बेटी की सच्ची विदाई -लतिका पल्लवी :

 Moral Stories in Hindi

मामी, भूख लग रही है। जाओ, जाकर माँ से नाश्ता माँग कर खा लो। अभी नाश्ता कहा बना है? आप तो अभी सोकर उठ रही है फिर नाश्ता कौन बनाएगा? मामी आपकी तबियत ठीक नहीं है क्या? आप इतनी देर तक क्यों सो रही थी? क्यों, तुम्हारी माँ भी तो अभी सो ही रही होंगी।क्या उनकी भी तबियत खराब है? जाओ उनसे जाकर नाश्ता बनाने को कह दो।पर यह तो मेरी माँ का मायका है वह नाश्ता नहीं बनाएंगी। नानी जी नें कहा है कि तुम्हे कुछ भी चाहिए होगा तो जाकर मामी से माँगना। यहाँ माँ

काम नहीं करेगी।यह बातचीत रुनझुन और उसकी मामी अर्पिता के बीच मे हो रही थी । रुनझुन की माँ रचना ससुराल की जिम्मेदारियो से बचने के लिए ससुराल से प्रायः अपने मायके चली आती थी। हालत यह थी कि वह महीना मे दश दिन ससुराल रहती तो बीस दिन मायके मे। दो भाइयो के बीच एक बहन थी तो सभी उसे कुछ ज्यादा ही प्यार दुलार करते थे।वह कोई काम नहीं करना चाहती थी।

उसकी माँ भी उसका समर्थन करती थी और उसे कुछ ज्यादा ही सर पर चढ़ा रखा था।जब भी उसके पति मायके ले जाने से मना करते तो वह माँ को फोन कर देती कि माँ तुमसे मिलने का मन हो रहा है और तुम्हारे दामाद जी ले जाने को तैयार नहीं हो रहे है। बस फिर क्या उसकी माँ किसी भी भाई को भेजकर उसे बुला लेती। अब इसपर तो उसके ससुराल वाले मना भी नहीं कर पाते थे।विदा करते वक़्त

वे ससुराल वालो के लिए ढेर सारे उपहार देती थी इसलिए उसकी सास भी ज्यादा कुछ बोलती नहीं थी, पर यह सब उसके पति को पसंद नहीं था। लेकिन माँ, सास और पत्नी के आगे उनकी चलती नहीं थी।बेचारा इन तीनो के बीच मे पीस रहा था। अर्पिता के विवाह को अभी छह माह के करीब हुआ था। पहले तो उसे लगा रचना नें सोचा होगा कि नई भाभी है तो उसके साथ कुछ समय बिताऊंगी इसलिए

शायद शादी के बाद दामाद जी चले गए और वह रुक गईं। यह सोचकर उसे बहुत ही अच्छा लगा कि कितनी अच्छी मेरी ननद है, जो उन्होंने सोचा कि भाभी के साथ रहूंगी तो भाभी का मन लगेगा। रचना उसकी हमउम्र ही लग रही थी। उसकी शादी शायद जल्दी हो गईं थी।क्योंकि उसकी एक पांच साल की बेटी रुनझुन भी थी पर अर्पिता को पढ़ाई मे बहुत मन लगता था और उसका शौक था कि वह पढ़

लिख कर कुछ बन जाएगी तभी वह शादी करेगी। अर्पिता नें एम बी ए किया था। इसलिए उसकी शादी मे देर हुई थी।उसने पढ़ाई पूरी कर ली थी पर अभी नौकरी नहीं करती थी पढ़ाई पूरी होते ही रिश्ता आ गया था और उसके ससुर जी नें कहा कि हम ऐसी ही लड़की चाहते है जो पढ़ी लिखी हो,जो हमारे साथ हमारा बिजनेस भी देखे पर यदि जरूरत हो तो घर मे भी रह सके। दूसरे जगह यह सुविधा

नहीं होंगी कि जब चाहा नौकरी किया और जब चाहा छोड़ दिया। अर्पिता की माँ नें समझाया बेटा तुमने कहा कि पढना है तो हमने पढ़ने दिया, पर अब विवाह कर लो। इतना अच्छा रिश्ता बार बार नहीं मिलता है।यह बहुत ही अच्छी बात है काम करो, पर जब बच्चे हो तो उनकी देखभाल के लिए

कुछ दिन काम से दुरी बना लो फिर जब बच्चे कुछ बड़े हो जाए तो परिवार के बिजनेस मे फिर हाथ बटाने लगो।माँ की बात मानकर उसने विवाह कर लिया और बहुत खुश थी, पर अर्पिता की यह ख़ुशी सिर्फ उसका भ्रम था कि उसकी ननद उसके साथ कुछ दिन रहने के लिए ससुराल नहीं गईं है क्योंकि

रचना उससे काम से ज्यादा बात नहीं करती थी।वह अपने मे ही मस्त रहती। सुबह दश बजे सोकर उठना, दिनभर मोबाईल चलाना, शाम को सहेलियों के घर घूमने निकल जाना, यही सब उसकी दिनचर्या थी। लगता ही नहीं था कि वह एक बच्चे की माँ है। रुनझुन का काम पहले नानी करती थी बाद मे मामी के आने के बाद सब मामी की जिम्मेदारी बन गईं। अर्पिता के विवाह के एक महीने बाद दामाद जी आकर रचना को विदा कराकर ले गए। अर्पिता नें सोचा चलो बेटी है एकाध महीने तो

मायके मे रह ही सकती है। बच्चे जब बड़े हो जाते है तो कोई कहा मायके रह पाता है। लेकिन अभी मुश्किल से पंद्रह दिन भी नहीं हुए होंगे रचना फिर आ गईं। यह बार बार का किस्सा था दामाद जी आकर ले जाते दश दिन बीतते बीतते माँ फिर बुला लेती। अर्पिता को अजीब लगता पर उसने कुछ कहा नहीं।इधर अर्पिता नें बिजनेस ज्वाइन कर लिया था। वह सुबह उठती और कामवाली के साथ

मिलकर नाश्ता बनाती फिर सबको खिलाती। ससुर और उसके पति जल्दी नाश्ता करके ऑफिस चले जाते थे। उसके देवर थोड़ी देर से उठते फिर तैयार होकर नाश्ता करते। तब तक अर्पिता भी तैयार हो जाती और अपने देवर के साथ ऑफिस चली जाती। वह ऑफिस से थोड़ी जल्दी आती और आकर रात के खाने की तैयारी करती। उसकी जिंदगी मजे मे चल रही थी।वह अपने शौक को भी पूरा कर

रही थी और घर को भी देख रही थी।उसके ससुर और पति उससे बहुत ही खुश थे, क्योंकि वह घर और बिजनेस दोनों को अच्छे से संभाल रही थी।पर उसे लगता था कि उसके ससुर जी को किसी तरह की चिंता है जो उन्हें परेशान कर रही है। घर मे पैसे रूपये की कोई कमी नहीं थी बेटो नें बिजनेस भी अच्छे तरह से संभाल लिया था। बड़े बेटे का विवाह हो ही गया था बहू  भी बहुत अच्छी मिली थी। बेटी

का विवाह भी हो गया था।छोटे बेटे के लिए भी अच्छे घरो से रिश्ते आ रहे थे। देर सबेरे उसका विवाह भी हो ही जाना था तो आखिर पापा को किस बात की चिंता हो सकती है।यह अर्पिता को समझ नहीं आ रहा था।उसने इसपर बहुत सोचा और जब समझा तो उसे सुलझाने के लिए एक आइडिया निकाला। और आज जब रुनझुन नें खाना माँगा तो उसे मना कर देना यह उसकी शुरुआत थी।अर्पिता

से माँ से जाकर खाना मांगो सुनकर रुनझुन अपनी माँ के पास गईं और कहा माँ मुझे भूख लगी है। रचना नें कहा कि मुझे सोने दो जाओ जाकर मामी से मांगो। मामी से माँगा था पर मामी नें कहा जाकर माँ को बोलो कि खाना बनाकर तुम्हे खिलाए रुनझुन नें रोते हुए कहा। क्या कहा मामी नें मुझे खाना बनाने को कहा। हाँ माँ मामी नें यही कहा। यह सुनकर रचना की नींद टूट चुकी थी और वह गुस्साते हुए अर्पिता के पास जाकर बोली भाभी आपने रुनझुन से क्या कहा है? रुनझुन नें नहीं बताया क्या

आपको? बताया, आपकी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की? आप होती कौन है मुझसे काम करने को बोलने वाली? यह मेरे पिता का घर है मै देर से जगु, काम करू ना करू मेरी मर्जी। यह मेरे भी ससुर जी का घर है। मै भी जो चाहे वह करूंगी। आपकी बेटी का काम मै करु? रचना नें भी सुना दिया।मुझे आपके मुँह नहीं लगना है। आपको तो माँ बताएगी, यह कहकर रचना अपनी माँ के पास चली गईं और रो रोकर अपनी भाभी की शिकायत करने लगी।बेटी की रुलाई तो किसी भी माँ से बर्दास्त

नहीं होती है, फिर रचना की माँ को तो बेटी के आगे कुछ दिखता ही नहीं था। वह तुरत अपनी बहू के पास जाने लगी। तभी उनके पति आ गए और पूछा रचना क्यों रो रही है? माँ नें गुस्साते हुए कहा आपकी बहू के कारण और सारी बात बताई। उनके पति नें कहा बहू के पास जा रही हो, पर तुमने यह सोचा है कि उसने यदि यही जबाब तुम्हे दिया तो फिर क्या होगा। वैसे इसमें बहू नें बुरा क्या कहा

है?रचना एकदिन अपनी बेटी को खाना बनाकर नहीं दे सकती है?हो सकता है उसे ऑफिस जल्दी जाना हो, वरना वह तो प्रतिदिन नाश्ता बना ही देती है। पापा को बहू का पक्ष लेते देखकर रचना अपने पापा पर गुस्साते हुए वहाँ से चली गईं।देखो अब बेटे बहू वाला घर है, तुम्हे बहू से भी चला कर चलनी चाहिए, नहीं तो कही हमारा घर ना टूट जाए, रचना के पापा नें उसकी माँ को समझाते हुए कहा।तभी वहाँ अर्पिता आई और बोली ऐसा कभी नहीं होगा पापा, आप निश्चिन्त रहे। माँ मैंने एकदिन रचना को जबाब दे दिया तो आपको कितना बुरा लगा। सोचिए रचना तो कभी भी अपने ससुराल मे कोई

जिम्मेदारी नहीं उठाती तो उसकी सास ननद को कैसा लगता होगा? आपने हमेशा रचना के बारे मे सोचा पर दामाद जी भी हमारे अपने है। हमें उनके बारे मे भी सोचना चाहिए। शादीशुदा होते हुए भी अपने हर काम के लिए माँ या भाभी पर निर्भर रहना क्या उन्हे अच्छा लगता होगा? आप शादी करने के बाद भी बेटी को दूर नहीं करना चाहती है पर दामाद जी को तो कुँवारी बेटी होते हुए भी उससे दूर रहना पड़ता है। उनके मन पड़ क्या बीतती है सोचा है? अब उसका नाम भी स्कूल मे लिखा गया है,

पर रचना के बार बार यहाँ आने से उसकी पढ़ाई बाधित हो रही है उसके बारे मे आपको नहीं सोचनी चाहिए?आप विदाई के वक़्त जो उपहार देती है तो सोचती भी है कि इससे दामाद जी को बुरा लग सकता है? माँ नें अर्पिता को टोका और कहा सब तो मान सकती हूँ कि तुम सही कह रही हो पर उपहार से दामाद जी को क्या परेशानी हो सकती है? दामाद जी को लगता है कि वे रचना की

अवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाते है इसलिए वह आपसे अपनी पसंद का सामान माँग कर ले जाती है। तुमसे दामाद जी नें कहा? माँ कुछ बाते कही नहीं जाती है समझी जाती है और हाँ कुछ बाते उन्होंने कही भी है। यह सब सलहज और नन्दोई की मज़ाक मे की गईं बातो का निचोड़ है।जो बात वे आपसे या अपनी माँ से नहीं कह सकते है उसे उन्होंने मज़ाक मज़ाक मे मुझसे कह दिया है। माँ बेटी की माँ को मन कड़ा कर के बेटी को ससुराल मे भेजनें का कठोर निर्णय लेना ही होता है।बेटी की

विदाई सभी को करनी पड़ती है यही समाज का नियम है।आपके इस निर्णय से पापा भी चिंता मुक्त हो जाएंगे। यह सुनकर उन्होंने अपने पति की और देखा।पति नें समर्थन मे सिर हिलाया। माँ नें रोते हुए कहा चलो सभी की यही चाहत है तो मै भी मन कठोर करके यह कठोर निर्णय ले ही लेती हूँ कि अब से रचना बस उस तीज त्यौहार पर ही आएगी जिसमे सभी की बेटियां आती है।

विषय —-कठोर निर्णय 

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