दमयंती जी के छोटे बेटे विशाल की अभी कल ही शादी हुई थी और आज छोटी बहू की मुंह दिखाई की रसमें प्रारंभ हो चुकी थी, रसमें तो क्या थी घर के ही कुछ सदस्य थे जो जाने की जल्दी कर रहे थे किंतु उससे पहले उन्हें मुंह दिखाई की रस्म पूरी करनी थी, चाची ताई बुआ मामिया मौसी सभी को जाने की जल्दी पड़ी थी इस चक्कर में बड़ी बहू नीलिमा चक्करगिनी की तरह काम में लगी हुई थी
उसे अपने 8 महीने के बेटे की भी परवाह जाने थी या नहीं, बच्चा बार-बार भूख से बेहाल हो रहा था किंतु नीलिमा सब मेहमानों की खातिरदारी और विदाई की व्यवस्था देख रही थी साथ ही घर के सभी कामों में भी पूरा योगदान तन मन से दे रही थी, ना उसे अपना होश था ना बच्चे का, बस होश इस बात का था कि वह रिश्तेदारों की नजरों में कामचोर या बुरी बहू साबित ना हो जाए चाहे कितनी भी थक
जाए तबीयत खराब हो जाए बेटे को कुछ हो जाए पर उसने ना कहना नहीं सीखा, छोटी बहू प्रज्ञा अपनी जेठानी को इतनी भागदौड़ करते देखा घबरा रही थी एक तरफ उसे अपने जेठानी की तबीयत खराब होने का डर लग रहा था दूसरा मन ही मन सोच रही थी क्या उसे भी अपने जेठानी की तरह ही
इतनी भाग दौड़ करनी पड़ेगी इस घर में! वह तो नौकरी करती है कैसे सब मैनेज करेगी, यहां तो ऐसा लगता है पूरा घर ही जेठानी के ऊपर निर्भर था जो देखो वही नीलिमा, नीलिमा बहू, भाभी की आवाज ही गुंजती रहती थी, पर उसने मन ही मन सोच लिया था वह खुद को आदर्श बहू साबित करने के
चक्कर में अपने करियर और जिंदगी से समझौता नहीं करेगी, जहां जरूरत होगी वह ना का सहारा अवश्य लेगी! आज तक वह गलत का विरोध करती आई थी आगे भी वह गलत के खिलाफ ना अवश्य कहेगी! शाम तक सारे मेहमान चले गए! प्रज्ञा ने कई बार नीलिमा से कहा …दीदी कुछ देर आराम कीजिए आप थक जाएंगे तबीयत खराब हो जाएगी पर नीलिमा बड़े प्यार से प्रज्ञा से बोली …नहीं प्रज्ञा
तुम देख रही हो ना अभी घर में कितना सारा काम है मां जी भी कितना काम करेंगे यह सब तो मुझे ही देखना है और आगे चलकर तुम्हें भी देखना है! इतनी देर में ही प्रज्ञा के पति ने नीलिमा से कहा ..भाभी काफी देर हो गई मुन्ना की आवाज सुनाई नहीं दे रही क्या मुन्ना अभी तक सो रहा है 2 घंटे हो गए, इतनी देर तो वह नहीं सोता! तब नीलिमा को होश आया कि हां 2 घंटे पहले उसे सुला कर तो आई थी लेकिन उसकेबाद तो वह उसे काम की व्यस्तता के चलते देखना ही भूल गई और फिर वह घबराती
हुई ऊपर मुन्ना के कमरे में गई तभी सास की आवाज आई… भाग कर कहां जा रही है पहले सारा काम तो निपटा ले, बड़े-बड़े बर्तन खाली करने हैं यह टेंट हाउस पहुंचने हैं सारे गद्दे रजाइयां सब समेटने हैं किंतु नीलिमा बस अपनी ही धुन में सीढ़ियां चढ़ रही थी और जैसे ही उसने कमरे में जाकर देखा मुन्ना बेहोश पड़ा था उसकी चीख निकल गई वह उसे रजाई में सुला कर गई थी और अपने पति
से भी कह गई थी कि इसको देख लेना पर पति भी बाहर के कामों में ऐसे उलझ गए कि उन्हें होश ही नहीं रहा और वह बिना नीलिमा को सूचित किए ही बाजार चले गए थे! नीलिमा की आवाज सुनकर सब ऊपर भागे और मुन्ना को बेहोश देखकर सभी एकदम चिल्लाने लगे और नीलिमा की सास तो बल्कि नीलिमा के ऊपर ही बरस पड़ी.. पता नहीं क्या करती है मुन्ना तक संभाला नहीं जाता, अरे घर के सारे काम बाद में है पहले तो अपना बच्चा है अगर बच्चे को कुछ हो गया तो मैं तुझे छोडूंगी नहीं
, एक ही पोता है मेरा तुझे उसका भी ध्यान नहीं रखा जाता और तुरंत उसे अस्पताल ले गए, अस्पताल में एक रात आईसीयू में रखने के बाद में अगले दिन छुट्टी दे दी और डॉक्टर ने कहा अच्छा हुआ आप सही समय पर ले आए नहीं तो इसकी जान भी जा सकती थी छोटे से बच्चे के ऊपर रजाई ढकी हुई थी जिससे इसको सांस लेने में परेशानी आई और इसका दम घुट गया किंतु अब यह खतरे से बाहर है! अगले दिन प्रज्ञा को मायके ले जाने की रसम के लिए उसके मायके से तीन-चार लोग आए तब सास ने कहा.. नीलिमा बच्चे को सुला दो और फटाफट से खाने की तैयारी करवाओ! आज नीलिमा चुप नहीं
रही और उसने कह दिया मां मुझसे जितना काम होगा मैं उतना ही करूंगी सारे कामों से बढ़कर मेरे लिए मेरा बच्चा है अभी भी वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं है, अभी तो कुछ दिनों पहले भगवान की कृपा थी कि वह सकुशल था किंतु अब मैं अपने बच्चे के साथ में कोई भी रिस्क नहीं लूंगी! प्रज्ञा उसकी बात सुनकर थोड़ा सा खुश हुई की चलो कुछ नहीं तो भाभी ने अपने बच्चे के लिए ही सही किंतु न बोलना
सीख ही लिया! एक सप्ताह बाद प्रज्ञा ऑफिस के लिए तैयार होने लगी तभी उसकी सास बोली ..अरे प्रज्ञा बेटा तुम अभी से ऑफिस जाने लग गई अभी तो घर के कामकाज में थोड़ा सा हाथ बटाओ, घर की रसमें, रीति रिवाज सीखो अपनी जेठानी के जैसे सबका सम्मान करना सीखो! तब प्रज्ञा बोली.. नहीं
मम्मी जी मैं दीदी जैसी नहीं हूं की आपकी हर आदेश को मानना मेरे लिए जरूरी हो जो मेरे लिए सही होगा मैं अपने आप देख लूंगी इस वक्त मेरे लिए मेरा ऑफिस जाना घर के कामों से ज्यादा जरूरी है! सास प्रज्ञा का मुंह देखती रह गई, नीलिमा 5 साल में कभी ना नहीं बोल पाई और प्रज्ञा ने 8 दिन में ही ना बोल कर दिखा दिया! अब सास को लगा शायद प्रज्ञा को देखकर ही बड़ी बहू ने ना कहना सीख लिया!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता (बहू ने ना कहना सीख लिया)
. # बहू ने ना कहना सीख लिया