आखिर सासु मां ने अपना अंतिम तीर यानी की अंतिम वाक्य छोड़ ही दिया, बहु यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है। शांत भाव से सुनते हुए माधवी ने सासू मां के पैर छूते हुए कहा जी मां जी और अपना सामान लेकर कमरे से निकल गई।
भावना जी का एक बेटा और एक बेटी थी। बेटी का विवाह हो चुका था और वह हैदराबाद में रहती थी। उनका बेटा पवन सेल्स में जॉब करता था और अक्सर बाहर ही आता जाता रहता था। माधवी से उसने अपनी पसंद से ही विवाह किया था जो कि भावना जी को पसंद तो नहीं था परंतु अपने पति और पवन की मर्जी के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा था।
भावना जी के पति वर्मा जी के परिवार में उनका भी एक भाई और एक बहन थे। भावना जी कभी भी संयुक्त परिवार में नहीं रही थी। वर्मा जी सरकारी अफसर थे और वह सरकारी मकान में ही रहते थे बाद में उन्होंने अपना भी एक अच्छा घर बना लिया था जिसमें की सेवानिवृत होने के उपरांत वह अपने परिवार के साथ रहते थे। वर्मा जी के भाई और बहन इतने अधिक संपन्न नहीं थे।
भावना जी से छिपा कर वह अपने परिवार की सहायता करते रहते थे। वर्मा जी के दूसरे भाई की पत्नी के पास में ही उनकी माताजी भी रहती थी
इसलिए भी वर्मा जी अपने भाई के परिवार को बहुत सहयोग करते थे उनके दोनों बच्चों को भी वर्मा जी ने कॉलेज में पढ़ने के लिए पैसों से सहयोग दिया और अब उनके दोनों बेटे भी दिल्ली से बाहर नौकरी कर रहे थे।
भावना जी का मन था कि वह अपनी हैसियत के अनुरूप ही अपने पति के दोस्त कमिश्नर साहब की बेटी से अपने पवन का विवाह करेंगे। परंतु पवन ने अपने साथ पढ़ने वाली माधवी को चुना। क्योंकि माधुरी के पिता जी इस संसार में नहीं थे और उसकी माताजी खुद भाई और भाभी पर निर्भर थी इसलिए भाई और भाभी ने दहेज में माधवी को ज्यादा कुछ नहीं दिया।
अतः भावना जी ने कभी भी माधवी को सम्मान नहीं दिया हालांकि माधवी घर में सारा काम करते हुए भावना जी को खुश करने की पूरी कोशिश करती थी। वर्मा जी भी सब कुछ समझते थे परंतु भावना जी के सामने उनकी ना कभी पहले चली और ना ही अब चलनी थी।
उस दिन जब भावना जी पड़ोस के घर में गई हुई थी तो वर्मा जी के पास में एक फोन आया और वह बहुत परेशान हो गए थे। माधवी के पूछने पर उन्होंने बताया कि उनकी माता जी का आंखों का ऑपरेशन होना है और उन उनके छोटे भाई की पत्नी ने भी अभी घुटनों का ऑपरेशन करवाया है। उनका ख्याल रखने के लिए घर में कोई नहीं है। तुम्हारी सासू मां तो जाएंगी नहीं यह तो निश्चित है,
उन्हें तो कुछ कहा भी नहीं जा सकता, समझ नहीं आ रहा क्या करूं? माधवी ने वर्मा जी को विश्वास दिलाया कि मैं चली जाती हूं और मैं दादी मां की सेवा कर लूंगी।
माधवी ने अपनी सासू मां से अपने मायके में एक महीना जाने की इजाजत मांगी। भावना जी ने गुस्सा होते हुए कहा तुम्हारे घर में तुम्हारी किसी को भी जरूरत है ?तुम्हारी मां का ख्याल तुम्हारे भाई भाभी क्यों नहीं रखते? तुम्हारे को कुछ सामान देने की तो जिम्मेवारी उनकी है
नहीं इसके विपरीत अपनी सेवा के लिए तुम्हें बुलाएंगे । कोई जरूरत नहीं है जाने की। परंतु माधवी ने उनकी एक नहीं सुनी और जाने के लिए बाहर निकल गई।
पवन और वर्मा जी भी भी कई बार दादी मां से मिलने के लिए आए थे । पर भावना जी को किसी ने भी कुछ नहीं बताया था।
एक महीना सब की सेवा सुश्रुषा करके पूरे घर से आशीर्वाद इकट्ठा करके जब माधवी वापस पवन के साथ अपने घर आई तो सासु मां के गुस्से और तानों के जवाब में उसने भी यही कहा कि आप सही कह रही हो सासू मां, भगवान सब देखता है। इस घर की बहू होने के नाते भगवान इस घर का कुशल रखे इसलिए मैं भी अपनी जिम्मेवारी समझती हूं और पूरी करती हूं।
मालूम नहीं भावना जी को तब क्या समझ आया लेकिन माधवी के मिलनसार व्यवहार से अब भावना जी का मन भी बदलता जा रहा है। और इस बदलाव के ही कारण दादी मां कुछ दिन रहने के लिए भावना जी के घर में भी रहने आई है।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।
बहु यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है।