Moral Stories in Hindi
नीरू एक मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की थी। परिवार में दो बेटियां नीतू और नीरू थी पिता अनिल और मां अंजली थे।नीरू के परिवार में सब एक दूसरे की मदद करते मिलके काम करते। नीरू के लिए नितिन का रिश्ता आया।नितिन के परिवार में मां शांति पिता श्यामलाल और शादी शुदा बहन
निधि जो पास में ही रहती थी सारा दिन मायके में रहती बस रात को सोने अपने घर जाती। शादी के समय तो शांति ने बड़ी बड़ी बातें की हमे तो बेटी चाहिए एक बेटी गई दूसरी आएगी। शादी होते ही नीरू और नितिन घूमने चले गए।10 दिन बाद आने पर घर आते ही दूसरे दिन से सारे घर की
जिम्मेदारी नीरू पर डाल दी गई। निधि सुबह अपने पति के जाते ही मायके में आ बैठती और जहां बैठती वही सब कुछ हाथ में दोनो मां बेटी हाथ भी ना हिलाती काम वाली रखने के लिए नितिन ने बोला तो उसे शांति बोली तू बड़ा जोरू का गुलाम हो रहा है जो उसके आते ही कामवाली चाहिए कौनसा
नौकरी करती हैं घर संभाले। नीरू ने हमेशा अपनी मां को घर साफ़सुथरा मेहमानों की आव भगत करते देखा था। यहां तो साफ सफाई का कोई नाम ही नहीं था।इतनी गंदगी कोई घर में आए तो उसे दरवाजे से लौटा तो या खुद सब बैठ जाओ पर चाय पानी कुछ नहीं पूछो। नीरू ने घर साफ सुथरा
बनाया जो आता उसे ढंग से पूछती अब जो भी उनके घर आता नीरू के सलीके और ढंग की तारीफ करता इस बात से शांति बहुत चिढ़ती उसको लगता जो आए वो मेरी बेटी की तारीफ करे या मेरी।नीरू भी शुरू में खुशी खुशी सारे काम करती पर धीरे धीरे उसे समझ आने लगा कि सास ननद चतुराई से उससे सब काम करवा लेती।शाम होते ही दोनों घूमने निकल जाती पहले तो नीरू को
भी ले जाती फिर बाहर से आ दोनो बैठ जाती और बिचारी नीरू अकेली काम में लगी रहती नीरू समझ चुकी थी कि यहां बिना बोले काम नहीं चलेगा।एक दिन सुबह सुबह निधि आई बोली भाभी आलू के पराठे बना दो बहुत मन कर रहा है।नीरू बोली खाना तो सारा बन गया है कल आओगी तो बना
दूंगी।निधि चिल्लाने लगी मां तुम्हारी बहु ने मुझे मना कर दिया खाना देने के लिए शांति चिल्लाती हुई बोली मेरी बेटी को मना करने की तेरी हिम्मत कैसे हुई।नीरू बोली मैने मना नहीं किया आप ने वैगन का भरता निधि के लिए राजमा पिताजी के लिए खीर और करेला इतना खाना बनवाया है फिर कुछ
नया बनेगा तो खाना वेस्ट होगा इसलिए कल आएगी तो बना दूंगी।शांति बोली बहु तू ना कहना सीख गई है मेरी बेटी के आने से भी तुझे परेशानी है। नीरु बोली आप लोग बात का बतंगड़ बना रहे है। श्यामलाल बैठे हुए सब सुन रहे थे बोले बहु ठीक कह रही हैं गलत थोड़ी कह रही हैं तुम सिर्फ बरबादी के बारे में सोचा करो।
नीरू को अब जो गलत लगता वो उस बात का विरोध करती और उसके ससुर और नितिन उसका समर्थन करते। एक दिन शांति औरों को किसी फंक्शन में जाना था तभी उनके यहां निधि आई शांति जिद पर अड गई निधि को भी लेकर जाऊंगी।श्यामलाल बोले ये किसी को नहीं जानती वहां क्या करेगी।शांति उसको जबरदस्ती ले जाने के लिए तैयार करने लगी।शांति ने नीरू से कहा अपनी कोई साड़ी और ज्वेलरी दे दे।निधि ने नीरू की पूरी अलमारी बिखेर दी और उसकी एक साड़ी निकाली
नीरू बोली निधि इस साड़ी की जगह तुम कोई और साड़ी ले लो क्योंकि ये साड़ी तुम्हारे भैया मेरे लिए लाए थे अब तो निधि गुस्से में आ गई मां ये हमे सब चीजों को मना करने लगी है।नीरू बोली मां मैने सिर्फ इस साडी के लिए कहा है बाकी वो जो मर्जी पहने निधि वहां से पैर पटकती चली गई और बोली अब मै यहां नहीं आओगी इस घर में अब मेरी कोई इज्जत नहीं है।शांति नीरू का हाथ पकड़ घर से
बाहर निकलने लगी।नितिन बीच में आया बोला मां क्या कर रही हो शांति बोली इसने मेरी बेटी को निकाल। मैं इसे निकालूंगी । नीरू बोली एक मिनिट मांजी ये घर किसका है शांति बोली क्यों मेरे ससुर का तो नीरू बोली आप मुझे निकालने वाली कौन होती हैं ये घर आपके भी ससुर का है और मेरे भी तो मै यही रहूंगी।आपको जाना है तो देख लीजिए।शांति नीरू का मुंह देखती रही और श्यामलाल से
बोली कि बहु की जबान ज्यादा ही नहीं खुल गई है।श्यामलाल बोले इसका श्रेय तुम्हे ही जाता है तुमने उसे बेटी समझा होता तो ये हाल ना होता बेटी को ब्याहने के बाद उसकी जिम्मेदारी पति की है ना कि हमारी वो सुबह शाम यहां रहती हैं अपना घर संभाले कल को बहु बेटे अलग हो गए तो फिर ना कहना
समझदारी से घर चलाओ और सुख से रहो।शांति रात को बाहर बैठी थी पीछे से बेटे बहु की आवाज आई तो आड में हो गई।नीरू बोली आज मैने पहली बार किसी से इतनी बत्तमीजी से बात की है मुझे अच्छा नहीं लगा अगर निधि दूसरी कोई साड़ी ले लेती तो बात ना बिगड़ती।नितिन बोला तुम सही कह रही हो मुझे ऑफिस की तरफ से ट्रांसफर मिल सकता है अगर तुम कहो तो ले लूं।इस चिक चिक से दूर मां भी खुश रहेगी और तुम भी शांति से रह पाओगी। नीरू बोली नहीं मा पिताजी का हमारे बिना
कौन है? हम चले गए तो उनका ध्यान कौन रखेगा।सब ठीक हो जाएगा।शांति को लगा श्यामलाल सही कह रहे थे।अगले दिन से वो नीरू की घर काम में मदद कर।ने लगी और बेटी को भी सलाह देने लगी कि अपना घर संभालो अब ससुराल में दिल लगाओ और ये घर बहु का है तो उसके हिसाब से भी चलेगा।कुछ दिन निधि मुंह फूला कर बैठी रही फिर खुद ही ठीक हो गई।नीरू सोच रही थी कि अगर उस दिन ना बोलती तो अपनी अहमियत कभी समझा ही नहीं पाती।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी