महिमा जी का परिवार पूर्णतया आधुनिक रंग में रंगा हुआ था। आलीशान कोठी सभी आधुनिक सुख-सुविधाओं से सुसज्जित, नौकर -चाकर, गाड़ियों की फौज।सब कुछ तो था उनके पास। उनके बच्चे दो बेटियां एवं एक बेटा जब आधुनिक परिधान पहन कर चमचमाती गाड़ियों में बैठकर जाते तो आस-पास के लोगों में उन्हें देखकर एक आह निकलती कि भगवान ने इन्हें इतना सारा दे दिया काश थोड़ा बहुत हमें भी दे देते तो हम भी अपने बच्चों के शौक पूरे कर पाते, उन्हें अच्छा पढ़ा लिखा सकते। जबकि आस-पास के लोगों को महिमा जी का परिवार घृणा, हिकारत भरी नजरों से देखता।ये जमीन पर रेंगने वाले कीड़े की तरह हैं जो हमारे रास्ते में गाहे-बगाहे आ जातै हैं ताकि थोड़ी भी गल्ती होने पर हमसे पैसे वसूल सकें।
कितना भी पैसा हो जाए मनुष्य को रहना तो समाज में ही पड़ता है। हवा में तो रहेगा नहीं धरती पर ही सबके बीच रहेगा। हां यह बात और है कि उनका समाज, उनके रहन-सहन का ढंग भिन्न हो सकता है।
उनकी बेटीयों के कपड़े आधुनिकता के नाम पर इतने छोटे हो गये कि वे बदन को ढकते कम दिखाते ज्यादा हैं।
श्रद्धा जी उसी आलीशान कोठी के सामने अपने छोटे से बंग्ले में रहतीं थीं। वे कन्या महाविद्यालय की प्राचार्या थीं। बच्चों को सही राह दिखाना , सामाजिकता सिखाना , अच्छे बुरे की समझ पैदा करना यही तो उनका रात दिन का काम था।जब वे महिमा जी की बेटीयों को अत्यधिक कम एवं छोटे,खुले कपड़ों में देखतीं वो भी अपने माता-पिता के सामने,जवान होते भाई के सामने तो वे सोचने पर मजबूर हो गईं, क्या यही आधुनिकता है। यही बच्चीयां जब कॉलेज में ऐसी ड्रेस पहन कर जातीं तो अन्य छात्राएं भी अपने माता-पिता से ऐसे ही कपड़ों की मांग करतीं। कुछ साधन संपन्न लोग तो अपनी बेटीयों की इच्छा पूरी कर देते किन्तु कुछ साधन संपन्न होते हुए भी इस तरह की गलत मांग के लिए बच्चीयों को मना कर देते, ज्यादा जिद करने पर डांट भी देते। दूसरे वे लोग थे जो अपने बच्चों की इच्छापूर्ति के लिए साधन विहीन थे। दोनों ही परिस्थितियों में बेटीयां मन मारतीं किन्तु जीवन में उन्हें जब भी मौक़ा मिलता वे अपनी इच्छापूर्ति हेतु गलत काम करने से भी नहीं चूकतीं भले ही बाद में उसका खामियाजा बुरी तरह उन्हें भोगना पड़े।
श्रद्धा जी विचारशील महिला थीं वे महिलाओं में फ़ैल रही इस तरह की नग्नता के खिलाफ थीं।वे हमेशा इस नये कल्चर को समाज में पैर पसारते देख चिंता मग्न हो जातीं। कैसे रोका जाए इस प्रदूषण को।
माडलिंग,टी वी, एवं वॉलीवुड की अत्याधुनिक बालाओं द्वारा फैलाया जा रहा यह जाल अब धीरे धीरे शहरों से कस्बों और गांवों में भी अपने पैर पसार रहा था।यह कैसी विडम्बना थी कि नारी स्वयं अपने को निर्वस्त्र करने पर तुली थी।यह कैसी आज़ादी,यह कैसी आधुनिकता कि महिलाओं ने स्वयं ही सारी लाज शर्म उठा कर ताक पर रख दी।
यह एक कटु सत्य है कि महिलाओं पर जमाने से अत्याचार होता आया था। वे पढ़ी लिखी नही होतीं थीं सो उन्हें परिवार के पुरुषों पर अपनी जरूरतों के लिए आश्रित रहना पड़ता था इस कारण वे सारे दबाव, कष्ट झेलने को मजबूर थीं इस सबसे निजात दिलाने के लिए बेटीयों को पढ़ाना आवश्यक समझा गया ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें अपने जीवन में तरक्की कर सकें। उन्हें आजादी दी गई घर से बाहर आने जाने की, किन्तु यह क्या उन्होंने तो इसका गल्त फायदा उठाना शुरू कर दिया। आगे बढ़ते -बढ़ते उनके कदम अब गलत दिशा में बहकने लगे। एक तरफ तो यह देखकर अच्छा लगता है कि महिलाऐं भी आजादी से सांस ले सकती हैं और अपने मनमाफिक कार्य करने के लिए स्वतंत्र हैं।आज कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रह गया जहां महिलाओं ने कार्यभार ना सम्हाला हो। किन्तु निराशा तब होती है जब वे गलत दिशा में जाने लगीं।अब श्न्ने-श्न्ने उन्होंने क्राइम में भी कदम बढ़ाने शुरू कर दिये।चोरी, हत्या जैसे काम कर रहीं हैं। ये अपराधीक प्रवृति उन्हें किस ओर ले जाएगी यह सोच का बिषय है।
श्रद्धा जी समय-समय पर अपने परिचितों से इस बारे चर्चा,बहस कर उनकी राय जानने का प्रयास करतीं। कभी -कभी वे महाविद्यालय में आयोजित अभिभावक मीटिंग में इस विषय पर कि बेटीयों को आजादी कितनी और किस दिशा में जाने हेतु दी जाए पर चर्चा कर उनसे सुझाव मांगती। आधुनिकता की आड़ में जो खुलापन आ गया है उससे आप कितने सहमत हैं।यह खुलापन, आधुनिक ड्रेसेज क्या बेटीयों की इज्जत बनाए रखने में सहायक हैं या इनका कोई दुष्प्रभाव भी है।
तभी महिमा जी बोलीं मैडम पहनना-ओढ़ना , आधुनिकता से रहना यह निहायत व्यक्तिगत मामला है सो इस पर किसी को क्यों आपत्ति हो सकती है।
श्रद्धा जी बोलीं -महिमा जी मैं आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूं परन्तु जब इन सबका प्रभाव अन्य लोगों पर पड़ने लगे तो यह मामला व्यक्तिगत ना होकर सामाजिक हो जाता है। और जब समाज में गलत संदेश जाने लगे तो क्या इन चीजों पर रोक नहीं लगनी चाहिए।
कई अभिभावक एक मत से बोले, हां वास्तव में यह सोच का बिषय है मैडम इन बातों पर विचार करना आवश्यक है।
श्रद्धा जी बोलीं एक बात मैं और आप सबसे पूछती हूं क्या आधुनिकता के नाम पर बेटीयों में अपराधीक प्रवृति को बढ़ावा देना,लीव इन में रहने की अनुमति देना, अनैतिक कार्यों में लिप्त होने देना उचित है। कई बार बच्चों द्वारा किए गए इन कार्यो की जानकारी अभिभावकों को नहीं होती और कुछ जानते हुए भी निर्विकार रहते हैं।
मैडम आपका कहना सच है, हमें पूर्णतया बच्चों का दोस्त बनकर उनके मन में चल रहे क्रियाकलापों की जानकारी रखना चाहिए ताकि वे गलत दिशा में कदम ना बढ़ाएं।
श्रद्धा जी इन गलत आदतों का खामियाजा लड़कियों को ज्यादा भुगतना पड़ता है और फिर निराशा में वे अपनी जान दे देती हैं या उनकी जान ले ली जाती है।
आपका कहना उचित है यही हो रहा है।
तो फिर हम सो क्यों रहे हैं कोई सामूहिक कदम क्यों नहीं उठाते इन सब बातों को रोकने के लिए ।यह एक विचारणीय प्रश्न है कृपया आप सभी इस बारे में मंथन कर कोई निष्कर्ष निकालें तो इस सामाजिक प्रदूषण को रोका जा सके।
अभिभावक -मैडम आज आपने हमारे सोए जमीर को जगा दिया। आधुनिकता, फैशन के नाम पर जो गंदगी समाज में फैलाई जा रही है सचमुच विचारणीय है।हम अभिभावकों को ही इस दिशा में प्रयास करना होगा। आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो इस ज्वलंत मुद्दे की और हमारा ध्यान आकर्षित किया।
श्रद्धा जी बोलीं आभार तो मैं आप सबका मानती हूं कि आप लोगों ने मेरी बात को समझने का प्रयास किया। मैं बेटीयों की आजादी के खिलाफ नहीं हूं, किन्तु आजकल सोशल मीडिया का जमाना है मोबाइल पर ही इतना कंटेंट मिलता है कि ये नासमझ बच्चीयां भटक जाती हैं। जीवन में आसान और अच्छा लगने वाला रास्ता सभी को पसंद आता है फिर उस पर चलने की इच्छा होती है ये तो बच्चे हैं आसानी से जाल में फंस जाते हैं। अतः ये भटकें नहीं यह सुनिश्चित करना अभिभावकों की जिम्मेदारी है। ग़लत को बढ़ावा न देकर उन्हें सही से अवगत करायें प्रेमपूर्वक तो, वे समझ सकेंगी। अनावश्यक क्रोध ,कड़ा अनुशासन उन्हें विद्रोही बना देगा सो अपना तरीका सहयोगात्मक, प्रेम सहित हो जो बच्चों के दिल को छू जाए और वे खुशी -खुशी उसे मानने को मानसिक रूप से तैयार हो जाएं तभी आपकी सफलता है।
हां मैडम आपके विचार उचित हैं हमारा प्रयास ऐसा ही रहेगा।
श्रद्धा जी बोलीं यदि हम पांच या दस प्रतिशत भी सफल रहे तो यह इस सामाजिक बदलाव के प्रयास में एक सफल कदम होगा।
सभी ने सहमति प्रदान करी और एक नये जोश, विचार के साथ अपने -अपने घर को चले गए।
शिव कुमारी शुक्ला
जोधपुर राजस्थान
15-10-25
लेखिका बोनस प्रोग्राम
कहानी संख्या तीन