अब संगीत की कक्षा में दोनों एक साथ बैठने से कतराते, एक दूसरे से नज़रें मिलते ही आँखों ही आँखों में मुस्कुराते और गंगा किनारे की रेती पर बैठ, भविष्य के सपने बुनते. उन सपनों के धागे कभी चाँदी से रुपहले होते तो कभी सोने से सुनहरे. वे अपने सपनों की चादर में अपने अरमानों के सितारे और प्रेम के चमकते जुगनू टाँकते.
सोमेश्वर वेद की पारखी आँखों से यह सब अधिक दिनों तक छुपा न रहा. उस दिन जब संगीत की कक्षा समाप्त हो गई और मल्हार उठते हुए बोला,
“चल भैरवी, तुझे तेरे घर तक छोड़ आऊँ”
उन्होंने तुरन्त कहा,
“भैरवी, अब तू बड़ी हो रही है और समझदार भी, आज से तू अकेली घर जाया कर या अपनी माँ से कह कर अपनी सवारी बुलवा लिया कर…अब मल्हार तुझे छोड़ने नहीं जाया करेगा बेटा”
भैरवी के जाने के बाद उन्होंने मल्हार को समझाते हुए कहा,
“देख मल्हार, मैं सब देख रहा हूँ और समझ भी रहा हूँ…यह किशोरावस्था का आकर्षण है और कुछ नहीं, झोंपड़ी में रह कर कोठी के सपने मत देख बेटा…कहीं ठाकुर साहब को पता चल गया तो हम तो कहीं के नहीं रहेंगे…ठाकुर साहब हमें गाँव छोड़ने पर विवश कर देंगे”
फिर वही हुआ जिसकी सोमेश्वर जी को आशंका थी. किसी ने भैरवी और मल्हार को साथ देख कर बलदेव सिंह को ख़बर कर दी थी. उस दिन भैरवी पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा था. बलदेव सिंह अपनी पत्नी, राजरानी से दहाड़ते हुए बोले थे,
“देख लिया तुमने संगीत सिखाने का नतीजा…तुम ही भैरवी को संगीत सिखाना चाहती थीं न? देखा कैसे उस नचैये गवैये के संग मुँह काला कर के आ गई तुम्हारी लड़की…मेरी तो सारी इज़्ज़त मिट्टी में मिल गई….अब मैं इसे पढ़ने के लिए शहर भेज रहा हूँ और सभी कान खोल कर सुन लो, कोई भी मेरे इस निर्णय पर उँगली नहीं उठाएगा”
सोनी, राजू और दीपू सहम कर दादी के पीछे छुप गये. भैरवी रोती रही, चीख़ती रही, चिल्लाती रही, परन्तु सभी ने जैसे अपने कानों में रुई भर ली हो, किसी ने उसकी एक बात भी नहीं सुनी.
शहर में भैरवी को छात्रावास में डाल दिया गया. संगीत छूटने से जैसे भैरवी की आत्मा ही मर गई. उसने स्वयं को पढ़ाई में झोंक दिया. वह दिन रात मशीन की तरह पढ़ाई में जुटी रहती जहाँ केवल किताबें ही उसकी सखियाँ थीं. पढ़-लिख कर बड़ी अफ़सर बनना ही उसके जीवन का उद्देश्य रह गया.
इस बीच एक बार गाँव आने पर दादी ने पूछा था,
“ब्याह कब करिहौ बिटिया ? उमर त हो गई तुम्हार”
“मुझे आई ए एस बनना है दादी, उसके बाद ही ब्याह के लिए सोचूँगी”
सोनी, राजू और दीपू भी अपनी अपनी स्कूली पढ़ाई के पश्चात अलग अलग शहरों में आगे की पढ़ाई कर रहे थे.
साल पर साल बीतते जा रहे थे. भैरवी का मल्हार से सम्पर्क पूरी तरह से टूट गया था. उसने मल्हार की यादों को भी अपने सीने में हमेशा के लिए दफ़्न कर दिया. मल्हार के प्रति उसका प्रेम सच्चा था, पवित्र था, इसीलिए उसने मल्हार से पुन: कभी भी न मिलने का निर्णय लिया. भैरवी जानती थी कि यदि उसके पिता को पता चल गया कि वह और मल्हार एक दूसरे के सम्पर्क में हैं तो वे मल्हार को जीवित नहीं छोड़ेंगे.
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