई  तक छोड़ दी आज वही उनके सबसे बड़े दुश्मन बन गए थे पर कहते हैं ना कि किसी का हक खाकर तुम कभी खुश नहीं रह सकते और वही रजत के तीनों चाचा के साथ भी हुआ। 

शुरुआत में तो उन्होंने उस पैसे से खूब मज़े किए। अपने व्यापार में भी हेरा फेरी कर खूब पैसे कमाए पर धीरे-धीरे व्यापार की उनके साख गिरती गई।लोग अब कहना शुरू हो गए थे कि जो व्यापार जोगिंदर जी के समय में था अब वह बात नहीं रही।धीरे-धीरे ग्राहक टूटे..व्यापारियों के साथ लेनदेन लगभग खत्म हो गया था।घर में भी बच्चों के साथ कलह  का माहौल था।जिन भाईयों ने कभी आपस में

मिलकर बड़े भाई को ठगा था आज उनकी आपस में ही बोलचाल बंद हो गई थी।अब उसी जायदाद को लेकर वह आपस में लड़ते फिर रहे थे..कोर्ट कचहरी के धक्के खाते और अपनी रातों की नींद और दिन का सुकून गवां चुके थे। उनके मन में भाई को ठगने का मलाल था या नहीं.. यह तो कोई नहीं जान पाया पर कुदरत ने उन्हें उनकी करने का फल ज़रुर दे दिया था।

दोस्तों,यह सच है कि किसी का हक मार कर कुछ दिन तो ऐश का जीवन  जिया जा सकता है पर कहीं ना कहीं आत्मग्लानि का बोझ जीते जी धोखेबाज़ इंसान को मार देता है और  फिर एक न एक दिन तो उसे उसकी करनी का फल ज़रूर भुगतना पड़ता है।

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गीतू महाजन, 

नई दिल्ली।

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