बेटा कई दिनों से कह रहा हूं कि मेरा चश्मा टूट गया है। मुझे बहुत दिक्कत होती है और दवाइयां भी खत्म हो गई है। तुम सब इतनी बार बाहर जाते हो, कितनी खरीददारी करते हो लेकिन मेरी जरूरतों को नजरंदाज कैसे कर सकते हो?
सुरेश जी आज बहुत परेशान हो गए थे तब अपने आपको रोक नहीं पाए थे और बोल पड़े।बस इतना ही कहना था कि बेटा जगत बिफर पड़ा “पापा आपसे हमारी खुशी नहीं देखी जाती है और चश्मा बन जाएगा आपका… ऐसा भी कौन सा बड़ा काम रुक गया आपका।”
सुरेश जी की आंखें नम हो गई उनको बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि जगत इतनी बदतमीजी से उनको जबाब देगा और इतना लापरवाही करेगा उनके साथ कि उनकी दवाइयां और जरूरतों के लिए वो उनको ताने मारेगा।
छोटी सी नौकरी में भी मैंने इन बच्चों की खुशी में अपनी इच्छाओं को मारकर इनकी हर छोटी-बड़ी जरूरत को पूरा किया है।एक बार तो महीने भर चीनी बंद कर दी थी चाय की कुछ पैसे बचेंगे तो काम आएंगे।ऐसी औलाद से बेहतर है कि बेऔलाद रहे इंसान और आंखों से आंसू पोंछते हुए कमरे में आकर बैठ गए।
गीता जी को समझ में आ चुका था क्योंकि ऐसे ताने तो वो सुबह शाम बेटे बहू से सुनतीं ही रहतीं थीं पर जगत अपने पिता का अपमान करेगा ये उम्मीद नहीं थी उनको।
सुनिए जी ” आप मेरा चश्मा लगा कर देखिए शायद आपको अच्छी तरह दिख जाएगा और हां पेपर ही तो पढ़ना है,हो सकता है जगत परेशान हो किसी बात से जो उसने ऐसे कह दिया आपको। आखिर कोई ठिकाना भी तो नहीं है ना हमारे पास। कितना समझाया था कि अपना घर नहीं बेचते हैं पर आपने एक ना सुनी मेरी।कम से कम सम्मान से अपने घर में रहते और किसी के आगे हांथ फ़ैलाना नहीं पड़ता।”
“सही कहा गीता तुमने… मैंने कभी तुम्हारी समझदारी की अहमियत नहीं दी बस अपनी मनमानी ही की और सारा पैसा बेटे को दे दिया कि हम सभी मिलकर रहेंगे तो परिवार पूरा हो जाएगा, लेकिन मैं गलत था।”
कोई बात नहीं आज भी मेरे पास कुछ जमा-पूंजी है और हमने सोचा था कि “जगत के बच्चों के नाम कर देंगे उनके भविष्य में काम आएगा पर नहीं अब ये गलती नहीं दोहराऊंगा।”
सुरेश जी जब अपने पेपर ढूंढने लगे तो सारी एफडी और पासबुक गायब थे। उनके तो होश उड़ गए, उन्होंने गीता से पूछा कि,” क्या तुमने हटाया है क्या?”
अरे! नहीं जी मैं तो छूती ही नहीं हूं आपकी अटैची।
सुरेश जी ने जगत को आवाज लगाई….जगत जगत
क्या हुआ पापा?
“अब तो दो पल का चैन भी नहीं है इस घर में… कितना कलेश करते हैं आप”।
मेरी अटैची में कुछ कागजात थे तुमने हटाया है क्या?
जगत सकपका सा गया और हकलाते हुए बोला कि कहीं रखेंगे होंगे आपने।
सच बताओ…अब सुरेश जी ने तेज आवाज में कहा।
हां….. अरे इस उम्र में क्या करना उन पेपर का आपको।
सारा खर्चा तो हम लोग चलाते हैं…..आपको क्या जरूरत आन पड़ी रत्ना तेज से बोली।
जगत नजरें चुराकर धीरे से बोला कि पापा आपका हमारा बंटा है क्या?
बकवास बंद करो और मेरे पेपर वापस करो सारे।
“मैंने सारी एफडी तुड़वा ली कार खरीदने के समय “।
सुरेश जी धड़ाम से बिस्तर पर गिर पड़े…. क्या कब..
मेरे साइन के बिना।
मेरा आपका दोनों का नाम था तो ,उस दिन तो रत्ना ने ही ले लिया था आपका साइन।
ओह…मेरा चश्मा टूटा था इसका फायदा उठाया और इसी लिए तुम चश्मा नहीं बनवा रहे थे। सुरेश जी ने जिंदगी में इतना बड़ा धोखा कभी नहीं खाया था जितना कि उनके बेटे ने उनकी पीठ में खंजर भोंका था।
बेटा तुमने बहू के साथ मिलकर अपने बाप को ही धोखा दिया था।
पापा जी इस उम्र इतनी मोह माया के बंधन में बंधे हैं। अरे भगवान का नाम लीजिए बची-खुची जिंदगी अच्छी तरह से निकल जाएगी बहू रत्ना तेज स्वर में बोली।
“बहू मेरे पैसों पर सिर्फ मेरा और मेरी पत्नी का हक है। तुम दोनों की हिम्मत कैसे हुई” सुरेश जी गुस्से में बोले।
“बहू ये मत भूलो कि भगवान सब देखता है और तुम्हारे कर्मों का फल भी यहीं भुगतना पड़ेगा, खैर जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो दूसरों को क्या दोष देना।”
बुजुर्गों से आशीर्वाद लेना चाहिए ना कि उनके दिल को दुखाना चाहिए क्योंकि आप कभी भी खुश नहीं रह पाएंगे।आज नहीं तो कल आप उनकी जगह पर खड़े जरुर होंगे।
प्रतिमा श्रीवास्तव नोएडा यूपी