बहू यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है – सीमा सिंघी : Moral Stories in Hindi

 लोकेश जी अपनी पत्नी को दुल्हन बनी देख मुस्कुरा कर कहने लगे। उर्मिला जी आज आप कहां बिजली गिराने जा रही हैं?यकीन मानो आप आज भी उतनी ही खूबसूरत लग रही हैं ।जितनी मैं आपको ब्याह कर लाया था। उस वक्त आप लगती थी। 

लोकेश जी की बात सुनकर उर्मिला जी शर्मा उठी और कहने लगी । छोड़ो जी अब यह छेड़ना और हां आज सोसाइटी में महिला समिति ने साठ से अस्सी वर्ष के बीच की औरतों की दुल्हन प्रतियोगिता रखी है। मैं भी उस में हिस्सा लेने जा रही हूं इसीलिए आज  यह शादी वाला लहंगा और यह सोलह सिंगार किए हैं। 

 उर्मिला जी अब सत्तर की हो चली थी मगर फिर भी कोई उर्मिला जी को देखकर यह नहीं कह पाता था कि वह बूढी हो गई है ।

उनका तन भले ही हल्की झूरियों वाला लिबास पहन चुका था मगर उनका मन आज भी हर छोटे छोटे सुख दुख में बच्चों की तरह उछल पड़ता था । वह बच्चों के साथ बच्ची बन जाती और बड़ों के साथ जब बैठती तो बड़ी बन जाती।

अपनी पूरी सोसाइटी की जान थी उर्मिला जी । उनकी हमेशा की रूटिंग थी। सुबह चार बजे उठ जाना पंछियों को दाना डालना, कुत्ते को रोटी देना, योगा करना, बागवानी करना आदि और फिर तैयार होकर लोकेश जी की और अपनी चाय बनाती और दोनों तसल्ली से पीते। 

तब तक बहू सोनाली भी तैयार होकर नीचे आ जाती थी और बेटा राजीव भी। उर्मिला जी बहू सोनाली के नीचे आने के बाद भी कभी खाली नहीं बैठती थी। वे रसोई में सोनाली की मदद करते रहती थी । कुछ दिनों से उर्मिला जी देख रही थी

कि उनकी बहू सोनाली को उनका हंसना बोलना अच्छा नहीं लग रहा था  मगर वह सोच नहीं पा रही थी कि आखिर सोनाली को उन से क्या तकलीफ हो सकती है ।

खैर आज जैसे ही सोलह श्रृंगार करके उर्मिला जी अपने कमरे से बाहर निकली।  अपनी सास को इस तरह सजी-धजी देख सोनाली तुरंत बोल पड़ी।

हाय राम अब इस उम्र में यही बाकी रह गया है क्या मम्मी जी?? यह आप इतनी सज धज कर कहां जा रही हैं ?? आपको पता है मेरी सब सहेलियां मुझ पर हंसती है। वह कहती है सोनाली तेरी सास तो आज भी बहू बने फिरती है।

तू उनको समझाया कर वह अब बूढी हो चुकी है। उन सब की बातें सुनकर मैं कुछ भी नहीं कह पाती हूं क्योंकि वह सही तो कहती है। अब आप ही बताएं आपको शोभा देता है क्या इस उम्र में इस तरह सजना संवरना?? 

अब उर्मिला जी को सब समझ आ गया था कि इन दिनों सोनाली को उनका हंसना बोलना क्यों नहीं अच्छा लग रहा था। वह फिर अपनी बहू सोनाली को संयम के साथ समझाते हुए बोल पड़ी। क्यों नहीं शोभा देता मुझे ? क्या मैं अब सुहागन नहीं हूं ? या फिर सोलह श्रृंगार करने का मुझे अब हक नहीं है?? 

 यह जरूरी तो नहीं एक उम्र के बाद इंसान को हर चीज में अपने मन को मार लेना चाहिए।  मेरा तन बूढ़ा हो रहा है बहू मेरा मन नहीं और बहू यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है शायद तुम्हें अभी यह मेरी बातें समझ ना आए मगर जब तुम मेरी उम्र की हो जाओगी तो तुम्हें मेरी ये बातें बहुत याद आएगी मगर उस वक्त मैं नहीं रहूंगी

बल्कि मैं तो यही कहती हूं कि तुम भी आने वाले समय में मेरी तरह ही रहना और एक बात सच्चे मन से बताना बहू अगर इसकी जगह आज तुम्हारी मां इस तरह सोलह श्रृंगार करके तुम्हारे सामने खड़ी होती तो क्या तुम उन्हें ये सब कहती जैसे आज तुम मुझसे कह रही हो। 

सोनाली से कुछ कहते नहीं बना । वो एक पल के लिए निशब्द हो गई और सोचने लगी मम्मी जी ठीक ही तो कह रही है अगर अभी मेरी सासू मां की जगह मेरी मम्मी होती तो शायद मैं उनको देखकर बहुत खुश हुई होती तो फिर आज सासू मां को इस तरह देखकर मुझे क्यों तकलीफ हो रही है और मैं अपनी सहेलियों को क्यों नहीं जवाब दे पाई।

इस तरह चुप देखकर उर्मिला जी ने अपनी बहू सोनाली से फिर पूछने लगी क्या सोच रही हो बहू ?? सोनाली ने अपनी नज़रें नीचे करते हुए कहा । आप ठीक कह रही है मम्मी जी। इंसान का तन बूढ़ा होता है मन नहीं अगर हम हर उम्र में खुश रहना सीख लेंगे तो जिंदगी बड़ी आसान हो जाएगी और मुझे अपनी सहेलियों को अब क्या कहना है यह मैं जान गई हूं मम्मी जी। 

आप मुझे क्षमा कर दीजिए । 

अरे सोनाली बहू सास बहू में नो सॉरी नो थैंक्स कहकर उर्मिला जी अपनी बहू से पूछने लगी। अब तो बता दे मैं कैसी लग रही हूं ??

तब सोनाली ने अपनी आंखों का काजल अपनी सास के कान के पीछे लगा दिया और कहने लगी नजर ना लगे मेरी सासू मां को और आप ही फर्स्ट प्राइज लेकर आएगी कहकर अपनी स्कूटी स्टार्ट की और कहने लगी । आइए मम्मी जी कहीं आपको देर ना हो जाए मैं छोड़ देती हूं आपको। जरूर जरूर कहकर उर्मिला जी भी बहू सोनाली के पीछे वाली  सीट पर बैठ गई।

स्वरचित 

सीमा सिंघी 

गोलाघाट असम

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