बहू तो मना कर देती है – अर्चना खण्डेलवाल :  Moral Stories in Hindi

आरती, दोपहर को मेरे ममेरे भाई-भाभी आ रहे हैं तो कुछ अच्छा से भोजन की व्यवस्था कर लेना, उन्हें थोड़ा चटपटा और तीखा खाना पसंद है, तूम नाश्ते में आलू छोले टिक्की और पनीर कबाब बना लेना, और भोजन में मिक्स वेज, रायता, पुलाव, मलाई कोफ्ता और दाल मखनी, साथ में तुम्हारे हाथ की गरमागरम नान, सच में खाकर मजा आ जायेगा।

सुलोचना जी ने अपनी बहू को बताया तो आरती ने पूछा लिया, मम्मी जी वो कितनी बजे आयेंगे? 

अरे! अभी दो-तीन घंटे में आ रहे हैं, तुम फटाफट सब तैयारी कर लो, मैं साड़ी निकालती हूं कि मुझे कौनसी पहननी है।

मम्मी जी, इतनी जल्दी तो इतना सब नहीं बन पायेगा,  आप या तो मुझे सुबह बता देती, ताकि मैं समय पर सब तैयारी कर लेती, आरती ने विनम्रतापूर्वक कहा।

ये सुनते ही सुलोचना जी भड़क गई, नहीं बन पायेगा? ये कौनसा नया बहाना है, तुम्हें तो आजकल बड़ा जोर आता है, तुम आजकल मेरे हर काम के लिए मना कर देती हो, मेरे मायके से कोई आ रहा है, इसलिए तुम काम करना ही नहीं चाहती हो।’

मम्मी जी, सिर्फ तीन घंटे है, इतनी सी देर में इतना सब नहीं बन पायेगा, फिर घर भी सेट करना होगा, नये बर्तन निकालने होंगे, चादरें भी बदलनी होगी।

आप नाश्ता बाहर से मंगवा लीजिए, खाना मैं बना लेती हूं, आरती की बात सुलोचना जी से बर्दाश्त नहीं हुई।

वो पैर पटकते हुए कमरे में चली गई, बहू ने ना बोलना सीख लिया है, मैं ना कहती थी कि आपसे ये बहूंए शुरूआत में सब काम करती है, लेकिन धीरे-धीरे सास को जवाब देने लगती है, अपने संस्कार दिखा ही देती है, और आप है कि कुछ कहते नहीं है, अपने पति कैलाश जी पर उन्होंने गुस्सा उड़ेल दिया।

सुलोचना मैंने बहू और तेरी बातें सुनी है, बहू ने कुछ ग़लत नहीं कहा है, इतने कम समय में इतना कुछ नहीं बन सकता है, तुझे सुबह बताना चाहिए था, छोले भीगने में ही आठ घंटे लग जाते हैं और तू चाहती है आरती तीन घंटे में छोले टिक्की बनाकर खिला दें, हद होती है, सुलोचना जी सकपका गई, उन्हें अपनी ग़लती का अहसास हुआ।

तीन घण्टे बाद उनके भाई-भाभी आ गये, आरती ने अच्छा खाना बनाया और खिलाया, वो लोग तारीफ करते-करते गये।

कुछ दिनों बाद सोसायटी में तीज महोत्सव था, आरती को नृत्य का बड़ा शौक था, उसने अपना भी नाम लिखवा दिया, रोज अभ्यास के लिए जाती थी और थक जाती थी, अभी शादी को कुछ ही समय हुआ था, बच्चे भी नहीं थे, तो आसानी से वो शाम के समय ग्रुप डांस के लिए चली जाती थी, सुलोचना जी को यही बात अखरने लगी थी।

एक दिन आरती की नींद सुबह देर से खुली तो उनका पारा चढ़ गया, तुमने तो हद ही कर दी, आज इतनी देर से उठी हो, अब जल्दी हाथ-पैर चला लो, जितने की तुम्हारे डांस करते समय चलते हैं, और हां आज शाम को गुप्ता अंकल के यहां सुंदरकांड के पाठ में जाना है, तैयार हो जाना, फिर ना कहना कि बताया नहीं।

मम्मी जी, मैं शाम को नहीं जा सकती हूं, हमारी डांस प्रैक्टिस है, हमारा ग्रुप डांस है तो मेरा जाना जरूरी है और आज तो प्रैक्टिस दो -तीन घंटे चलेगी।

हे! भगवान फिर से मना कर दिया, ये तो भगवान का काम है, इसके लिए तो ना मत करती, देखो जी बहू ने फिर से मना कर दिया, सुलोचना जी कैलाश जी से बोलती है।

सुलोचना, आरती घर की बहू है, कोई कठपुतली तो नहीं है, जो तुम्हारे इशारों पर नाचेंगी, उसकी अपनी जिंदगी अपनी प्राथमिकताएं हैं, फिर शाम को गुप्ता के हम दोनों भी जा सकते हैं, आरती को अपनी प्रेक्टिस करने दो।

आप ससुर बहू एक हो गए, और अब मेरी तो इस घर में चलती नही है, सुलोचना जी ने तंज कसा ।

कुछ समय बाद आरती गर्भवती हुई, नौ महीने बाद उसने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया, सुलोचना जी की बेटी कनिका उसके जन्मोत्सव में आई और कहने लगी, इतनी प्यारी भतीजी हुई है, मैं तो अच्छा नेग लूंगी, भाभी सोने की कोई चीज देनी होगी।

सुलोचना जी ने हामी भरी, हां क्यों नहीं एक ही ननद है, इतना तो दे सकती है, कोई बड़ी बात नहीं है, बहू ये तेरे गले की चैन कनिका को दे दें।

ये सुनते ही आरती को आश्चर्य हुआ, मम्मी जी ये चैन मुझे अपनी मम्मी ने दी है, ये उनकी मेरे पास आखिरी निशानी है, ये चैन मम्मी भी पहनती थी और जब वो इस दुनिया में नहीं है, तो ये चैन जब मैं पहनती हूं तो लगता है कि वो मेरे साथ ही है, इसलिए मैं ये सोने की चैन दीदी को नहीं दे सकती हूं। आप इसके अलावा और कुछ भी मांग लीजिए।

आरती का जवाब सुनकर सुलोचना जी फिर गुस्सा हो गई, तुम कभी किसी चीज के लिए हां भी करती हो? तुमने सास का मान नहीं रखा और आज ननद का भी अपमान कर ही दिया, भाभी ननद के लिए इतना तो कर ही सकती है।

ठीक है, मैं दीदी को ये चैन दे दूंगी, पर मेरी एक शर्त है, दीदी ने जो चांदी की पायल पहनी है, वो ये गुडिया को दे दें, बुआ भतीजी के लिए इतना तो कर सकती है।

हां… हां…. क्यों नहीं? ये पतली सी चांदी की पायल ही तो है, मेरी बेटी के पास तो एक से बढ़कर एक पायल है, तो दे देगी, सुलोचना जी ने आंखों ही आंखों में बेटी से पायल देने का इशारा किया, पर कनिका ने मना कर दिया, मम्मी ये पायल मुझे मेरी दादी सास ने मुंह दिखाई में दी थी, अब वो इस दुनिया में नहीं है, मैं उनके प्यार की निशानी गुडिया को नहीं दे सकती हूं, आरती भाभी को ये बात पता थी, तभी तो भाभी ने और कुछ नहीं बस यही पायल मांगी है।

आरती, तुम बहुत समझदार हो, और तुम अपने हक के लिए ना कर देती हो, ये हिम्मत हर बहू में नहीं होती है, जीवन को सही अर्थों में जीने के लिए ना कहना भी आना चाहिए, अपने कर्तव्यों को पूरा करते हुए अपनी सुविधा और भावनाओं, खुशी के लिए कभी-कभी ना कहना भी आना चाहिए। 

मुझे तुमसे बहुत कुछ सीखना है, जब मैं बहू बनकर गई थी तो मैं कभी ना नहीं कर पाई, और आज तक मुझे ग्लानि होती है, काश!! मुझमें तुम्हारी जितनी हिम्मत होती तो आज मैं भी खुशी से जीवन जी रही होती, सबकी अपेक्षाओं का भार उठाते -उठाते मैं कहीं खो सी गई हूं, कनिका की आंखे भर आई और उसने आरती को गले लगा लिया, सुलोचना जी फिर से बड़बड़ाने लगी , पहले तो उनके पति कैलाश जी बहू की तरफ बोलते थे, अब बेटी भी बहू का पक्ष लेने लगी है, मेरी तो कभी किसी ने सुनी नहीं।

ये सुनकर आरती और कनिका हंसने लगे, कैलाश जी और उनके बेटे के चेहरे पर भी मुस्कान छा गई।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खण्डेलवाल ✍️ 

#बहू ने ना बोलना सीख लिया

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