बेटी का दर्द – रमेश कुमार “संतोष” : Moral Stories in Hindi

जब से डाक्टरो ने केस को दूसरे शहर  के बडे अस्पताल में दिखाने के लिये कहा है तब से उन के भीतर डऱ सा बैठ गया हैं | कुछ भी अच्छा नही लग रहा है |घर में जो  भी नगदी थी ले कर पत्नी के साथ दूसरे शहर के अस्पताल में पहुंच गये यहां उन की बेटी को दाखिल किया हुया था |

डाक्टर संतोष जनक उत्तर नही दे पा रहे थे |और न ही मिलने दिया जा रहा था | लड़की के पति के अतिरिक्त उस के सास  ससुर भी आये हुए थे सब बाहर बैठे थे |

वह हंसने का प्रयत्न करते परन्तु भीतर की बेचैनी टिकने नही दे रही थी वह कभी उपर जाते, कभी नीचे, कभी बाहर,  कभी बरामदे में ….कही भी मन टिक नही रहा था | मिलने वालो से वह हंस कर बात करते परन्तु भीतर की

हलचल को महसूस किया जा सकता था|

कितनी बोतले खून की……ग्लूकोस की ?  कोई गिनती नही थी.  इन्जैक्शन पर इन्जैक्शन लगाये जा रहे थे..|

यह सिलसिला कितने दिन चलता रहा .| कभी रात को घर लौट आते  कभी वह वहां ही रूक जाते |

आखिर एक दिन डाक्टरो ने आपरेशन करने का फैसला कर लिया साथ में यह भी कह दिया कि हम अपनी ओर से प्रयास करेगे कि सब ठीक ठाक हो जाए…|

उस रात वह सो नही पाये थे .पत्नी हौसला देती थी परन्तु वह पत्नी की मानसिकता को भी महसूस करते है वह जानते है कि नींद उसे भी नहीं आ रही | पत्नी ने पति को कहा था ” सब ठीक होगा कल निकलने वाला सूरज खुशियां ले कर आये गा विश्वास करो सब ठीक होगा.. | “

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“काश तुम्हारी बात ठीक हो “

“हां सब सच होगा….मेरा मन कहता है. .

कल की शाम खुशियों से भरी होगी…”

“अब सोने का प्रयत्न करो “

लाइट बंद कर दी गई  थी। अंधेरे में दोनो की आँखें कितनी भीगी थी कोई जान नही पाया था.|

बेटी के लिए प्यार भीतर तक के दर्द को महसूस किया जा सकता है |

सुबह होते ही वह अस्पताल पहुंच गए थे| पत्नी ने नाश्ता  पैक कर लिया था |पति को भी  नाश्ते के लिये जबरदस्ती मनाया था |

दूसरे लोग भी पहुँच गए थे| बेटी को आपरेशन थेयटर ले गए थे| एक दूसरे को देख कर हंसने का प्रयत्न कर रहे थे|

इतने में अन्दर से समाचार आया.. |  “

–बेटा हुआ है

सब एक दूसरे को बधाईयां देने लगे..,गले मिलने लगे., फोन की घण्टियां बजने लगी थी बधाईयो का सिलसिला जारी था सब के चेहरे खुशी से लाल हो रहे थे..

लड्डूयो के डिब्बे आ गये थे…

परंतु पिता और मां की आँखें अभी भी कुछ तलाश रही थी ।

उन का दिल अभी भी धड़क रहा था शरीर में एक अजीब सी कंपकंपी दौर रही थी उनके कान बेटी के ठीक होने के

समाचार सुनने को बेताब थे…. ।

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तभी एक और बेटे होने का समाचार आया….सब खुशी से नाचने लगे |दादा दादी को…,बधाईयों का सिलसिला जारी था …. ।

उन दोनो के चेहरे अभी भी कुछ तलाश रहे थे..

वह हिम्मत कर के अंदर गए आपरेशन थेयटर से बाहर निकल रही नर्स से बेटो की मां के बारे में पूछा….

–आप उस के पिता है न…

—जी

—तभी……, हां अभी होश में नहीं है. परंतु खतरे से बाहर हैं  ।

उन्होंने दोनो हाथ जोर कर शुक्रिया अदा किया फिर उपर देखते हुए परमात्मा का शुक्रिया कहा..

—कोई घबराने की बात तो नहीं है न.?

—-सब ठीक होगा..।

पूरे एक घण्टे के पश्चात जब डाक्टर के माध्यम से समाचार आया कि मां और बच्चे दोनो खतरे से बाहर है तो उन का चेहरा खुशी से लाल हो गया है आखों में आंसू

थम नहीं रहे थे । खुशी में अब भी उन की टांगें कांप रही थी ।

कांपती आवाज में पत्नी को बाहों मे भर कर कहां…

—नानी को बधाईयां….तुम नानी बन गई हो….

—-आप भी तो नाना बन गए……

—–हांं मै भी नाना बन गया हूँ……

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रमेश कुमार “संतोष”

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