सुलोचना को कमरे के बाहर से थाली पीटने को आवाज सुनाई दे रही थी वह जल्दी से फ्रेश होकर बाहर आई उसे मालूम है आज उसे उठने में देरी हो गई है।
रुक्मिणी रसोई के सामने खड़ी होकर जोर-जोर थाली पीट रही थी। उस आवाज से सुलोचना का बेटा नींद से जाग गया था ……पति राजीव ने अपने दोनों हाथों से कान बंद कर लिया था……..ससुर श्याम सुंदर बरामदे में पेपर पढते हुए अंदर हो रहे …….तमाशे को देख रहे थे।
सुलोचना को देखते ही ……रुक्मिणी ने गरज कर कहा …… चाय कब पिलाएंगी महारानी जी।
सुलोचना ने डरते हुए कहा ……. अभी लाई माँ।
वह रोज सुबह उठकर चाय बनाकर पहले सास, ससुर को ही देती थी …… लेकिन किसी दिन बाय चान्स देरी हो गई तो रुक्मिणी को आदत हो गई थी …… इस तरह तमाशा करने की।
सुलोचना की ननद ….. सविता इसी शहर में रहती थी ……हर दो दिन में मायके आ जाती थी और सविता भाभी से अपनी पसंद के व्यंजन खाने के लिए बनवाती थी खुद खाकर अपने घर भी ले जाती थी । जब भी नई मूवी रिलीज होती है …….माँ बेटी पहले दिन पहला शो देखकर आ जातीं थीं।
राजीव दुख़ी होता था कि बहन के बारंबार मायके ……..आने के कारण हर महीने कम से कम दो …….तीन हजार रुपए खर्च हो जाते थे।
पिता अपने पेंशन से एक पैसा नहीं देते थे …….राजीव एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था ……. अभी उसका बेटा छोटा है …….इसलिए चल रहा है कल को वह स्कूल जाएगा तो घर चलाना ……..बहुत मुश्किल हो जाएगा। माँ सुलोचना को हमेशा कुछ न कुछ कहती है ……. उसका देखा देखी सविता भी उसकी कदर नहीं करती है …… दोनों ने उसे एक नौकरानी बनाकर रख दिया है।
सुलोचना भी राजीव की तकलीफ को महसूस करती है ……. लेकिन वह क्या करें समझ नहीं पा रही थी।
उस दिन यही सब सोचते हुए दूध गर्म करने के लिए रखी और वह फट गया उधर रुक्मिणी चाय-चाय की रट लगा रही थी …….वह धीरे कदमों से चलकर रुक्मिणी को बताती है कि माँ जी दूध फट गया है।
रुक्मिणी ने कहा जा जाकर सेंटर से दूध का पैकेट ले आ और चाय बना दे। वैसे ही सुलोचना राजीव के बारे में सोचकर दुखी है …… साथ ही सास के इस रवैए से उसका पारा चढ़ गया और उसने कहा ससुर जी से कहिए कि दूध का पैकेट ले आएँ तो मैं चाय बना दूँगी।
रुक्मिणी और बाहर पेपर पढ़ रहे श्याम सुंदर भी भौंचक्के रह गए थे……. कभी भी मुँह ना खोलने वाली बहू ने ना बोलना सीख लिया है ……. श्याम सुंदर बिना कुछ बोले बाहर जाकर दूध का पैकेट अपने पैसों से ले आए। सुलोचना ने दूध गर्म करके चाय बनाई ….. उन दोनों को देकर जब खुद भी चाय पीने बैठी कि सास ने कहा …… यह दूध हमारे पैसों से आया है ….. इसीलिए तुम नहीं पियोगी । सुलोचना ने चाय अंदर रखी कि उसी समय श्याम सुंदर जी ने कहा कि आज सविता आ रही है ……. उसकी पसंद की सब्जियाँ बना देना।
सुलोचना ने कहा ठीक है …….पापा जी मैं आपको लिस्ट बनाकर दे देती हूँ …….. कौन-कौन सा सामान चाहिए ……. आप बाजार से ला दीजिए मैं बना दूंगी।
इस बात को सुनकर दोनों कमरे के अंदर जाकर खुसुर फुसुर बातें करने लगे ……. फिर नाश्ता करने के लिए आए ……राजीव फटाफट नाश्ता करने लगा ताकि जल्दी से ऑफिस भाग सके …… इधर रुक्मिणी भी टेबल पर आकर बैठ कर कहती है चल मेरा नाश्ता भी लगा दे । सुलोचना ने कहा……. मैंने आप लोगों के लिए नाश्ता नहीं बनाया है क्योंकि यह विजय के पैसों से बना है ।
रुक्मिणी को लगा कि बड़े बुजुर्गों ने सही कहा है जब तक सामने वाला डरता है तब तक ही हम उसे डरा सकते हैं जब वह मुँह खोलने लगे तो उसका सारा डर खत्म हो जाता है ।
उसने विजय की तरफ देखा …….. कि वह पत्नी को डाँट लगाएगा लेकिन ……..उसने तो उनकी तरफ ध्यान न देकर ……ऑफिस चला गया ।
सुलोचना ने तो उन्हें सिर्फ़ एक झटका दिया था ……..रसोई में उनके लिए नाश्ता रखा हुआ था ।
श्याम सुंदर और रुक्मिणी ने ध्यान दिया कि आजकल सुलोचना उनके साथ ही बैठकर खाना खाने लगी है ……जबकि पहले सबके खाने के बाद ………वह अकेले बैठ कर खाती थी ।
रुक्मिणी के अहंकार को चोट पहुँची …। अब उसकी बहू के साथ रोज झगड़े होने लगे थे । एक दिन श्याम के दोस्त ने उन्हें अपने घर खाने पर बुलाया तो दोनों खुशी- खुशी उनके घर पहुँचे कि चलो……एक दिन तो घर के क्लेश से छुटकारा मिलेगा ।
वहाँ पहुंचकर उन्होंने देखा रोहन जी खुश होकर ……..रसोई में बहू की मदद कर रहे थे। उसी समय उनकी बेटी भी आ गई और सब लोग हँसते खेलते …… बने हुए खाने को टेबल पर रख कर श्याम और रुक्मिणी को खाने के लिए बुलाया ।
उनके घर में सब एक साथ टेबल पर बैठकर बातें करते हुए ……. एक दूसरे की तारीफ़ करते हुए खाना खा रहे थे । उस दृश्य को देखते ही ……..श्याम को अपना घर याद आया और वे दुखी हो गए और सोचने लगे कि ……..हमने तो अपने बेटे बहू को कभी ……..अपना माना ही नहीं है ……. रुक्मिणी तो बहू को डरा धमकाकर अपने इशारों पर नचाया करती थी….. नतीजा यह हुआ कि कभी मुँह ना खोलने वाली बहू ने मुँह खोल दिया है फिर मैं कैसे चुप रह सकता हूँ ?
मुझे ही अपने आपको बदलना है ……ताकि इस घर के माहौल को बदल सकूँ …. उन्होंने विजय की पैसों से मदद करना शुरू कर दिया ……रुक्मिणी को भी बहू के साथ काम पर लगाया और सविता का घर आने पर पाबंदी लगा दी …. अब घर पर पर शांति का माहौल बन गया है । आप सब सोच रहे होंगे कि यह काम उन्हें पहले करना चाहिए और पर क्या करें दोस्तों समय आने पर ही ऊपर वाला बुद्धि देता है ……खैर देर आए दुरुस्त आए कहावत को चरितार्थ करते हुए श्याम सुंदर अपने घर में खुश हैं ।
के कामेश्वरी