गर्मी का मौसम है। तेज धूप है। हवाएं भी तेज चल रही हैं। लू का महीना, एकदम जान जा रही थी। बाहर बहुत मुश्किल से लोग निकल रहे थे। अचानक बस रुकी। बस से एक औरत झोला लिए उतरी। साड़ी में बेहद खूबसूरत। सबकी निगाह उस महिला पर गई। कुछ लोग पहचान गए। ये तो मोहन की बहन है। काफी खिल गई है शादी के बाद से।
छोटे बच्चो का एक झुंड़़…बुआ आ गई, बुआ आ गई… चिल्लाते हुए सब ने बुआ जी को घेर लिया। किसी ने बुआ से नमस्ते किया। किसी ने झोला थाम लिया, कोई झोला चेक कर रहा है कि इस बार बुआ क्या लाई हैं। कोई चिल्लाया की बुआ ने जलेबी लाई हैं। मजा आ गया। बच्चे उछलने कूदने लगे। बुआ सब से हंस-हंस कर सबके गालों को दो अंगुलियों से हल्की चुटकी काट कर बच्चों की भीड़ देखकर खुश हो गई थी। बुआ ने सभी बच्चों से घर पर चलने को कहा।
कोई बुआ की अंगुली पकड़े रहा। कोई बुआ की साडी को पकड़े है, कोई झोला लिए, जहां बस रुकी थी थोड़ी दूर पर मायका था। बुआ के आने पर बच्चो में जो उत्साह हंसी होता है वैसा खुशी बहुत ही कम मिल पाता है। आज बच्चे सब से ज्यादा खुश हैं कि बुआ घर में आ गई हैं। बुआ का नाम संजो है।
घर पर आते ही कुर्सी दी गई। बुआ बहुत ही प्यार से कुर्सी पर बैठ गई। पानी मीठा की व्यवस्था हो गई। बुआ ने पानी पिया तब तक चाय भी आ गई। साथ में नमकीन भी आ गया। बुआ सारे बच्चों को नमकीन दी। सब बच्चें नमकीन खाने में मस्त हो गए। इसी बीच बुआ की बड़की भाभी आ गई। साड़ी को सम्हालते हुए। संजो ने बड़की भाभी का पैर छुआ और आशीर्वाद लिया।
“भाभी कैसी हो” — संजो ने मुश्कराते हुए पूछा
“ठीक हूं। आने में दिक्कत तो नहीं हुई।”– भाभी ने पूछा।
संजो भाभी एक दूसरे को देखकर मुस्करा रही हैं। संजो ने जलेबी की थैली भाभी को पकड़ा दी। भाभी ने सब बच्चों को जलेबी बांट दी। बच्चे जलेबी खाने में मस्त हो गए।
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वैसे संजो बुआ बड़ी पॉपुलर हैं जब ससुराल से मायके आती हैं तो हल्ला सा मच जाता है कि संजो बुआ आई हैं। झोला में खूब जलेबी भर कर लाती हैं। बस से आती हैं। सब बच्चे चिल्लाते कि संजो बुआ आ गई हैं। पूरे मोहल्ले में खुशी का माहौल हो जाता है कि संजो बुआ आ गई हैं।
संजो बुआ की लोकप्रियता का कारण है इनका हंसमुख स्वभाव। बड़ी चंचल हैं। घुंघराले बाल लहराते रहते हैं। चमकदार साड़ी में लिपटी रहती हैं। मासूम सा चेहरा। सादगी लपेटे रहती हैं। ऐसा व्यक्तित्व संजो बुआ का था।
जितने छोटे बच्चे हैं। बुआ के ऊपर लोटपोट हो जाते हैं।उनके गालों को छू लेते हैं। कभी गोंद में हो लेते हैं। बुआ कईयों को गोंद में लेकर बाल मनुहार करने लगती हैं। चिल्लर ज़रूर रखती हैं ताकि सबको पैसे मिल जाएं। एक दर्जन बच्चों की संख्या थी।
बुआ सावन की हरियाली की तरह होती हैं जब तक घर पर रहती हैं। नए-नए आइटम खाने को बनता है। नए-नये पकवान बनाए जाते हैं। खाने में मजा आ जाता है। सब चाहते हैं कि बुआ यहीं रहे। घर में खुशी बनी रहे। एक माह तक रहती हैं।
बुआ का जब ससुराल जाने का समय होता है तो सब लोग एक हपते और रुकने के लिए निवेदन करते हैं कि बुआ कुछ दिन और रह लीजिए। संभव नहीं होता है रुकना। बुआ को अपने घर की भी जिम्मेदारी है उसको भी देखना ताकना रहता है।
बुआ गीत संगीत में भी काफी माहिर हैं। कविता भी लिखती हैं। उनके गाने का गजब की स्टाइल है। नृत्य की भी शौकीन हैं जब तक रहती हैं गाना बजाना गीत संगीत होता ही रहता हैं। जोक्स कॉमेडी की किंग हैं। अपने आप में एक सर्वगुण सम्पन्न हैं संजो बुआ।
बिना लाग लपेट की जिंदगी जीती हैं। ईमानदार सरल स्वभाव की हैं। किसी से झगड़ा कभी नहीं करती हैं। खुले विचारों की महिला हैं। फैशन की दुनिया में सजना संवरना काफी अच्छा लगता है। पिज्जा, गोलगप्पा, चाउमीन देशी- विदेशी सभी खानें की चीजों का स्वाद लेती ही रहती हैं। ऐसी हैं संजो बुआ।
संजो बुआ के माता पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। संजो बुआ के दो भाई हैं। दोनो भाई बाहर रहते हैं। दोनों की शादी हो गई है। संजो बुआ सबसे छोटी हैं। संजो बुआ सब लोग कहते हैं। दो भाईयों के बीच में बच्चो की संख्या ज्यादा है। सब बच्चे हिल मिल कर रहते हैं। संजो अपनी बड़की भाभी के घर पर रहती हैं।
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बड़की भाभी मिलनसार हैं। छोटकी भाभी के मिजाज गरम हैं। जब भी बुआ आती हैं तो छोटकी भाभी संजो से ठीक से बात नहीं करती हैं। खाना दाना तक नहीं पूछती हैं। कायदे मुंह बात नही करती हैं। दोनो भाई अलग रहते हैं जब से माताजी की डेथ हो गई। पिताजी का देहांत बहुत पहले हो गया था। भाइयों ने मिलकर संजो की शादी किए थे। संजो अच्छा पति पाकर काफी खुश नजर आती हैं।
छोटकी भाभी को जैसे पता चला कि संजो आई हैं। वह घर के अंदर चली गईं। जब से संजो की माता का देहांत हुआ है । संजो की छोटकी भाभी संजो से किसी भी प्रकार का लगाव खत्म कर दिया जबकि संजो बहुत ही सरल स्वभाव की हैं। मिलनसार हैं। संजो कई बार आई लेकिन छोटकी भाभी ने कभी बात नहीं की। गुस्से में रहती हैं। ईर्ष्या जलन कूट – कूट कर संजो के प्रति भरा है। संजो मिलने जाती तो कटी जली सुना देती थी छोटकी भाभी। संजो सुन लेती लेकिन संजो कुछ नही बोलती।
कई बार जलेबी या कुछ भी खाने को लाती। अपनी छोटकी भाभी को जरुर देने जाती लेकिन तिलमिला जाती थी छोटकी भाभी। संजो कई बार मनाने का प्रयास किया लेकिन भाभी भी टस से मस नहीं हुईं।
दोपहर हो गया थी। छोटकी भाभी कमरे से बाहर नहीं निकली। गुस्से में नहाई नहीं थी। छोटकी भाभी खुन्नस में रहती हैं जब तक संजो रहती है।
संजो को छोटकी भाभी नही दिखी तो सारे बच्चों को लेकर जलेबी सहित मिलने पहुंच गई।
”भाभी..भाभी.. कहां हो”.. संजो ने पहुंचते ही बुलाना शुरू किया।
भाभी बेड पर पड़ी रही और मुंह फुलाए रही। बुआ ने कई बार पुकारा लेकिन भाभी की नस नरम नहीं हुई। पुन: भाभी से कहा..
”भाभी…जलेबी खा लीजिए।”
”मुझे जलेबी नहीं खाना है।” ..छोटकी भाभी आवेश में आकर बोली।
“ले लीजिए..गरम और नरम दोनो है।” .. संजो ने कहा।
संजो ने छोटकी भाभी की बेटी को दिया और कहा जाकर अपनी मम्मी को दे दो। उनकी बेटी जैसे जलेबी लेकर देने गई। छोटकी भाभी ने जलेबी को लेकर फेंक दिया।
”मैने कहा ना….नहीं खाऊंगी।” बेहद गुस्से में छोटकी भाभी ने कहा।
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माहौल शांत हो गया। सब बच्चे बुआ का मुंह ताकने लगे लेकिन बुआ बहुत ही सहज रहीं। आवेश में नहीं आई। भाभी के इस तरह से व्यवहार को देखकर सोचने लगी कि आखिर भाभी का व्यवहार मेरे प्रति कब बदलेगा।
छोटकी भाभी मिजाजी हैं। अपनी ननद से बात नहीं करना चाहती हैं। पढ़ी लिखी है। गोरी है। अपनी सुन्दरता पर सम्मोहित रहती हैं लेकिन चिढ़ रहती है कि यह ननद यहां न आया करे।
एक चीज संजो को पता है कि अगर कोई गहना गुरिया देता है तो बहुत खुश हो जाती हैं। संजो सोंचती है कि छोटकी भाभी का इस तरह नाराज रहना उचित नहीं है। घर परिवार में रिस्तेदारी में किसी प्रकार का मन मुटाव ठीक नही है। मनमुटाव से खिन्नता आती है। मन उदास रहता है।
अक्सर भाभी ननद में जमता नही है जहां भी भाभी ननद होती है छत्तीस का आंकड़ा रहता ही है। एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या जलन रहता है। ननद अक्सर भाभी की निगरानी में लिए रहती है। भाभी भी ननद की निगरानी में रहती हैं। भाभी किससे क्या कहा है। कौनसी बात बोली है वह सारी बातों को अपने मेमोरी में लिए रहती है। भैया या मम्मी को बताने का काम करती है यही कारण होता है कि भाभी ननद में नहीं जमता है। एक दूसरे के भरोसे में कमी रहती है। भाभी भी ननद की चुगली करनें में पीछे नहीं रहती हैं।
संजो चाहती हैं कि एक साड़ी छोटकी भाभी को भिजवा दें, हो सकता है कि नरम पड़ जायेंं।अपने लिए एक मंहगी साड़ी खरीदा था। इस साड़ी से बहुत लगाव हो गया था। गुलाबी कलर की साड़ी कई डिजाइन भी बनाए गए थे। उस साड़ी को किसी को देना नहीं चाहती थी लेकिन आज वह साड़ी अपनी छोटकी भाभी की नाराजगी खत्म करना चाहती है ताकि उनकी भाभी का व्यवहार उनके प्रति सही हो जाए।
संजो ने इस साड़ी को छोटकी भाभी की लड़की को लेकर भेजा। वह खुद नही गई। वह अपनी भाभी के मिजाज को परखना चाहती है कि इस साड़ी के पाने के बाद भाभी के मिजाज में कितना परिवर्तन हुआ। छोटी भाभी की बेटी सान्या साड़ी लेकर जाती है और अपनी मम्मी की साड़ी दे देती है और कहती है..
”मम्मी, ये देखो बुआ ने साड़ी दी है आप के लिए, साड़ी कितनी अच्छी है और बुआ भी कितनी अच्छी हैं।”
छोटकी भाभी संजो की दी साडी को हाथ में लेकर उलटने पलटने लगी। सुंदर साड़ी देखकर भाभी के ह्रदय में एक सिहरन सी दौड़ गई। कितनी प्यारी साड़ी है।
“मम्मी, बुआ की जलेबी क्यों नही खाई, बुआ बहुत अच्छी हैं। पैसा भी देती हैं, मम्मी तुम बुआ को खाना कभी नही खिलाती। बुआ मुझे बहुत चाहती हैं।” बेटी ने भावात्मक बात की।
”अच्छा जा अब।” सान्या की मम्मी ने मन दबे कहा।
सान्या भागती हुई बुआ के पास गई। आते ही बुआ से कहा
“बुआ, मम्मी साड़ी देख रही थी।”
बुआ कुछ ख्यालों में डूब गई। सान्या अन्य बच्चो के पास चली गई। भाभी नरम हो सकती हैं। बुआ ने मन बनाया है कि एक झुमका भाभी को देंगे ताकि भाभी को हमारे प्रति हेय दृष्टि से जो देखती हैं। वह न देखें।
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भाभी अकेले काफी देर तक साड़ी को उलट पलट कर देखती रही। बहुत सुंदर साड़ी थी। हर महिला इस तरह की साड़ी पसंद कर लेगी। छोटकी भाभी ने गुस्से को कुछ कंट्रोल किया। साड़ी को वापस नही किया। साड़ी अपने अलमारी में रख दी।
भाभी सोच रही हैं कि हमें संजो के प्रति बदलाव लाना चाहिए आखिर संजो इसी घर की है। मैं नफरत की आग में जलती रही लेकिन संजो केवल मुश्कराती रही। कोई जवाब नही दिया। कितनी प्यारी ननद है जो हमारे बारे में इतना सोंचती है। हमको भी संजो के मान सम्मान का ख्याल रखना पड़ेगा।
रात होने लगी। सब के घर में खाना पकने लगा। संजो खाना बड़की भाभी के घर ही खाती हैं। कुत्ते आपस में लड़ झगड़ रहे थे। सारे बच्चे बुआ को चारो तरफ से घेरे थे और बुआ से हंसी ठहाके हो रही थी। रात के आठ बज गए थे। सब लोगो को खाना खाने का समय हो गया था। सब बच्चे भी अपनी-अपनी थाली में खाना लेकर खा रहे थे। बुआ भी बैठी खा रही थी। सान्या बुआ के लिए दूध लाकर दिया
“बुआ ये दूध, मम्मी ने दिया है….कहा कि जाओ बुआ को दे आओ।” सान्या ने दूध बुआ को देकर अपने घर भाग गई।
भाभी ने आज तक कभी बुआ को कुछ नही खाने को दिया लेकिन आज इस तरह का दूध पहुंचाना ह्रदय परिवर्तन की निशानी है। बुआ ने बहुत चाव से दूध को पिया और भाभी के इस ह्रदय में हुए परिवर्तन को भूरि -भूरि प्रशंसा मन ही मन कर रही है। यही तो संजो चाहती थी कि भाभी में दयालुता होनी चाहिए। आज इस तरह के परिवर्तन से अपनी जीत महसूस कर रही है संजो।
सुबह हो गई है। चिड़ियां अपने-अपने घोंसले से बाहर आकर जमीं पर पड़े दाने को चुग रही हैं। सुबह की सुरभि बह रही है जो बहुत ही खूबसूरत दिख रही है। सभी लोग सबेरा हो जाने पर उठ गए हैं। कोई मंजन कर रहा है। कोई दातुन, कोई घर द्वार को बुहार रहा है। कोई जानवरों को पानी सानी दे रहा है। किसान खेतों में जाने की तैयारी कर रहा है। गांव में चहल कदमी हो गई है। रघु चाचा सुरती हथेली पर रख कर रगड़ रहे हैं। रमई काका बीड़ी की कश ले रहे हैं। सब लोग सुबह के घरेलू कार्यों में लग गए हैं।
संजो बड़की भाभी के घर पर सोती हैं। तड़के ही उठ जाती हैं। दातून मंजन करने के बाद बाहर की कुर्सी पर बैठ कर मोबाइल के फेसबुक पर नजर दौड़ा रही हैं। छोटकी भाभी के घर पर चाय बन गई थी। कभी चाय छोटकी भाभी ने नहीं पूछा था। आज छोटकी भाभी ने अपनी बेटी से चाय बुआ के लिए भेजवा दिया।
”बुआ, लो गर्म-गर्म चाय, मम्मी ने दिया है।” सान्या ने चाय की कप बुआ को देते हुए कहा।
“सान्या,मम्मी क्या बोली ?” बुआ ने सान्या से पूछा।
”मम्मी बोली कि बुआ गरमा गरम चाय ज्यादा पीती हैं।”
इतना कह कर सान्या वहां से भागती हुई अपनी मम्मी के पास पहुंच गई। सान्या भी चाय लेकर पीने लगी।
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“मम्मी बुआ ने जो साड़ी दी है कितनी अच्छी है…साड़ी की तरह अपनी बुआ भी बहुत अच्छी हैं।” चाय पीते हुए सान्या ने मम्मी से कहा। सान्या कहकर खेलने चल दी।
छोटकी भाभी घर से बार-बार संजो को निहारती नजर आ रही हैं। भाभी अपने में परिवर्तन करने को तैयार हैं। उनसे नफरत की आग को बुझा देना चाहती हैं। एक विशाल ह्रदय को रखना चाहती हैं। प्रेम की संवेदना से रिश्ते को बना कर रखना चाह रही हैं। अपने द्वारा किए कुछ व्यवहार को लेकर दुखी हैं। उसे महसूस हो रहा है कि उसने जो कुछ अपने ननद के साथ किया। वह सही नहीं किया। संजो मुझे माफ करेगी कि नही।
आज छोटकी भाभी को अपने किए पर ग्लानि है। बुआ के साथ कई सालो से किए जा रहे अपमान से आज उनके ह्रदय में उठा प्रेम संजो द्वारा दी गई साड़ी से उनके प्रति उदारता का भाव जगा है अब वह कोई कार्य संजो के साथ नही करना चाहती है। संजो तो सरल स्वभाव की है। कभी भाभी से ऊंची आवाज में बात नहीं की। सदैव संजो नरम मिजाज से ही पेश आती हैं। यही वजह है कि बच्चो में सबसे प्रिय बनी रहती हैं संजो। बच्चे जीतना मम्मी पापा को नहीं याद करते हैं उससे ज्यादा संजो के स्नेह लाड़ प्यार से सबके दिलो में समाई सी हैं।
आज गांव में मेला लगा है। सब बच्चे ज्यादा खुश हैं। खुशी, होने का मेन कारण इस बार सब बच्चे बुआ के साथ मेला देखने जायेंगें। खुशी से बच्चे उछल कूद कर रहे हैं। आनन्द की सीमा नहीं है। तैयारी जोरो से चल रही है। कोई नया कपडा खरीद रहा है। कोई बाजार से चप्पल खरीदने चला जा रहा है। कोई अपने बालों में मेंहदी लगा रहा है। कोई नाई की दुकान पर बाल कटवा रहा है। कोई हाथों में मेंहदी लगा रहा है। कोई धोबी के यहां कपडा प्रेस कराने पहुंच गया है।
शाम चार बजे सब बच्चे तैयार हो गये। बुआ लाल साड़ी में बहुत सुंदर लग रही थी। लिपिस्टिक लगा रखी हैं। बालों को खुला रखी हैं। हाथ में बैग लिये सारे बच्चों के साथ मेला देखने चल दी। बच्चे उछलते कूदते जा रहे हैं। खुशी उल्लास का वातावरण है। सब लोग मेलें में पहुंच गये। कुछ बच्चे गुब्बारे की तरफ भागे, कुछ खिलौने देख रहे हैं। कुछ पानी पूरी की तरफ लपके, बडा मजा आ रहा है, बुआ भी सब चीज देख रही हैं तथा बच्चों पर भी नजर है कहीं कोई गुम न हो जाये।
बुआ ने जो बच्चा जो कहा सारा चीज खरीदवा दी। किसी को गुब्बारा खरीद दी, किसी को खिलौने खरीद दी, किसी ने जलेबी की जिद की़.. उसको खरीद दी। किसी ने चाउमीन खाया, किसी ने चाट, किसी ने फुलकी पानी। बुआ ने सबको कुछ न कुछ खरीदा, सब बच्चे झूम उठे। बच्चों को खुश देखकर बुआ खूब खुश थी। सभी को कपड़ा भी खरीदा।
बुआ को पता है कि छोटकी भाभी को सोने का झुमका बहुत पसन्द है लेकिन गरीबी के चलते आज तक भाभी झुमका नही खरीद सकी लेकिन लेने की लालसा मन में बनी है। बुआ सुनार की दुकान पर सारे बच्चों के साथ गई।
बुआ दिल खोलकर खरचा कर रही हैं। सुनार की दुकान से दोनों भाभियों के लिये दो झुमका खरीद ली। सुन्दर ढंग से डिजाइन की गई थी। संजो नहीं चाहती हैं कि छोटकी भाभी मुंह फुलाए रहे। आज यह झुमका खराब रिश्ते को खत्म कर एक नये रिश्ते की शुरूआत करेगा।
मेला से सब आ गये। बच्चों का शोर मचा है। सभी बच्चे अपने-अपने खिलौने से खेल रहे हैं। किसी का गुब्बारा फट गया। भयंकर आवाज के साथ फटा। बच्चों में शोर और बढ़ गया। कुछ जलेबी खा रहे हैं। मस्ती का माहौल। बुआ जब रहती हैं तो मजा ही रहता है।
संजो छोटकी भाभी के घर उस झुमका को देने चल दी। जैसे संजो भाभी के घर पहुंची। संजो को अचानक देखते ही भाभी सकपका गई। भाभी ने कुर्सी दिया। संजो कुर्सी पर घच्च से बैठ गई। संजो के लिये मीठा भाभी ने लाकर दी हल्की मुश्कान भाभी के चेहरे पर थिरक रही थी। मंद-मंद गति से संजो मुश्कराते हुये भाभी को झुमका दे दी।
“भाभी, ये सोने का झुमका आपके लिये खरीदी थी। बहुत अच्छा लगेगा, जब आप पहनेंगीं ” –संजो ने झुमका थमाते हुये कहा।
भाभी झुमका को अपने लिये सुनकर ननद के इस भावना ने एकदम भाभी को शून्यलोक में पहुंचा दिया। जिस झुमके के लिये वह कई साल से सपना बना रखा था लेकिन हालात ने झुमका को दूर कर दिया था। ननद के लिये मेरे ह्रदय में जो अग्नि की ज्वाला धधक रही थी। उस अग्नि की ज्वाला को ननद के मेरे प्रति इस स्नेह से समर्पित झुमका ने अग्नि की ज्वाला को बुझा दिया है।
“ननदरानी जी माफ करना, आपका ह्रदय बहुत कोमल है। आपकी कोमलता ने मेरे इस खराब व्यवहार के घमंड को तोड़ दिया है”– छोटकी भाभी ने कहा।
छोटकी भाभी के आंखों में अश्रु प्रवाह निकल पड़े। भाभी के आंसू को संजो ने अपने अंगलियों से पोछने लगी।
दोनो की भावना आज एक जैसी हो गयी थी। भाभी ने अपनी हार स्वीकार कर चुकी थी। संजो के मस्तक पर जीत का स्टीकर लग गया था। दोनों एक दूसरे को निहारने लग गये। भाभी का ह्रदय पूरी तरह से पिघल गया था।
…..जयचन्द प्रजापति ‘जय’