कितना भला -बुरा कहोगी भाग्यवान। तुम थकती नहीं हो बहू को बोलते – बोलते। यही वजह है कि वो भी आदी हो चुकी है तुम्हारे इस व्यवहार से और नतीजा देखो की अब वो सिर्फ अपना काम करती है।उसका भावात्मक लगाव नहीं रहा है इस परिवार से। तुम को नहीं लगता की वो भी इस घर की
सदस्या है। जितना तुम्हारा हक है इस परिवार पर उतना ही उसका भी है।आज तुम्हारा हांथ पैर चल रहा है तो तुम जुबान पर लगाम नहीं रख पा रही हो,कल को बुढापे में आखिर कौन साथ देगा जब हम तुम लाचार होकर दूसरों पर निर्भर होंगे। कुछ तो डरो भगवान से रमेश जी पत्नी शारदा जी को समझाने की कोशिश कर रहे थे क्योंकि अब वो थक चुके थे घर के क्लेश से और उन्हें बहू राखी की धैर्यशील स्वभाव ने भी बेचैन कर दिया था।
सच ही तो है किसी को इतना मजबूर नहीं कर देना चाहिए की वो अपनी सारी सीमाएं तोड़ दे और अच्छा खासा परिवार बिखर जाए क्योंकि कभी ना कभी अति का फल मिलता ही है।
शारदा जी शानदार कद काठी और उजला सा रंग,माथे पर बड़ी गोल बिंदी और मुंह में पान सूती कलफ लगी साड़ी में हमेशा टिप – टाप रहने वाली। वैसे ही व्यवहार कड़क मिजाज और आवाज में कर्कश ध्वनि।
बहू राखी बहुत ही समझदार या यूं कहें की सौ बात की एक बात की कुछ भी जबाब देने से माहौल और भी खराब हो जाएगा तो मौन रहना बेहतर है।ये जीवन मंत्र अपना चुकी थी वो। इससे घर में एक तरफा वार चलता था।सासू मां भी बोलकर थक जातीं और बात आगे कभी बढ़ती ही नहीं थी।रोज – रोज का घर में अशांति का माहौल अच्छा नहीं था। सभी जानते थे शारदा जी के स्वभाव को।अब तो क्या ही बदलाव आने वाला था उनके जीवन में।
एक दिन घर के बरामदे में शारदा जी चाय पी रहीं थीं और उठीं की नहा धोकर पूजा पाठ किया जाए और अचानक ही ना जाने कैसे गिर गईं और कुल्हे की हड्डी टूट गई। आनन-फानन में कमल और रमेश जी लेकर अस्पताल भागे और सिलसिला शुरू हो गया इलाज का पहले एक्स-रे हुआ तो पता चला की कूल्हा टूट गया है और जल्दी ही आपरेशन करना पड़ेगा। शारदा जी दर्द से कराह रहीं थीं असहनीय तकलीफ़ थी उनको।
थोड़ी देर में राखी भी पहुंच गई थी अस्पताल और शारदा जी का हांथ थामे उनको लगातार समझा रहीं थीं कि,” मम्मी जी सब ठीक हो जाएगा आप थोड़ा धैर्य रखिए। एक औरत होने के नाते राखी ही सारी मदद कर रही थी शारदा जी की। शारदा जी देख रहीं थीं कि उनके इतने खराब व्यवहार के बावजूद राखी कितने दिल से सबकुछ कर रही है और कितना अपनापन है उसमें। उसने तो मुझे अपना मान लिया था और मैं ही उसे कभी अपना नहीं पाई थी।
दूसरे दिन आपरेशन के लिए ले जाया जा रहा था तब
भी राखी साथ – साथ ही थी।
आपरेशन बड़ा था तो वक्त भी लग रहा था। राखी रमेश जी और कमल का भी ख्याल रख रही थी साथ ही घर का भी।
जब शारदा जी कमरे में आईं तो पूरी तरह से होश में नहीं थीं लेकिन कुछ बुदबुदा रहीं थीं कि बहू मुझे माफ कर दो।शायद उनको वक्त और हालात ने सबक सिखाया था की परिवार ही सुख दुख में काम आता है लेकिन उन्होंने बहू को परिवार में जिम्मेदारी तो बहुत दिया था लेकिन हक नहीं दिया था।आज जब लाचार पड़ी थी तो एहसास हुआ कि वही बहू बिना कुछ शिकायत या ताने के उनकी सेवा और देखभाल में लगी हुई है।
होश पूरी तरह से आ गया था। राखी समय – समय पर दवा,खाना – पानी का ख्याल रख रही थी। वक्त के साथ तबियत में सुधार आने लगा था।कमल सुबह मां का हाल खबर लेकर ऑफिस निकल जाता था और दोपहर से शाम तक राखी अस्पताल में रहती। डॉक्टर ने वाकर से चलाया था और कहा था कि दिन भर में थोड़ा चलाया करना जिससे आराम जल्दी मिलेगा।
पूरी तरह से ठीक हो कर घर आ गई थी शारदा जी। बहुत ही बदलाव आ गया था उनके व्यवहार में।अब वो ताने नहीं मारती बल्कि कुछ भी बात हो राखी से राय लेती।उनको मन ही मन अपनी गलती का एहसास हो चुका था। उनके बदलाव ने घर के माहौल को खुशनुमा बना दिया था।अब लगने लगा था कि ये घर बहू का भी है।
राखी के भावनाओं की कीमत होने लगी थी शायद ये उसके धैर्य का ही परिणाम था वरना ज्यादातर घर इन्हीं छोटी छोटी बातों में बिखर जाते हैं और शारदा जी को समझ में आ गया था कि वक्त एक जैसा नहीं होता है। हमें हमारे परिवार की अहमियत समझनी चाहिए क्योंकि जिस बहू को वो कुछ नहीं समझतीं थीं ना ही उसकी राय उनके लिए अहमियत रखती थी वहीं बहू अगर आज साथ ना देती तो वो इतनी जल्दी ठीक नहीं हो पाती और अपने पैरों पर इतनी जल्दी चलना नामुमकिन था। राखी की सेवा का परिणाम था की शारदा जी स्वस्थ हो गई थी।
रमेश जी ने बातों – बातों में शारदा जी से कह ही दिया कि,” शारदा हीरा है हमारी बहू पर तुमने उसको परखने में हमेशा गलती की है। तुम कैसे भूल गई की जितना तुम्हारा हक है इस घर पर उतना ही बहू का भी है।ये घर भी उसका ही है।”
” मैं सचमुच शर्मिंदा हूं, मेरी तो इतनी भी हिम्मत नहीं है कि मैं उससे माफी मांगू अपने उस व्यवहार के लिए। अब मैं अपनी गलती नहीं दोहराऊंगी।अब मैंने सोच लिया कि घर गृहस्थी बहू की है अब वो ही संभालेंगी और मैं किसी भी बात में हस्तक्षेप नहीं करूंगी।उसके लिए मेरे दिल में सम्मान भी बढ़ गया है और भरोसा भी।मेरी आंखें खुल गईं हैं” शारदा जी की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे।
“घर गृहस्थी सभी को साथ लेकर चलने से ही चलती है।जब जागो तभी सवेरा ” रमेश जी हंस कर बोले।
राखी बेटी,” आज से मुक्त कर दो मुझे गृहस्थी के जंजालों से और तुम सब संभालो ” शारदा जी ने राखी को बुला कर कहा।
मम्मी जी,” आपके अनुभव की मुझे बहुत जरूरत है और आप शांत – शांत अच्छी नहीं लगती। ऐसा लगता है घर में कोई है ही नहीं।आप तो दिन में एकाध बार डांट लगा दिया करो।मेरी भी आदत पड़ गई अब तो।”
“बहू मैं शर्मिन्दा हूं और मुझे माफ कर देना और हंसते हुए कहा कि सही कहा मुझे भी तुझे बिना डांटे खाना नहीं हजम होगा ” कहते हुए शारदा जी ने राखी को गले से लगा लिया।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी