बहुरेंगे दिन – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ आइए माँ ।” बहू की आवाज़ सुन कर जानकी जी अपनी आँखों में बह आए आँसुओं की हल्की सी बूँदाबाँदी को अपनी उँगलियों से पोंछते हुए अपनी चाल तेज कर दी

बहू लतिका उनका हाथ पकड़कर चल रही थी।

“बहू भीतर बहुत लोग होंगे… सब मेरी घरेलू भाषा समझेंगे भी नहीं ऐसे में प्रतीक के ऑफिस के लोगों को मुझे यहाँ नहीं बुलाना चाहिए था ।” डरते डरते जानकी जी ने कहा 

“ कुछ नहीं होगा माँ… सब प्रतीक की माँ से मिलने के लिए व्याकुल है उससे ज़्यादा तो आपका बेटा आपको यहाँ देखकर आश्चर्यचकित रह जाएगा ।” लतिका ने कहा

वो दोनों प्रतीक के केबिन के पास पहुँचे ही थे कि चपरासी ने आदर पूर्वक दरवाज़ा खोल कर उनका अभिवादन करते हुए अंदर आने का इशारा किया 

प्रतीक का केबिन फूलों और ग़ुब्बारों से सजा हुआ था… ये सब देख कर जानकी जी की आँखें बरबस छलक उठी

प्रतीक अपनी कुर्सी से जल्दी से उठ कर माँ के चरण स्पर्श किए और अपनी कुर्सी पर बिठाते हुए बोला,” माँ इस तरह कुर्सी पर मैं बैठूँगा ये सपना तुम देखती रहती थी लो आज तुम्हारा सपना पूरा हो गया अब तुम भी अपने बेटे की कुर्सी पर बैठो ।” 

“ तुम्हें कैसे पता चला हम आने वाले हैं ये तो सरप्राइज़ था? “लतिका आश्चर्य से पूछी

प्रतीक सामने स्क्रीन को दिखाते हुए मुस्कुराते हुए बोला,” बाहर सब पर नज़र भी रखना होता है मैडम ।” 

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 जानकी जी की आँखों में ख़ुशी के आँसू झिलमिला उठे उनके बेटे का इतना बड़ा केबिन… इतना मान सम्मान…ये सब ही तो वो चाहती थी अपने बेटे के लिए आज उसे सब हासिल हो रहा है 

तभी केबिन के बाहर कुछ लोगों के आने की आवाज़ सुनाई दी… चपरासी ने भीतर झांक कर प्रतीक से उनके आने की इजाज़त माँगी और सबको अंदर आने के लिए कहा

ऑफिस के सारे स्टाफ़ केबिन में आ चुके थे…. टेबल पर एक स्टाफ़ ने बड़ा सा केक सजा दिया 

किसी के  हाथ में बुके …तो किसी ने फूल तो किसी ने तोहफ़ा पकड़ा हुआ था…. आज उनके बॉस का जन्मदिन जो था।

जानकी जी हतप्रभ सी सब देख रही थी… बेटे का ऐसा जन्मदिन…. उन्होंने तो आजतक नहीं मनाया था।

जानकी जी को सभी ने नमस्कार किया और बोलने लगे,” मैडम सर बहुत अच्छे हैं सब का बहुत ध्यान रखते हैं… किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं चाहे वो किसी भी स्तर का कर्मचारी ही क्यों ना हो… ये सब संस्कार तो आपने ही उन्हें दिए होंगे इसलिए आज के दिन आपका यहाँ होना और हम सब का आपसे मिलना ये बहुत सौभाग्य की बात है ।”

जानकी जी निशब्द थी उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था वो इन सबसे कहे तो क्या कहें फिर भी हिम्मत कर के सबके सामने हाथ जोड़कर उनका अभिवादन स्वीकार करते हुए बोली,”जब आपके जैसे लोग मेरे बेटे के साथ है मेरा बेटा हमेशा ऐसे ही सबकी मदद करता रहेगा… मुझे उम्मीद है मेरे बेटे में कभी भी इस बात का ग़ुरूर नहीं होगा कि वो आप सब का बॉस है … वो एक साधारण इंसान है जिसे आप सबने विलक्षण बना दिया है ।”

सब से मिलकर जानकी जी बहू लतिका के साथ केक कट होने के बाद हल्का नाश्ता कर के घर आ गई ।

कमरे में जाकर पति की तस्वीर को देख हाथ जोड़ते हुए बोली,” आप सच कहते थे जी हमारा प्रतीक ज़रूर एक दिन सबके दिलों पर राज करेगा… बहुत नेक बनेगा… आज आप भी होते तो बेटे को देख उसपर फ़ख़्र करते।”

कहते कहते जानकी जी की आँखों में आँसू आ गए…. 

ये आज का दिन उन्हें जाने कितने बरस पीछे की ओर खींचने लगा था…. वो पुराना कुछ भी याद नहीं करना चाहती थी पर कहते हैं ना जो घाव बार बार कुरेदा जाए वो ठीक कैसे हो सकता है….

आज से पैंतीस वर्ष पहले ही प्रतीक का जन्म हुआ था… जानकी जी की पहली संतान…. पति रमाकान्त जी ऐसे ही किसी प्राइवेट कम्पनी में काम करते थे….गृहस्थी ठीक से गुजर रही थी… प्रतीक जब तीन साल का हुआ उसे स्कूल भेजने की जल्दी करने लगे …. संयोग से एक स्कूल में दाख़िला भी हो गया…चार साल में ही प्रतीक ने पढ़ाई के प्रति अपनी रुझान दिखा दिया

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रमाकान्त जी खुद प्रतीक को स्कूल छोड़ने जाते और लेकर आते…कम्पनी के पास ही स्कूल था तो उन्हें परेशानी भी नहीं होती थी…. एक दिन रमाकान्त जी को ऑफिस के किसी काम से उसी शहर में कहीं दूर जाना पड़ा छुट्टी के वक़्त तक वो प्रतीक को लेने नहीं आ पाए…. छोटा सा प्रतीक पिता के इंतज़ार में उधर ही खड़ा रहा …. छुट्टी के लगभग दो घंटे बाद ऑफिस का एक आदमी घबराया हुआ आया और प्रतीक को साथ चलने के लिए बोला।

प्रतीक जिसके पिता ने हिदायत दे रखी थी किसी अजनबी के साथ नहीं जाना …. उसने पहले जाने से इंकार कर दिया…. बाद में उस व्यक्ति ने जिसका नाम दयाल था जिसे प्रतीक भी कई बार पिता के ऑफिस में देख चुका था वो प्रतीक से बोले,” बेटा अभी आपको जल्दी से घर जाना है आपकी मम्मी आपका इंतज़ार कर रही है मुझपर भरोसा रखो।” 

स्कूल गार्ड से दयाल ने कुछ कहा और वो भी प्रतीक से भरे गले से बोला,” बेटा आप घर जाओ… आपके पापा आएँगे तो उन्हें बता दूँगा ।”

प्रतीक जब घर आया यहाँ का नजारा ही बदला हुआ था…. एक कमरे के किराए के मकान के बाहर रमाकान्त जी का शरीर पड़ा था और जानकी जी दहाड़े मार मार कर रो रही थी…. छोटे से प्रतीक के लिए ये सब चौंकाने वाला था पर उसने गाँव में अपने बाबा को जब ऐसे देखा था तो लोगों ने कहा था तेरे बाबा अब इस दुनिया से चले गए…. बस यही बात उसके दिमाग़ में रह रहकर कर कौंध रही थी…. वो चिल्लाते हुए अपनी माँ के गले लगा और फिर पिता को झकझोरते हुए उठाने की कोशिश करने लगा।

“ चले गए तेरे पापा हमें छोड़कर…. जाने कौन कमीना इंसान दारू पीकर ट्रक चला रहा था पैदल चलता इंसान उसको नज़र नहीं आया… चढ़ा दिया उसने …ले गया तेरे पापा को।” कहते कहते जानकी जी प्रतीक को सीने से लगा दहाड़े मारने लगी

परिवार के सदस्यों के साथ रमाकान्त जी का दाह संस्कार कर तेरहवाँ भी निपटा दिया गया अब सवाल था जानकी जी और प्रतीक का क्या होगा ….?

कहने को तो भरापुरा परिवार होता है… इतने लोग होते है पर ज़िम्मेदारी निभाने के समय सब चुप रह जाते हैं….. सबने चुप्पी साध रखी थी…. ऐसे में जानकी जी की बड़ी ननद चारुलता ने कहा,” रमाकान्त तो चला गया…उसकी नौकरी भी चली गई…ये किराए का घर भी अब जाएगा ऐसे में इन दोनों के रहने खाने का तो सोचना होगा… भैया आप क्या कहते हो?” 

बड़ा भाई रमेशचन्द्र मौन खड़ा था वो कुछ कहता उससे पहले तपाक से उसकी बीबी ने मुँह खोला और बोली,” हमारे घर में कौन सा जगह है… और कमाई तो आप सब को पता ही है… हम अपना रहना खाना देखे कि दूसरों का…. देवर जी क्यों चुप हैं उन्हें तो बहुत स्नेह था ना भैया भाभी से वो क्यों नहीं ले जाते उनका घर तो हमसे बड़ा ही है ।” 

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देवर उमेश एक बार भाभी और प्रतीक की ओर देखा एक बार अपनी गर्भवती पत्नी की ओर जो तीन साल की बेटी के साथ खड़ी थी… उसने जैसे कुछ इशारा किया और उमेश ने कहा,” भाभी आप हमारे साथ रहेंगी… घर कैसा भी हो हम उसमें रह लेंगे ।” 

जानकी जी भी उमेश से स्नेह रखती थी ऐसे में उन्हें कुछ सूझ भी नहीं रहा था….उन्होंने अपने माता-पिता की ओर देखा… उन्हें उम्मीद थी शायद माता-पिता ही उनके लिए कुछ कर पाए पर वो लाचार से खड़े रहे बेटी को पुनः अपने घर ले जाकर रखना शायद उनके लिए सही नहीं था… जानकी जी ने देवर की बात मान ली और वो वहाँ से चली गई।

प्रतीक की पढ़ाई के लिए वो चिंतित हो रही थी और देवर अपनी तरफ़ से कोई पहल नहीं कर रहे थे… एक दिन जानकी जी ने हिम्मत करके कहा,” उमेश प्रतीक को किसी स्कूल में दाख़िला करवा देते वो सरकारी स्कूल में भी पढ़ लेगा पर घर में रहेगा तो कभी कुछ नहीं बन पाएगा… इसके पिता चाहते थे उनका बेटा बड़ा अफ़सर बने ।”

उमेश कुछ कहता उसके पहले ही उसकी पत्नी यानि की जानकी जी देवरानी सुजाता ने कहा,”ओहहहो बहुत बड़ा अफ़सर बनाना है बेटे को…अरे अभी खाने पीने को मिल रहा है यही बहुत है…एक तो मेरा काम बढ़ गया है उपर से इनके बेटे को स्कूल भेजना… स्कूल की फ़ीस… कॉपी किताब, स्कूल ड्रेस ये सब क्या मुफ़्त में आता है?”

ये तीखे बोल जानकी जी की आत्मा को कचोट गए वो कुछ ना बोली रोते हुए पीछे स्टोर में बने अपने कमरे में चली गई जहाँ प्रतीक सो रहा था

माँ को आया देख कर पूछा,’ माँ चाचा ने क्या कहा मैं कब से स्कूल जाऊँगा?” 

बेटे की बात सुन जानकी जी और जोर से रोने लगी…जाने कहाँ से उनमें हिम्मत आई और बोली ,” तेरी माँ अभी इतनी कमजोर नहीं हुई है जो तेरी पढ़ाई ना करवा सकें…. कल हम पास के स्कूल जाकर पता करेंगे ।”

दूसरे दिन जानकी जी स्कूल गई वहाँ सब पता करने के बाद प्रिंसिपल से बोली,” मैडम मेरा बेटा पढ़ने में बहुत होशियार है …आप उसे एडमिशन दे दीजिए वो आपको कभी निराश नहीं करेगा।”

पता नहीं जानकी जी की बात से प्रभावित होकर या प्रतीक के चेहरे पर पढ़ाई को लेकर चिंता देख प्रिंसिपल ने कहा,” देखिए नया सेशन तो कब से शुरू हो चुका है इसलिए एडमिशन…. अच्छा आपके पास इसके पिछले स्कूल  की रिपोर्ट कार्ड होगी तो वो दिखा दीजिए ।”

जानकी जी ने सब कुछ प्रिंसिपल को देते हुए कहा,” देख लीजिए सर।” 

प्रिंसिपल ने जब रिज़ल्ट देखे तो वो आश्चर्यचकित हो गए…. सब में उसके पूरे के पूरे नम्बर… वो जानकी जी से बोले,”ये तो बहुत होनहार है…. मैं एक बार अपने टीचरों से चर्चा कर के इसके एडमिशन की बात करता हूँ एक टेस्ट लेंगे… उम्मीद है ये सारे सवाल हल कर देगा तो हम एडमिशन ले लेंगे ।”

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प्रतीक का एडमिशन तो जानकी जी ने अपने बचाए हुए पैसों से करवा दिया पर अब आगे….

इसके लिए जानकी जी ने सबसे पहले अपने लिए एक काम की तलाश की…ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी कि कहीं नौकरी कर पाती ऐसे में उस स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें सलाह दिया कि वो चाहे तो उनके घर पर घरेलू काम कर सकती है और उनके घर के पास ही एक कमरा है उसमें रह सकती हैं चूँकि उनकी माता जी चलने फिरने में लाचार है और पत्नी भी काम करती है तो उनकी सही देखभाल नहीं हो पाती आप उनके साथ रहेंगी तो उन्हें लेकर हमारी चिंता कम हो जाएगी ।

जानकी जी जब देवर का घर छोड़कर जा रही थी तो सबने बहुत सुनाया पर वो समझ गई थी बेटे के भविष्य के लिए अब आँसू नहीं बहाना है जी कड़ा करके ही कुछ सोचना होगा ।

कुछ समय तक वो प्रिंसिपल के उधर ही रही जब वो लोग वहाँ से चले गए तो फिर से किराए का मकान लेकर घर घर जाकर खाना बनाने का काम शुरू कर दी … माँ बेटे का जीवन चल सकें इतनी मेहनत वो करने लगी थी 

समय गुजरता गया प्रतीक अपनी पढ़ाई पर पूरा फ़ोकस करता ताकि माँ के दुख भरे आँसुओं को मोती में बदल सके

वो पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में लग गया…एक दिन वो माँ से बोला,” माँ मुझे नौकरी मिल गई है…पर वो दूसरे शहर में है… तुम मेरे साथ चलोगी ना?” 

“ बेटा अभी तू जाकर नौकरी ज्वाइन कर…. रहने का इंतज़ाम कर उसके बाद साथ चलूँगी….।” जानकी जी ने कहा 

प्रतीक ने छोटे स्तर पर नौकरी शुरू कर दी… और घर लेकर माँ को ले आया….कॉलेज में साथ पढ़ने और उसे समझने वाली लतिका उसकी जीवनसंगिनी बन जानकी जी और प्रतीक की ज़िन्दगी में आ गई

जानकी जी अब भी कभी कभी आँसू बहाया करती थी… उन्हें लग रहा था बेटे को जो मुक़ाम हासिल करना चाहिए था वो अभी भी बाक़ी है …

एक दिन प्रतीक घर आया और चहकते हुए बोला,” माँ मेरा प्रमोशन हो गया है और इस पूरे एरिया का मैं हेड बन गया हूँ।”

जानकी जी ये सुनकर अपने कान्हा के आगे ज्योत जलाकर उन्हें धन्यवाद करने के बाद पति की तस्वीर के आगे हाथ जोड़कर बोली,” मुझे तो जो दुख देना था दे दिया बस अब अपने बेटे को खुश रखना उसे हमेशा आगे बढ़ने में उसकी मदद करना।”

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नए ऑफिस में जाने के कुछ समय बाद ही प्रतीक के जन्मदिन का निमंत्रण ऑफिस की तरफ़ से 

लतिका और जानकी जी को मिला जो प्रतीक के लिए सरप्राइज़ होने वाला था …

आज प्रतीक को इस रूप में देखकर जानकी जी फूली नहीं समा रही थी वो अपने ही ख़यालों में खोई हुई थी आँखों से गंगा जमुना की धार सुख दुख के संगम जैसे बहे जा रहे थे 

“ माँ माँ … कहाँ खोई हुई है…ये लीजिए चाय।” लतिका की आवाज़ सुन जानकी जी उसकी ओर देखते हुए ना में सिर हिलाते हुए बोली,” कहीं नहीं बस आज प्रतीक को सब इतना मान दे रहे थे ये देख कर जी खुश हो गया ।”

“ फिर आँखों में ये आँसू?” जानकी जी की आँखों में छलके आँसुओं की ओर इशारा करते हुए लतिका ने पूछा 

“ कुछ नहीं बहू ये बस पुरानी बातें याद कर बह निकले… अक्सर सोचती थी जाने हमारे दिन कब बहुरेंगे … अब जाकर हमारे दिन बहुर रहे है।”जानकी जी साड़ी के पल्लू से आँसुओं को पोंछते हुए बोली 

“ माँ मुझे सब पता है…. आप दोनों की ज़िन्दगी में आँसुओं की जगह …पर अब ये आँसू खुशी के निकलेंगे जो मोती बन कर चमकेंगे….दुख के आँसू दूर हुए अब जो बहें आँसू मोती बनकर ।” कहते हुए लतिका जानकी जी को पीछे से पकड़ कर उनकी गर्दन पर झुक कर गले में बाँहें डालते हुए अपना प्यार जताने लगी

मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#आँसू बन गए मोती

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