बेटी की बेटी बनाम बेटे की बेटी – पूनम बगाई : Moral Stories in Hindi

“नीना शाम को 4 से 6  सप्तमी वाले दिन मेरे यहाँ चौकी है। जरूर आना।” सीमा जी ने नीना को मुस्कुरा कर कहा। 

“क्या बात सप्तमी पर तुम करवा रही हो अब की बार”। नीना जी, जो कि एक नंबर की गपोड़ी और सीमा जी की अच्छी दोस्त भी थी ने सीमा जी को रोकते हुए पूछा।

“ये सरिता आहूजा के यहां से न्योता आ गया क्या  तुम्हे नवमी का?” नीना ने कहा। 

“नही तो अभी तक तो नही आया, क्यों वे तो हमेशा ही नवमी पर चौकी करवाती है कल तक भिजवा देंगी न्यौता। अब की बार तो उनकी पोती की पहले नवरात्रि है। सबसे छोटी कंजक है वो तो अब की बार मोहल्ले की” सीमा जी ने नीना के प्रश्न के जवाब में नीना को कहा। 

“अरे कंजक काहे की , बहु को तो मायके वाले ले गए छोटी बच्ची के साथ। दूसरे नवरात्रे पर मैंने देखा था।” नीना जी ने कहा।

“अच्छा, तो कंजक तक तो आ ही जाएगी।” सीमा जी ने पूछा। 

“देखते हैं” और नीना जी हँस दी। 

सीमा जी के यहां धूमधाम से चौकी सम्पन्न हुई। दो दिन बाद शाम को सैर करते हुए नीना जी को सीमा जी मिली।

“क्या बात थकान नही उतरी अभी तुम्हारी” नीना ने पूछा।

“हाँ बस, नींद पूरी नही हुई थी। घर में मेहमान आये थे। कल सब से विदा ली तो कुछ ठीक से सोई। ” सीमा ने कहा।

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नीना और सीमा अच्छी सहेलियाँ थी और शाम को पूरे मोहल्ले की खबरे एक दूसरे से सांझा करके अपनी दिन भर की थकान उतार लेती।

इधर उधर की बातें करती रही । “चलो, चलती हूँ काल सुबह की कंजक की तैयारी भी करनी है” कह कर दोनो ने एक दूसरे से विदा ली। 

सुबह दोनी ही कंजक लेकर सरिता आहूजा जी के दरवाजे पर एक दूसरे से टकराई। 

“सरिता जी, हम लोग आपकी पोती के लिए कंजक लाये थे।” सीमा जी ने आवाज़ लगाई।

सरिता जी ने दरवाज़ा खोला “आईए आईए, पर पोती तो अपने ननिहाल में है”।

“क्या, उसकी तो पहली कंजक है, क्या बहु को लिवा नही लाये” नीना जी ने प्रश्नवाचक आंखों से पूछा।

“अरे ये आजकल की बहुएँ, बहुत नखरे करती हैं, बच्चा ही तो जना है, हमने भी तो 4 -4 पैदा किया हैं। मेरी बेटियों ने भी तो जना है उनके तो कोई नखरे नही। बहु सुन के तो डॉक्टर भी पर्ची पकड़ा देते हैं। खून की कमी हो रही है। पता नही कितनी बड़ी तो पर्ची पकड़ा देते हैं। अच्छा खिलाओ, कमजोरी है, संभाल नही पा रही। हम तो खुद को भी संभाल लेते थे,

बच्चो को भी देख लेते थे और घरवालों के भी सब काम कर देते थे। ये छुईमुई सी बहु के नखरे तो इनके घरवाले ही संभाले। हम से तो न होती इन नखरेवालीयो की सेवा।” सरिता जी तो जैसे अपना दुखड़ा ही रोने बैठ गयी।

“मायके वाले आये थे, हम पर नाम लगाने लगे, ये डॉक्टर ठीक नही कर पा रही तो किसी और को दिखाओ। अरे हम कहाँ धक्के खाते रहे। इन बहुओं को तो न ठीक होने की बीमारी है। ” सरिता जी तो अब खुल।के ही बोलने लगी।

नीना जी और सीमा जी उनकी कही बातों को सुन रही थी। 

“अरे अभी तो बेटी ही जनी  है ये हाल है , अभी तो दूसरा बच्चा भी सोचना है जल्दी” सरिता जी ने कहा।

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“जी जरूर, अब विदा दीजिए चलते हैं, देर हो रही है” कह कर सीमा जी उठ गई और नीना जी भी उनकी देखा देखी पीछे पीछे चल पड़ी।

“अरे रुकिए ना, चाय तो पीते” सरीता जी ने दोनो की और देखते हुए बोला। 

“नही फिर कभी, अभी तो काम है।” नीना जी ने चलते हुए ही विदा ली।

“समझी अब, क्यों गयी बहु मायके” सीमा जी ने नीना से कहा।

“कैसी सोच है, अपनी भी 3 बेटियां है। उन्होंने ने भी बेटी ही जनि हुई है। पर बेटी की बेटियों को तो बहुत प्यार करती हैं। उनकी तो बहुत तारीफ करती हैं।” नीना जी ने कहा।

“पर ये तो बेटे की बेटी हुई है ना, यही दुनिया का असली रग है।” सीमा जी ने उत्तर दिया।

दोस्तों, जी माँ अपनी बेटियां अगर बच्चा पैदा करे तो अपनी बेटी की स्वास्थ्य की चिंता पहले करती है और नाती या नातिन क्या हुआ ये बाद में जानने वाली वही माँ, बहु का बच्चा होने पर यदि लड़की हो तो अगले बच्चे के बारे में पहले ही योजना बनाने लगती है, जहां बहु बच्चा होने के बाद अपने स्वास्थ्य से जूझ रही होती है वह एक माँ होते हुए भी इस बात को एकदम नज़रअंदाज़ कर देती है। 

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आपकी मित्र

पूनम बगाई

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