श्यामा दीदी रोटी बनी की नहीं मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है
और मेरा नाश्ता कहां है मुझे तो डाइनिंग टेबल पर कोई नाश्ता नहीं दिख रहा। अब क्या भूखे पेट जाऊं, लगभग चीखते हुए रवि ने श्यामा से कहा। रवि तुम्हारा लंच बॉक्स तैयार है और नाश्ता भी तैयार है। लो फटाफट नाश्ता कर के चले जाओ कहते हुए श्यामा डाइनिंग टेबल पर नाश्ता रख ही रही थी,
की सुरभि की आवाज आ गई। अरे श्यामा दीदी प्लीज मुझे भी फटाफट सैंडविच बना कर दे दो। मुझे भी कॉलेज के लिए निकलना है, और हड़बड़ाती हुई डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गई। अभी बना देती हूं कहकर श्यामा ने तवे पर ही झटपट सैंडविच तैयार कर सुरभि के सामने रख दिया।
सैंडविच का एक टुकड़ा मुंह में लेते ही सुरभि बोल उठी। दीदी आपके हाथ में तो जादू है। आप जो भी बनाती हो। उस में टेस्ट तो कूट कूट कर भरा होता है। सुरभि के मुंह से तारीफ सुनकर श्यामा हल्की सी मुस्कुराहट के साथ फिर रसोई की ओर चल दी। अब इतनी भी क्या तारीफ करनी। जैसे सब बनाते हैं, वैसे ही ये बनाती है ये कहते हुए अरुणा जी अपने लिए भी सैंडविच का ऑर्डर देकर
डाइनिंग पर बैठ गई, जैसे कोई होटल हो। अभी बनाती हूं मां कह कर श्यामा सैंडविच बनाने में लग गई। ये तो सुबह की शुरुआत थी। अभी तो उसे अपने बीमार पिता को भी दलिया या खिचड़ी बनाकर खिलाना था फिर कामवाली बाई रज्जो के साथ मिलकर पूरे घर भर की सफाई और बाबूजी की दवाई ये सब भी देखना था। श्यामा को सैंडविच बनाते हुए अपने बाबूजी की फिकर होने लगी।
वो सोचने लगी बाबूजी को भी भूख लग गई होगी । सुबह से उन्होंने कुछ नहीं खाया होगा क्योंकि एक उसके सिवा बाबूजी को यहां देता कौन है। जब से बाबूजी बीमार हुए हैं। तब से ही मां तो उन्हें देखना तो दूर कभी उनके करीब भी जाकर नहीं बैठती थी और ना ही रवि। हां सुरभि को अपने बाबुजी से
प्यार तो बहुत था, मगर वह बहुत ज्यादा व्यस्त रहती थी, फिर भी कभी-कभी अपनी बीमार पिता के पास समय निकालकर बैठ जाया करती थी। “मां”कहने को सिर्फ मां थी मगर कभी भी श्यामा को मां का प्यार नहीं मिला वह तो सिर्फ रवि और सुरभि को ही अपना मानती थी।
जिस दिन से ये मां बाबूजी की पत्नी बनकर इस घर में आई। तभी से उसे कभी अपनाया ही नहीं। उसकी खुद की जन्म देने वाली मां तो बहुत पहले ही इस दुनिया से जा चुकी थी। तो अब बचा कौन??
सिर्फ उसके बाबूजी जो दिन रात अब बिस्तर पर पड़े पड़े उसके साथ हुए अत्याचार पर अपनी भूल का एहसास करते हुए अपनी बेटी से क्षमा मांगते रहते थे। बाबूजी ने मां को बहुत समझाने की कोशिश की।
मगर यह ममता भी कभी-कभी इतनी स्वार्थी हो जाती है, कि इसे पाना बड़ा नामुमकिन हो जाता है। वो भी अब विवाह योग्य हो गई थी, इसीलिए बाबूजी को उसके ब्याह की भी बड़ी फिक्र रहने लगी थी। वह कई बार मां से कहते मगर,मां टाल मटोल करती रहती थी।
अचानक कानों से कठोर शब्द टकराया श्यामा क्या अभी तक तुम्हारी सैंडविच नहीं बनी है। मां की कठोर आवाज सुनते ही श्यामा डर गई और घबराहट में आधी कच्ची सैंडविच और चाय मां के पास ले जाकर रख दी और अपनी नजरे नीची कर ली।
अपनी प्लेट में आधी कच्ची सैंडविच देखते ही अरुणा जी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और जोर-जोर से चीखने लगी। अभी सुरभि ने तुम्हारे सैंडविच की तारीफ क्या कर दी कि तुम तो आसमान में उड़ने लगी कहते हुए श्यामा पर हाथ उठाने के लिए अपना हाथ हवा में लहराया।
अचानक उसकी मां के हवा में लहराते हाथ को किसी ने थाम लिया। श्यामा ने जब नज़रें उठा कर देखी, तो देखती रह गई क्योंकि उसके खुद के बीमार पिता ने आज इतनी हिम्मत कर के अपनी बेटी को बचाने के लिए पत्नी का हाथ रोक लिया था और फिर गुस्से में कहने लगे। अरुणा एक हद होती है, अपने गलत अधिकारों की।
मैं तुम्हें इस घर में इसीलिए ब्याह कर लाया था, कि तुम्हारे प्यार और संस्कार से एक दिन मेरी बिटिया का घर बस जाएगा और मुझे भी सहारा मिल जाएगा । मैं तो यही सोचता था, कि हर नारी में मां होती है, मगर तुमने तो मुझे गलत साबित कर दिया। तुमने तो मां के नाम को ही शर्मसार कर दिया। तुमने कभी मेरी दवा का या खाने का कोई ख्याल नहीं रखा फिर भी मैंने कुछ नहीं कहा।
मगर अब और नहीं। मैं अपनी बिटिया का घर खुद बसाऊंगा क्योंकि अब मेरी बेटी विवाह योग्य हो गई है। मैंने शर्मा जी के बेटे को श्यामा के लिए पसंद कर लिया है। बस अब यह कुछ दिन ही इस आंगन में गुजारेगी और हां कल से श्यामा रसोई में किसी के लिए कुछ नहीं बनाएगी। सब अपना देखो कहते हुए उन्होंने श्यामा के कंधे का सहारा लेते हुए धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर चल पड़े।
श्यामा अपने बाबूजी को देखकर हैरान थी। जो इतने दिनों के बीमार लाचार आज न जाने कहां से उनमें इतनी हिम्मत आ गई थी, कि वह एक लाठी के सहारे डाइनिंग टेबल तक पहुंच गए।
हालांकि कमरे से डाइनिंग की दूरी ज्यादा नहीं थी, इसीलिए और फिर जब इंसान कठोर निर्णय लेने के लिए अपने कदम उठाता है, तो शायद उन कदमों में भी बहुत जान आ जाती है । जब सुरभि को अपने बाबूजी के निर्णय का पता चला, तो वह खुश हो गई।
शर्मा जी के बेटे और श्यामा ने एक दूसरे को पसंद कर लिया। बस फिर विवाह की तैयारी में बीमार पिता और सुरभि और हां अब रवि भी लगे हुए थे। उसके जीवन में इतनी बड़ी खुशी होते हुए भी श्यामा को अपनी नई मां के आशीर्वाद के बिना सब खाली-खाली लग रहा था। जो भी हो उसने तो अरुणा जी के ऐसे बर्ताव के बाद भी उन्हें अपनी मां मान लिया था,इसीलिए आज वह अपनी मां के पास जाकर प्रेम से कहने लगी।
मां मैं तो अब इस घर से चली जाऊंगी, मगर आपके आशीर्वाद के बगैर मैं अपना घर कैसे बसाऊंगी। मां अपनी इस बिटिया का घर अब बसने दो। मैं आपके द्वारा दिए गए आंसुओं को यही छोड़कर जाना चाहती हूं क्योंकि इतने सारे आंसुओं की गठरी लेकर मैं अपना नया घर नहीं बसाना चाहती । मुझे किसी से भी कोई शिकायत नहीं है । मैं सब कुछ भूल कर जाना चाहती हूं ।
आज पहली बार श्यामा की दर्द भरी बातें सुनकर अरुणा जी का दिल भर आया और खुद से घृणा होने लगी कि उनके अंदर किसी के लिए इतनी नफरत कहां से आ गई । जो इतने वर्षों तक भरी भी रही। पति शर्मा जी का इतना दिल दुखाया सो अलग । उनके ये अपराध माफी के लायक भी नहीं है।
यह सब सोचते हुए उन्होंने श्यामा के चेहरे की ओर गौर से देखा तो उन्हें श्यामा के चेहरे पर सिर्फ निश्चल भाव के सिवा और कुछ नजर नहीं आया। ये देख आज पहली बार अरुणा जी लगभग रोते हुए श्यामा से बोल उठी ।
मुझे क्षमा कर दे मेरी बिटिया। मैं जानती हूं, मैं क्षमा के लायक नहीं हूं,मगर वादा है मेरा। मैंने इतने बरसों में तुझे जितने दुख दिए हैं । उससे कहीं ज्यादा तुझे अब मैं सुख देना चाहती हूं । मां का प्यार देना चाहती हूं। मैं अपनी बेटी पाना चाहती हूं । अपनी बिटिया का घर बसाना चाहती हूं कहते हुए श्यामा को गले लगा लिया।
आज बरसो बाद बिटिया शब्द सुनकर श्यामा भी रह न सकी और मां कहते हुए अरुणा जी के गले लग पड़ी। अच्छा अकेले-अकेले मां बेटी में प्यार चल रहा है । यह मत भूलो श्यामा दीदी कि मैं और रवि भैया भी आप दोनों के इस प्यार के हकदार है कहते हुए वह दोनों भी अरुणा जी और श्यामा के गले लग पड़े।
दूर से ये सब देख कर बिस्तर पर लेटे-लेटे आज शर्मा जी को बहुत सुकून मिल रहा था क्योंकि आज उनकी बिटिया का घर बड़े प्यार से बसने जा रहा था। जिसमें आशीर्वाद की ढेर सारी ईंटे लगने जा रही थी।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम