“चाचा जी” मुझे नहीं जाना ससुराल! प्लीज मां-बाबूजी को समझाइए कि मुझे वहां नहीं भेजें!
पर हुआ क्या बेटा!जो तू अपने ससुराल नहीं जाना चाहती? बाता तो सही!
सब कुछ बुरा हो रहा है•• कुछ भी सही नहीं है! कहते हुए नीलू रो पड़ी।
भतीजी को रोता देख, उसे गले लगा लिया और उसके आंसू पोछते आलोक जी की भी आंखें भर आई।
चाचा जी मुझे तो कहते हुए भी शर्म आ रही है कि मेरी खुद की बहन मुझे धोखा दे रही है और मेरे बसे-बसाये घर को तहस-नहस करना चाहती है••!
फिर थोड़ा रुक कर
चाचा जी! बिंदु मेरे पति के साथ अपना चक्कर चला रही है! और वो भी उसे पसंद करते हैं! 10 दिन बाद होली का त्यौहार है!
8 महीने से जब से रूपा(नीलू की छोटी बेटी) हुई है मैं मां के पास ही हूं•• और वो मेरी नाराजगी भी जानते हैं कि•• क्यों मैं अब तक माइका में हूं! उन्हें कभी भी अपने किए पर पछतावा नहीं हुआ और ना ही कभी इस बात के लिए मुझसे माफी मांगी! अब•••अचानक कल मुझे अपने घर ले जाने के लिए आए और बोले चलो होली घर-परिवार में ही मनाना अच्छा लगता है!
यह तो अच्छी बात है कि•• वह पिछली बातों को भूलकर तुझे अपनाने आए हैं!
चाचा जी! इसमें मुझे किसी साजिश की बू आ रही है!
बेटा!शायद तुझे कुछ गलतफहमी हुई होगी।अगर ऐसी कोई बात होती तो वह तुझे क्यों अपने साथ ले जाने आते••? आलोक जी नीलू को समझाने लगे।
पर•• चाचा जी! बिंदु से उन्होंने शादी का प्रस्ताव भी रखा था पर उसने यह कह के टाल दिया कि•• दीदी के रहते मैं आपसे शादी नहीं कर सकती!
मुझे वहां जाने से डर इसलिए तो लग रहा है कि कहीं•••!
एक अनजान आशंका से ग्रसित होकर नीलू पुन: चाचा जी से लिपटकर रोने लगी।
ना बेटा ना इतनी हिम्मत नहीं उनमें कि तुझे ले जाकर तेरे साथ कुछ करें! आखिर परिवार,समाज का डर है कि नहीं ?और तुझे कुछ इस तरह का संदेह हो तो सब कुछ छोड़-छाड़ के चली आना। हम तेरे साथ हैं! आलोक जी बोले।
चाचा जी! मैंने बचपन से लेकर अब तक आपकी बात सुनी है और समझी भी है! मां बाबूजी की भी यही जिद है कि मैं अपने बच्चों के साथ ससुराल चली जाऊं! उन्हें लगता है कि अगर मैं उनके साथ रहूंगी तो हमारे रिश्ते अच्छे बने रहेंगे! सोचा एक बार आपसे भी राय विचार ले लूं•• सो जो मन में भरा था आपको बता दिया••ताकि एक उचित सुझाव मिल सके! ठीक है मैं उनके साथ चली जाती हूं!
कहते हुए नीलू जाने लगी।
“बेटा ठहर जा! देवी जी की चरणों का फूल अपने साथ लेती जा। मेरी बच्ची माता रानी सदा तेरी रक्षा करेंगी!
कहते हुए आलोक जी देवी के चरणों में पड़ी फुल नीलू को पकड़ा दी। नीलू ने आदर सहित फुल अपने मस्तक से लगाते हुए पर्स में रख आलोक जी के पैर छुए और वहां से चली गई। आलोक जी नीलू को जाता हुआ तब तक देखते रहे जब तक कि वह उनकी नजरों से ओझल ना हो गई।
मन में एक बेचैनी भी थी की•• मैंने कुछ गलत तो नहीं किया उसे ससुराल भेज कर••! हे मां उसकी रक्षा करना! मेरे विश्वास की रक्षा करना!
मां! आप लोगों के बोलने से मैं जा तो रही हूं परंतु अपने गहने आपके पास यही छोड़ जाती हूं!
पर बेटा! गहने अपने पास ही रख!
नहीं !इसे आप यही रखो बाद में मैं कभी ले जाऊंगी!
नीलू अपनी मां सुनंदा जी से बोली।
पता नहीं कैसे जब इस बात की जानकारी मदन (नीलू का पति)को मिली तो
नीलू!गहने साथ ले चलो यहां रखने का क्या फायदा?
पर नीलू बिना कुछ बोले गहने छोड़ ससुराल चली आई ।
10 दिन बाद खबर आई की नीलू अब इस दुनिया में नहीं रही। खबर सुनते ही आलोक जी अपने बड़े भाई नंदू जी के पास दौड़े चले आए।
कैसे हुआ ये सब भैया?
पता नहीं छोटे! होली के दिन खाना खाकर नीलू सोई तो सोई रह गई रोते हुए नंदू जी बोले।
नहीं यह सब झूठ है!
चलिए! अभी उसके यहां! आलोक जी रोते हुए बोले।
कोई फायदा नहीं छोटे वहां जाने का! उन लोगों ने उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया! मुझे तो दोनों बच्चियों की चिंता सता रही है !बेचारी कितनी अभागी हैं जो अपनी मां को इतने कम उम्र में ही खो दिया!
वह सब तो ठीक है भैया! पर उन लोगों को अंतिम संस्कार के पहले हमें खबर तो करनी चाहिए थी? नहीं दाल में कुछ काला है तभी नीलू वहां जाना नहीं चाहती थी पर हम सब ने उसको जबरन वहां भेज दिया हम सब गुनेहगार हैं भैया!
इसलिए कहता हूं चलिए देख कर आते हैं क्या बात थी? आस- पड़ोस कहीं से भी कुछ न कुछ पता चल ही जाएगा! आलोक जी भाई को समझाते हुए बोले।
“मैंने” भी मदन जी से इस बारे में बात की थी कि क्यों आपने इतनी जल्दी ‘अंतिम संस्कार’ किया!हमारे आने का इंतजार तो किया होता••!
बोले आप लोगों के आने में देर हो जाती इसलिए हमें जल्दबाजी में सब कुछ करना पड़ा!
कहते हुए नंदू जी रो पड़े।
भैया इन सब के पीछे मदन जी का हाथ तो नहीं? आलोक जी गुस्से में बोले।
नहीं ऐसी बात नहीं! लड़ाई-झंझट तो हर पति-पत्नी के बीच होती है•••पर इसका मतलब ये तो नहीं कि जीजा जी ने दीदी को मार दिया?
मदन के बचाव में दोनों भाई में हुए वार्तालाप को सुनते हुए नीलू तपाक से बोल पड़ी।
अच्छा उसे गए तो 10 दिन ही हुए! ना कोई बीमारी ना कुछ!फिर ऐसा कैसे? आलोक जी बोले।
चाचा जी!आप हमारे मामलों में ना ही फंसे तो अच्छा है!
मां- पिताजी की हालत ऐसे ही सही नहीं और आप उनके ‘जले पर नमक छिड़कने’ चले आए संतावना नहीं दे सकते तो•• तकलीफ भी मत दीजिए!
आलोक जी चुप हो गए ।
साल भर बाद मदन अपनी बच्चियों को लेने आया।
खाने के टेबल पर जब परिवार के सभी सदस्य इकट्ठे थे
“मां- बाबूजी”अगर आप बुरा ना माने तो मैं अपने लिए बिंदु का हाथ आपसे मांगना चाहता हूं! घर में मां बीमार रहती हैं और वह चाहती हैं कि•• मैं दूसरी शादी कर लूं ••लेकिन•• कभी-कभी मैं बच्चियों के बारे में सोचता हूं तो ऐसा लगता है जैसे दूसरी मां इन्हें वो प्यार नहीं दे पाएगी जो इनकी मौसी देंगी!
नंदू जी मदन के इस कथन को सुनकर सोच में पड़ गए फिर बहुत सोच-समझ उन्होंने शादी के लिए हां कर दी ।
महीने बाद दोनों की शादी हो गई।
सुहागरात के दिन जब बिंदु मदन के बाहों में आई तो
आहा! इस दिन का मुझे कई सालों से इंतजार था जो आज पूरा हो गया! पर जीजा जी सॉरी-सॉरी मेरा मतलब है की पतिदेव जी! दीदी को कैसे ‘साइड’ किया? ये तो बताओ ?
बहुत ही सिंपल था होली के दिन जब नीलू मालपुआ छान रही थी उसी समय मैंने नीलू को किसी काम में लगाकर चुपके से पुऐ के घोल में जहर मिला दिया और घर में मां भी नहीं थीं •• वह होली मनाने अपने मायके गई थीं! बच्चों को मैंने पहले ही सुला दिया ताकि वें प्वाइजन वाले पुओ को खा ना पाएं!
नीलू खाना लाई तो थी मेरे लिए। परंतु•• पेट दर्द का नाटक कर और हमदर्दी जताते हुए, वो खाना मैंने उसे ही खिलाकर उसकी जीवन लीला वही समाप्त करके तुम्हें पा लिया! अपने प्यार को पा लिया! कहते हुए उसने बिंदु को गले लगा लिया।
बच्चियों को भी लगे हाथ मार देते?इन काली-कलूटियो को मेरे लिए छोड़ रखा है ? थोड़ा नाराज होते हुए बिंदु बोली।
अरे रे रे! ऐसा अगर करता तो तुम्हारे घर में सबको पता तो चलता ही साथ में मेरी मां भी समझ जाती कि इन सब के पीछे मेरा हाथ है!और फिर मैं जेल की चक्की पिस्ता।
अभी तो मैंने मां से कुछ-कुछ बोलकर मामला फिट कर दिया है। और मत भूलो कि इन्हीं बच्चियों के कारण मैं तुम्हारे पिता से तुम्हारा हाथ मांगने में सफल रहा!
रही बात बच्चियों की तो एक तुम नानी के यहां छोड़ आना! एक हम अपने पास रख लेंगे वैसे भी जब हमारा अपना बच्चा होगा तो उसे संभालने के लिए एक नौकरानी चाहिए ना!
अरे हां ये तो मैंने सोचा ही नहीं! वाह! क्या दिमाग पाया है!
मैंने भी तुमसे शादी करने के लिए चाचा जी से पंगा ले लिया ऐसी सुनाई उन्हें कि•• अब हमारा उनसे रिश्ता ही टूट गया! चले थे तहकीकात करने!
दोनों हंस पड़े!
कुछ महीनों बाद बड़ी बेटी आयुषी को नानी के यहां छोड़ दिया और छोटी रूपा को अपने पास रख लिया। साल भर बाद बिंदु ने एक बेटे को जन्म दिया। इसके पालन-पोषण की जिम्मेदारी रूपा को ही मिली। उसके 2 साल बाद एक और बेटी का जन्म हुआ।
समय की रफ्तार तेजी से बढ़ते चली गई । बच्चियां भी धीरे-धीरे बड़ी होने लगीं ।
उम्र के साथ-साथ आयुषी में अपनी मौसी के लिए नफरत दिन- प्रतिदिन बढ़ने लगी ।कई बार उसने रूपा के लिए भी कोशिश की कि दोनों बहने इकट्ठे रहें ।पर बिंदु की चाल के आगे किसी का बस नहीं चला।
एक दिन:-
बिंदु आयुषी अब बड़ी हो गई है! सोचता हूं कि अपने जीते जी इसके भी हाथ पीले कर दूं !
नंदू जी बिंदु से बोले ।
आपको जो उचित लगे कीजिए! मुझे कोई मतलब नहीं! बिंदु नंदू जी की बात पर ध्यान न देते हुए
बोली।
अरे कैसे मतलब नहीं••• जैसे तेरी बेटी समीरा है वैसे ही ये दोनों हैं!
बाबूजी मुझे अपने घर से एक फुटीकौरी भी नहीं लगानी इन पर! आपकी जैसी मर्जी हो वैसी शादी करो!
ऐसी बात सुनते ही नंदू जी का खून खौल गया और उन्होंने एक #कठोर कदम उठाते हुए बोला
चल मतलब नहीं दिखा परंतु शादी के लिए पैसे तो तुझे ही देने पड़ेंगे!
मैंने कहा ना ‘बाबूजी’धकेल दो किसी गरीब घर में! मेरे पास पैसे नहीं!
पिता की बात सुनते ही बिंदु तेज आवाज में बोली।
अब तुम्हारी मनमानी नहीं चलेगी! अगर तू इनके शादी में पैसे खर्च नहीं करेगी तो हम कानून का दरवाजा खटखटाएंगे! नंदू जी गुस्से से बोले। यह मेरा फैसला है मैंने आयुषी के लिए एक लड़का पसंद किया है जो बैंक में कार्यरत है! शादी में कुल 6 लाख लगेंगे! इसलिए वह तुझे ही देना पड़ेगा! क्योंकि आयुषी भी मदन की बेटी है जितना हक तेरे बच्चों का है उतना इन दोनों का भी है!
पिता के कठोर कदम से घबराकर बिंदु को शादी के लिए पैसे देने पड़े।
नाना नंदू जी ने आयुषी की शादी बड़े धूमधाम से की। और नीलू द्वारा रखा गया जेवर जो कि अब तक उनके पास ही था उन्होंने उसकी दोनों बेटियों में बराबर-बराबर बांट दिया।
इधर रूपा की शादी भी उसकी दादी ने अमीर घराने में तय कर दी और जल्द ही उसके भी हाथ पीले हो गए। बच्चियां अपने- अपने भाग्य से अच्छे-अच्छे घर में सेटल हो गईं ।
इन दोनों की गलती भले ही पकड़ी ना गई हो परंतु ऊपर वाले की अदालत में दोनों गुनाहगार साबित हुए और अब भगवान ने दोनों को इस तरह दंड दिया कि वह खून के आंसू रोने पर मजबूर हो गए। मदन के पूरे शरीर को ‘पैरालिसिस’ मार दिया और इधर बिंदु का पैर ऐसा टूटा कि वह जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो गई। बेटा चोर-आवारा निकल गया। और बेटी अपने मां-बाप की सुनती ही नहीं। भगवान के ‘घर देर है अंधेर’ नहीं।
दोस्तों अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक्स कमेंट्स और शेयर जरूर कीजिएगा।
धन्यवाद।
मनीषा सिंह।