बेटी का ससुराल – शुभ्रा बैनर्जी

मधु की छोटी ननद की शादी तय हो गई थी।सभी रिश्तेदारों के पास जा-जाकर कार्ड देने शुरू हो चुके थे।घर के बड़े पिता-बड़े फूफा,मामा, चाचा,के घर-घर जाकर कार्ड मधु ही गई थी,पति सुनील के साथ।सारे रिश्तेदार आस-पास ही थे।शादी की तैयारियां भी शुरू कर दी गईं थीं।

मधु ने सास(उर्मिला जी)से पूछा”मां,मेरी मां को कार्ड देने कब जाऊं?उन्हें भी तो तैयारी करनी पड़ेगी ना शादी में आने की।”सास ने सीमित शब्दों में कहा” अभी समय बहुत कम बचा है बहू।अभी तुम्हारी जरूरत हर पल यहां है।ऐसा करो ना,डाक से भिजवा दो और फोन पर नियंत्रण मैं दे दूंगी।कम समय में सब हो जाएगा।”

मधु तो मन ही मन मां से मिलने के लिए बेचैन हो रही थी।जिस विवाह यज्ञ में आहुति देने उतरी थी,उसके नियम तो जानती ही नहीं थी।सास ने पूरी जिम्मेदारी मधु को सौंप दिया था प्रेम से।उसी विश्वास और प्रेम के बंधन में बंधकर वह ननद की शादी सकुशलता के साथ निर्विघ्न संपन्न करवाना चाहती थी।

कार्ड तो पोस्ट से सुनील ने भिजवा दिया।अब मधु ने फोन पर मां को समझाना शुरू किया”ऐसे ही कुछ भी साड़ी लेकर मत आना।ये लोग इज्ज़तदार हैं।समाज में इनका बहुत नाम है।भाई -बहनों के लिए भी दो -चार अच्छे कपड़े खरीद लेना मां।यहां सब नजरें गड़ाए रहेंगे,

कि बहू के मायके वाले क्या पहने हैं?कैसा रहने सहन है।तुम भी अच्छी साड़ियां ड्राई क्लीनिंग करवा लेना।और हां ननद जब शादी के एक दिन पहले खाना खाती है ,तो साड़ी तुम्हारी तरफ से आएगी।एक मंहगी साड़ी खरीद लेना।गिफ्ट में क्या दोगी?, सोचा है कुछ? “

मां सदा तैयारी रखती थी।एक हफ्ते के अंदर ही मां भाई-,बहनों को लेकर आ गईं थीं।आते ही नहाकर रसोई में जाने लगी जब,मधु उन्हें खींचते हुए अपने कमरे में ले गई।जल्दी से बैग खोला,तो अवाक रह गई।अपनी बेटी के पुण्य में घी का आव्हान करने आईं थीं वे।बैग में से एक पोटली पर नजर पड़ी तो, मधु ने मां की तरफ देखा आश्चर्य से।

मां ,मधु का सवाल समझ चुकी थी।बोलीं”बेटी के ससुराल में आईं हूं,पहली बार मेरी बेटी ने  ननद की शादी की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली है।तो मैं भी तो मां का फर्ज पूरा करूंगी न।

ये छोटे-छोटे झुमके लाई हूं।एक बेटी का आशिर्वाद बिना सोने के कहां होती है।मैं नहीं दूंगी सोना, तो यहां नाते-रिश्तेदार तुझे ही बात सुनाएंगे।देख अच्छी लगेगी ना।छोटी सी ही खरीद पाई।क्या करूं इस समय कुछ पुराने जेवर भी तो नहीं हैं,कि उन्हें बेचकर कुछ बनवा पाती।

और देख पांच साड़ी,पेटीकोट,सिंदूर दानी(चांदी की)सब लाई हूं।तेरे इज्ज़तदार ससुराल में तेरी मां ,तुझे छोटा होने कैसे दे सकती है।”,

मां की बात सुनकर मधु उनसे लिपटकर खूब जोर से रोने लगी।तुम इतनी कम कमाई में भी मेरी इज्जत की बात सोचती हो मां।सब उधार लिया है ना?कैसे पाओगी?”,

” रुक तो, उधार पट जाएगा,पर शादी के समय के उपहार सभी देखते हैं।तू बाकी के काम देख।और यह ले,सस्ते मिल रहे थे टमाटर,मैंने सॉस बना दिया है।बगल वाली आंटी से चिप्स,पापड़, मुरब्बा,अचार भी बनवा लाई ।चार मेहमानों के बीच काम आ जाएंगे।मधु देख कर बता ना,साड़ी और सारा सामान ठीक है ना।ससुराल वालों को बुरा तो नहीं लगेगा?तुझे ताने तो नहीं सुनने पड़ेंगे ना किसी से ?”

” नहीं मां,तुमने हमेशा मेरा मान बढ़ाया है।पापा के जाने के बाद से तुमने हम सभी को पढ़ाया।ख़ुद भी ट्यूशन पढ़ाने जाती थी।तुमसे सीखना चाहिए लोगों को कि कैसे धनवान ना होकर भी मन बड़ा रखा जा सकता है।चलो अब हांथ मुंह धोकर चाय पी लो।”

मधु की ननद को पटे पर खाना खिलाने बैठाया गया।सभी रिश्तेदार उसी समय उसके सर पर धान-दूरबा देकर आशीर्वाद कर रहे थे,साथ ही अपने उपहार भी दे  रहें थे।मां का भी अवसर आया।

पिछले बीस सालों‌से एक विधवा होकर पांच‌ बच्चों को‌ पाला‌ पोसा।सभी‌को‌ शिक्षा का‌ मंत्र दिया,ताकि तुम्हारे बच्चे अपने पैरों‌ में‌ खड़े हो सकें।और क्या कर‌सकती थी तुम मां।मां आशीर्वाद तो दे दीं,पर उपहारों की चकाचौंध में‌ शायद,उनका झुमका फीका लगता ।

मधु ने जब पूछा ,तो बोली “बाद में दे दूंगी ,जब बड़े आस पास नहीं होंगे ।” 

रिश्तेदारों से बचते बचाते मां ने वो झुमके ननद  के हांथ में देकर रुआंसी हो गईं वे।अगले दिन ही‌ ननद की शादी होनी थी।घर की सभी बहुएं सज रहीं थीं, रिश्तेदार भी उतावले दिख रहे थें।मधु के ढेर काम थे।छोटी ननद की बारात आने ही वाली थी।तभी किसी रिश्ते की चाची ने मधु के कान‌ ,

गले और कंगन देख कर कहा”ये असली तो नहीं लग रहें हैं।क्यों बहू-नकली गहने पहनकर शादी में बैठोगी,तो लोग क्या कहेंगें?ननद के ससुराल वाले क्या सोचेंगें।अरे अभी दो साल ही तो हुएं हैं तुम्हारी शादी को।तो गहने क्या लाकर में रखा है,या मां ने ही गायब कर दिया होगा अपने पास।”

इससे पहले की मधु कुछ कहती,मां  दूसरे कमरे से निकल कर लगीं दहाड़ने।पूरे तोलों का हिसाब बता दिया उन्होंने,फिर मधु की ओर मुड़कर पूछीं”क्यों रे!कहां हैं तेरे जेवर।कलकत्ता से बनवाई थी।नानी के साथ जा-जाकर।तू नकली पहनकर मेरी बेइज्जती करवा रही है।बुला अपनी सास को, उन्होंने भी तो देखें है ना तेरे जेवर।”

मधु को तो सांप सूंघ गया।सोचा था शादी शांति से निपट जाए एक बार,फिर मां को गहनों का सच बताएगी ।अब तो लेने के देने पड़ गए।आकर आखिर में मोर्चा संभाला सास ने” दीदी,गहनों की पालिश करना जरूरी था। इसलिए हमने सुनार‌  को‌

बहुत पहले‌ ही दे‌ दिया था,अब तक तो हो जाना था।मुआ ऐन‌ वक्त पर दगा दे दिया।किसी पारिवारिक शादी‌ में चला गया,तभी मधु के गहने नहीं आ‌ पाए।”

सास की बातों से माहौल शांत हुआ।मधु पूरा दिन इधर से उधर चकरघिन्नी की तरह घूम रही थी।मां के पास बैठने की फुर्सत ही नहीं मिली।

देखते-देखते बारात द्वार पर आ गई।दूल्हे के घर वालों का मधु से ही ज्यादा परिचय था,तो हर बात के लिए मधु को आवाज लगाते।कैटरिंग उस जमाने में इतनी विकसित तो थी नहीं।दामाद को मिठाई -पानी,उनके बुजुर्गों को अपने हाथों से खाना परोसना पड़ा मधु को(रिवाज था).अब कैटरर वालों ने बर्तनों की गिनती करनी शुरू की।ज्यादातर रिश्तेदार तो शादी देखने में व्यस्त थे।आखिर मधु के दो भाई और बहनों ने दीदी को समस्या से निकाला।वे लोग ज्यादा इज़्जत दार नहीं थे ना। आर्थिक स्थिति ही तो तय करती है इज़्ज़त का मापदंड।

विदाई ‌के समय छोटी ननद को अपनी मां के साथ रोते हुए बात करते देखा तो,ठगी रह गई मधु।सोचने लगी कि कहीं गहनों की खोजबीन ननद से तो नहीं कर रही मां।

ननद तो मधु की बहुत अच्छी थी।विदाई के बाद इसी संशय में थी कि अभी सबके सामने अपनी बेटी के लिए बोले गए अपशब्दों का जवाब देंगी मां।तभी मां ने समधन को बुलाया और कहा”दीदी,आपके पति और बेटा (कमाऊ) रहते हुए भी एक बेटी की शादी करने में इतनी उलझनों का सामना करना पड़ा।

मेरे बारे में सोचिए।कम उम्र में विधवा हो गई थी।मेरी मधु बड़ी बेटी नहीं ,बेटा बनकर संभाली हम सभी को।नानी ने थोड़ा-थोड़ा जोड़कर उसके गहने बनवा दिए थे।जितनी सामर्थ्य थी,उतना ही दे पाए।जानती हूं,सरकारी नौकरी वाले आपके बेटे को बहुत सारा दहेज मिल सकता था,फिर आपने हमारे घर क्यों रिश्ता किया।

कुछ नहीं दे पाने की बात तो पहले ही कह चुके थे हम।हम शायद आपकी बराबरी में नहीं हैं,तभी आपके रिश्ते दारों ने मेरी बेटी और मुझे गहनों के ताने मारे।एक मां का कलेजा भी तो फट रहा था बेटी को नकली गहने में देखकर।

अब समझ आया ,यह विवाह बेमेल है।आप लोग सामर्थ्य वान है तो इज़्जत दार भी हैं।हमारे पास असली पूंजी तो मधु ही थी,हमने उसे आपको दिया।जो बेटी अपनी मां से छिपाकर ननद की शादी के लिए अपने गहने(थोड़े से ही सही)बेच सकती है,उसकी रही सही इज़्जत भी तो गई अब।आप जैसे इज़्ज़त दार लोगों के घर में गरीब घर की बेटी सामंजस्य कैसे बना पाएगी?हमें माफ कीजिए।हम आपके रिश्तेदार बनने के लायक नहीं।ना ही आप जैसे इज़्ज़त दार हैं हम।”

” चलो मधु ,अपने घर चलो।हो गई ननद की शादी।अब तुम्हें हीन भावना से ग्रस्त होकर नहीं रहना होगा यहां।”मां दृढ़तापूर्वक मधु से भी बोली।

तब ससुर जी ने हांथ जोड़कर कहा” बहन जी,आपकी बेटी से ही हमारे घर की इज्ज़त बची है आज। रिश्तेदारों ने वादा तो किया था पर किसी ने पैसे नहीं दिए ऐन समय पर।तब इसी ने अपने सारे गहने बेचकर छोटी के लिए गहने खरीदी।आपकी बेटी का मन बहुत बड़ा है।असली इज्जत दार तो आप हैं,

जिन्होंने पति को खोने के बाद भी अकेले बच्चों को पढ़ाया,ओर जीवन के बहुमूल्य पाठ सिखाए।अपने रिश्तेदारों के साथ -साथ हम भी कुसूरवार हैं कि आपसे पूछा भी नहीं,और बताया भी नहीं।जल्दी से जल्दी हम बाप बेटे मिलकर बहू रानी के

अंग को सोने से भर देंगें।हम भी आप लोगों को गरीबी के दायरे में रखकर ही अब तक सम्मान देते थे।आज आपकी बेटी ने खुद को हम सब से बहुत बड़ा बना दिया।छोटी ना होती उम्र में,तो पैर पड़ता ऐसी बेटी के,और ऐसी मां की शिक्षा के।”,

मधु अब मां को रुकने के लिए मना ली।

शुभ्रा बैनर्जी 

#इज्ज़तदार

error: Content is protected !!