बिटिया का घर बसने दो – डोली पाठक :

 Moral Stories in Hindi

38 साल की कुंवारी बिटिया जिस घर में हो और माता-पिता उस बेटी के प्रेम में अंधे हों तो उस घर में बहूओं की स्थिति की कल्पना सहज हीं की जा सकती है…

एक ऐसी बेटी की कहानी जिसके प्रेम में पागल हो कर माता-पिता ने उसका विवाह तक नहीं किया…

तर्क ये कि हम बेटी के बिना कैसे रहेंगे…

तीन भाइयों से सबसे छोटी बहन 

मीनू घर में सबकी चहेती है….

माता-पिता और भाईयों की लाडली होने के कारण घर के कामकाज में हाथ बंटाना तो दूर भाइयों से हीं अपने काम करवा लेती है…

ऊपर से पिता की ये दलील कि, मेरी राजकुमारी भला क्यों करेगी घर के काम में सारे काम तुम सब करो…

बचपन से ही नकचढ़ी और जिद्दी मीनू अपनी हर जिद मनवा कर हीं दम लेती थी….

मां की नजरों में हर समय बच्ची दिखने वाली मीनू जब पच्चीस वर्ष की हो गई तब बड़े भाई हरीश का विवाह हुआ…

सौभाग्य से भाभी भी ऐसी आ गई जो ननद पर अपनी स्नेह वर्षा करने लगी…

बिस्तर पर चाय देना,चाय का जूठा कप हाथ से लेकर रखना…

ननद की पसंद की चीजें बनाना खिलाना और हर बात में ननद का साथ देना…

घर की बड़ी बहू होने के कारण सास-ससुर देवर ननद सबका प्रेम भी खूब मिलता था…

इसलिए कभी ससुराल में परायेपन का एहसास हीं नहीं हुआ…

परंतु कभी-कभी ननद के प्रति सास-ससुर के अंधेकरण के कारण नयी बहू बन कर आई रक्षा को बड़ा हीं परेशानी भी उठानी पड़ती थी…

ननद का आवश्यकता से अधिक किसी मामले में हस्तक्षेप और भोजन को लेकर मीन-मेख निकालने की उसकी बुरी आदत के कारण रक्षा को कभी-कभी बड़ा हीं तकलीफ हुआ करता…

तकलीफ मीनू के टोकने के कारण नहीं होता था बल्कि सास-ससुर के कुछ नहीं कहने के कारण होता था…

रक्षा हर बार ये सोचकर दुःखी हो जाती कि माता-पिता के जीते जी छोटी बेटी को ये सब कहने का क्या अधिकार है भला…

परंतु जब उसके पति हरीश को हीं इस बात से फर्क नहीं पड़ता तो वो कर भी क्या सकती थी।

सास ने तो‌ जैसे ठान लिया था कि बहू को कष्ट हो जाए तो हो जाए परंतु बेटी पर कोई रोक-टोक नहीं रखेगी..

उन्हें तो इस बात से भी कोई सरोकार नहीं था कि उनकी बेटी की हीं उम्र की बहू आकर पूरे घर को संभाल रही है..

समय बीता और घर में मंझली बहू भी आ गई…

और वो भी ऐसी आई कि ननद के साथ मिलकर जेठानी पर साजिशें करने लगी…

माता-पिता तो जैसे अपना कर्तव्य हीं भूल गए थे…

जवान बेटी को हाथ पीले कर के उसका घर बसाने की जगह पर बेटी के कारण अपनी बहू का घर तोड़ने पर लगे थे…

मंझली बहू का ननद प्रेम भी ज्यादा दिनों तक नहीं टिका क्यों कि नकचढ़ी ननद ने उसके साथ भी वैसा हीं व्यवहार करना शुरू कर‌ दिया…

अब तो ननद के भाव और भी बढ़ गये थे क्यों कि अब वो नौकरी पेशा हो गई थी…

बेटी को सर पर बिठा कर रखने वाली मां दिनों-दिन बेटी के प्रेम में और भी अंधी होती जा रही थी….

बहूओं की छोटी-सी गलती पर आसमान सर पर उठाने वाली सास बेटी की बड़ी से बड़ी ग़लती को यूं नजरअंदाज कर देती जैसे कुछ हुआ हीं नहीं हो…

भूल कर भी अगर बहूएं पूछ देती कि, अम्मा!!! मीनू का विवाह कब होगा?? 

उस दिन तो घर में जैसे सामत आ जाती… 

रहने दो ये सारे सवाल पूछने का अधिकार तुम्हें किसने दिया?? 

अरे हम बेटी को जन्म दिए हैं अभी हम जीवित हैं उसकी देखभाल करने के लिए तुम्हें क्यों दिक्कत हो रही है??? 

ये सारी बातें सास-ससुर के मुंह से सुन कर बहूएं अपना मुंह बंद कर लेती…

सास के लिए पोते-पोतियों की उम्र और तजुर्बा तो खूब बड़ा हो गया था परंतु स्वयं की बेटी अभी भी बच्ची थी….

देखते-देखते मीनू की उम्र बत्तीस बरस हो गयी…

छोटे भाई का तो ब्याह हुआ परंतु उसके विवाह के लिए आज भी वो छोटी हीं थी… 

अब तो मुहल्ले में भी लोग बातें बनाने लगे परंतु इन सब बातों का किसी पर कोई असर नहीं हुआ…

समय से विवाह नहीं होने पर बेटियां अपने हीं घर को बिगाड़ने और तोड़ने में लग जाती हैं और वैसा हीं किया मीनू ने… 

और इस कार्य में उसका पूरा साथ किया उसके अंधे प्रेम में पागल माता-पिता ने…..

आए दिन उसके कारण घर में कलह होने लगी….

पिता के द्वारा बिगाड़ी गई बेटी अपनी हीं भाभियों की दुश्मन बन बैठी…

मगर उसकी इस कुकृत्य के लिए कोई आवाज नहीं उठाई गयी…

माता-पिता को ये भी समझ नहीं आया कि बेटी का भी घर बसाना चाहिए…

उसको भी ससुराल भेजना चाहिए.. 

हर कार्य का एक उचित समय और उम्र सीमा होती है…

बेटी की आदतें दिनों-दिन इतनी बिगड़ती जा रही है कि बहूओं का सुख और शांति खत्म हो रही है….

बेटी का घर बसाने की जगह माता-पिता बहूओं का घर तोड़ने में लगे हैं….

ऐसे अक्ल के दुश्मनों को शायद ये नहीं पता कि विवाह की जरूरत जितना बेटों को है उतना बेटी को भी है…

और दुनिया में माता-पिता बेटी को कितना भी प्रेम क्यों नहीं करें परन्तु उसे अपने घर में बिठा कर नहीं रख सकते…

हर बेटी को अपनी अलग दुनिया बसानी हीं पड़ती है…

आए दिन घर में बहूएं रोती हैं और कहती हैं अपनी बेटी का घर तो बसने दो हमारी उजाड़ने पर क्यों तुले हुए हैं आप सब….

अब तो अड़तीस की हो गई है ननद अब तो विवाह भी असंभव हीं है…

कुछ माता-पिता अत्यधिक प्रेम के कारण हीं बच्चों का अहित कर जाते हैं और पता भी नहीं चलता…

बेटे की दुनिया उजड़े तो उजड़े बेटी का घर नहीं बसने देंगे।

अरे भाई बिटिया का घर बसने दो….

यहीं जरूरी है और बिटिया की जरूरत भी…

डोली पाठक 

# बिटिया का घर बसने दो

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